Wednesday, October 30, 2019

तुम्हें पैदा करना भूल थी मेरी ...

तुम्हें पैदा करना भूल थी मेरी ...

दृश्य 1 - 
63 वर्षीय अमृतलाल की दाढ़ी बड़ी हुई है, उनकी गहराई में धँसी आँखों में पीड़ा और पश्चाताप प्रगट है, वे शैय्या पर पैर सिकोड़े लेटे हैं. पास में उनकी पत्नी रजनी बैठी हैं और 27 वर्षीय पुत्र अमरीश उनके सिर पर हाथ फिरा रहा है। अभी दवाई का असर है जिससे अमृतलाल कुछ चेतन से हैं। उनका, पुत्र से वार्तालाप हो रहा है अमृतलाल के स्वर में वेदना और पछतावा है, पुत्र के प्रत्युत्तर में स्वर ढाँढस देने का है और पत्नी श्रोता हैं तथा उनकी आँखें अश्रु पूर्ण हैं -
अमृतलाल : बेटा, मैं तुम्हारी शादी नहीं देख सकूँगा। 
 अमरीश : पिताजी, आज देश में 100 लड़कों पर, 86 लड़कियाँ ही तो हैं, 14 लड़कों को तो कुँवारा ही रहना है।    
अमृतलाल : नहीं! बेटा तुम्हारी एक  बहन, शादी नहीं करके न जाने मुंबई में क्या करती है, और एक ने भागकर गैर कौम में शादी की है, समाज में ऐसा फैलने से बदनामी के कारण, कोई हमारे घर में रूचि नहीं लेता है।   
अमरीश : नहीं पिताजी, इसका कारण मैं पकौड़े तलता हूँ, यह है। 
अमृतलाल : नहीं अमरीश, सब मेरे खराब कर्म और बेअक्ली का परिणाम है, तुम्हारी दादी की बातों में आया था और अपनी परिस्थिति के विपरीत हमने चार संतान पैदा कर लीं थीं।  
अमरीश : मगर पिताजी, माँ तो सबसे बड़ी हितैषी होती है, दादी की इक्छा का तो सम्मान तो आप का कर्तव्य था, ना!
अमृतलाल : सही है, मगर जिन बातों का विज़न नहीं होता माँ को, उनमें शुभेक्छु होकर भी वे हमारी भलाई नहीं कर पातीं हैं। अपढ़ होने से उन्हें ज्ञात नहीं था कि यूँ अधिक संतान पैदा करने से, हमारा देश जो एरिया में सातवाँ होकर दुनिया में आबादी में सबमें बड़ा देश हो जाएगा।   
अमरीश : मगर पिताजी, तब तो चार से भी ज्यादा संतान वाले परिवार हो रहे थे, ना?
अमृतलाल : होते थे मगर संपन्न परिवारों में एक , दो बच्चे पर सीमित करने की चेतना आ चुकी थी। तुम्हारी तीन बहनों के बाद मैंने और नहीं की सोच रखी थी,  तीसरी को आठ वर्ष हो गए थे, दादी कहने लगी, कुलदीपक नहीं है घर में।       
अमरीश : सही तो कहती थी वे, पिताजी!
अमृतलाल : अमरीश हमारा कौनसा राज वंश था जिसकी कुल परंपरा चलाये रखनी थी। दादा के पूर्व किसी पूर्वज का मैं नाम तक नहीं जानता। कौन से कुल का दीपक मैं हूँ, कोई अता पता नहीं है। कुलदीपक वाले तर्क पर मैंने चार संतान संतानें कीं. दादी और तुम्हारी माँ के भरण पोषण में मैं, क्लर्क ज्यादा कमाई करने की दृष्टि से भ्रष्टाचार में लिप्त और व्यस्त रहा. बच्चों के मनोविज्ञान और सँस्कारों का, थका हुआ घर लौटने से ध्यान नहीं रख सका था। तुम्हारी बहनों में इतनी समझ देने में मैं विफल रहा। वे ख़राब लोगों के फ़ुसलावों में आईं और उनके कारण तुम्हारे लिए जीवन चुनौती बढ़ गईं। इतने बच्चे और सच में, तुम्हें पैदा करना भूल थी मेरी. 
अमरीश : (बहनों के बारे में उनके कहे को अनसुना करते हुए) मगर पिताजी, सरकार वेतन कम देती थी, भ्रष्टाचार तो आपकी मजबूरी थी।
अमृतलाल : नहीं बेटे, सरकार पर बोझ तो हम ही बढ़ा रहे थे। संसाधनों और संस्कृति से लूट लिए गए इस देश के प्रति अपने कर्तव्य का बोध हमें होना चाहिए था। जिसमें हम विफल रहे हैं। मैं, यदि कम और पढ़ी लिखी सँस्कारी संतान देता तो परिवार को खुश एवं संपन्न तो रखता ही देश की उन्नति हेतु भी खुद को सहयोगी मानते हुए आज संतुष्ट भी होता। 
अमरीश : दुःख न करो पिताजी, इस अपेक्षा से असफल रहने वाले एक हमीं अकेले तो नहीं! 
अमृतलाल : बेटे, अगर हम कम बच्चों के छोटे परिवारों की अच्छाई वाली नकल नहीं कर रहे थे। तब भी ठीक यह होता कि हम बुराई की नकल तो ना करते। 
कहते हुए अमृतलाल रोने लगे थे रजनी अपने आँचल से उनके अश्रु पोंछ रही थीं। अमृतलाल के रोते हुए कहने से स्वर अस्पष्ट सा होने लगा था वे कह रहे थे - रजनी तुम और , बेटे तुम,  सब मुझे क्षमा करना, एक पति और एक बाप होने की पात्रता अर्जित किये बिना मैंने यूँ बच्चे पैदा कर दिए। तुम सभी को तो सँस्कार, शिक्षा और ठीकठाक आजीविका के अभाव तो दिए ही मैंने, साथ ही देश की समस्याओं को बढ़ा देने का अपराधी भी मैं हुआ हूँ। 
फिर उन्हें खाँसी का दौरा आया वे चुप हो गए अमरीश उनके सीने और पीठ पर हल्की मालिश करने लगा, रजनी मुहँ छुपा सिसकने लगी। 
दृश्य 2 -
तीन दिन बाद अमरीश रोते हुए अमृतलाल की अर्थी को कंधा देते हुए उनकी सीख का स्मरण कर रहा था. अमृतलाल के उठाये 'पिता होने की पात्रता' प्रश्न पर विचार करते हुए अन्य लोगों द्वारा तय किये जाए रहे श्मशान भूमि की ओर के मार्ग पर अमरीश के कदम अनायास उठ रहे थे।  उसके मन में आया 'कदाचित पिता होने की पात्रता वह है जिसमें अभिभावक अपने पाल्य में राष्ट्र और समाज निर्माता होने की भावना देने की योग्यता रखते हैं और उनके सही पालन पोषण से एक मजदूर पुत्र भी ऐसा हो सकता है जो गाली गलौज की भाषा के स्थान पर शालीन भाषा प्रयुक्त करते हुए अपने कार्य ईमानदारी पूर्वक करता है'.   तथा -
"पात्रता के बिना पति और पिता होना जीवन की अंतिम घड़ियों में ग्लानि बोध का कारण होता है"।   
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
31.10.2019





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