Tuesday, October 8, 2019

आत्महत्या (भाग -2) ..

आत्महत्या (भाग -2)  ..

प्रदीप जी, उस रात सोचते हुए कि वे, शैलेष पर हावी आत्महत्या के जूनून वाले पलों को टाल चुके हैं, अपने एक रूम के कार्यालय को बंद कर संतुष्ट हो घर लौटे।
अगले दिन - शैलेष ने प्रदीप जी के निर्देश अनुसार घर में सभी को बताया कि वह एक महीने का जॉब कर रहा है, जिससे वह असफलता के सदमे से उबर सके. पापा, माँ और जीवनी को यह सुन राहत मिली। सबने बिना ज्यादा विवरण लिए ख़ुशी से शैलेष को इसकी अनुमति दी।
फिर नौ बजे सुबह, प्रदीप जी के बताये पते पर पहुँच, शैलेष ने 500 रू भुगतान करके किराये पर ई-रिक्शा प्राप्त किया और दिन भर उनके निर्देशों अनुरूप कार्य किया। रात आठ बजे थका माँदा वह प्रदीप जी के ऑफिस पहुँचा. वहाँ उन्हें दिन भर का ब्यौरा दिया और घर लौटा।प्रदीप जी आज पुनः संतुष्ट हुए कि शैलेष अपेक्षा के अनुरूप प्रतिक्रिया दे रहा है.
उसके बाद हर अगले दिन शैलेष जिन्न जैसी आज्ञाकारिता से , प्रदीप जी के प्रथम दिन दिए निर्देशों/ योजना अनुसार कार्य करने लगा और हर रात 8 बजे, आकर उन्हें विवरण देता गया। प्रदीप जी, शैलेष में अपने अनुमान से ज्यादा तीव्र गति से सुधार होते पाकर खुश थे। हर अगली बार शैलेष पिछले दिन से कम थका दिखाई देता (अभ्यस्त होते जाने से) , ज्यादा सामान्य दिखाई देता (दिन भर की व्यस्तता में अपनी असफलता पर ध्यान नहीं जाने से) और दिन प्रति दिन उसके मुखड़े पर संतुष्टि परिलक्षित होने लगी (मनुष्य जब दूसरे की मदद करता है तो उसे सहज ही संतोष मिलता है कि वह किसी के काम आ सका है).
आठ दिनों में प्रदीप जी अपनी योजना के व्दितीय चरण कि "शैलेष को यह विश्वास दिलाना कि वह शारीरिक रूप से पूर्ण सक्षम होने के साथ ही मानसिक क्षमताओं में अधिकाँश ह्मयुवाओं से ज्यादा श्रेष्ठ है" की पूर्ति से निश्चिन्त तथा आगे के लिए आशान्वित भी हो गए।
तेरहवें दिन जब शैलेष लौटा तो आज उसके मुख पर संतोष के अतिरिक्त प्रसन्नता भी दर्शित थी। प्रदीप जी ने पूछा - शैलेष कुछ विशेष बात है, आप कुछ अलग दिख रहे हो। शैलेष एक पल सकुचाया फिर बोला - सर, आज अपने काम में ही मेरी भेंट एक लड़की से हुई. उसने यह बताया कि वह इस वर्ष एआईआईएमएस एंट्रेंस में एप्पिएर हुई थी किंतु 4 मार्क्स कम आने से सफल नहीं हो सकी. उसने यह भी बताया कि वह आर्थिक रूप से कमजोर परिस्थिति की है. उसका नाम शुक्रिया है।
प्रदीप जी, अपनी आशा से ज्यादा अच्छे घटनाक्रम की जानकारी मिलने से अत्यंत प्रसन्न हुए, मगर इसे बिना दर्शाये उन्होंने पूछा - शैलेष उसने क्या बताया, अब आगे वह क्या पढ़ाई करेगी। शैलेष बोला - सर वह बता रही थी कि अब वह तैयारी कर फिर अटेम्प्ट करेगी। सर, उसने बड़ी अच्छी बातें भी कीं कि इस बार वह जरूर पास कर लेगी। उसके ऊपर परिवार सम्हालने की जिम्मेदारी है, जो उसकी प्रेरणा बनती है कि वह दृढ संकल्प से सफलता प्राप्त करे।
शैलेष यह कह के चुप हुआ। प्रदीप जी ने उस समय उसकी आँखों में विशेष चमक देखी जो शैलेष के मन में किसी दृढ निश्चय की ध्योतक थी। उन्होंने शैलेष से प्रश्न किया- बस इतना ही?
तब शैलेष ने बताया - सर, मैंने उससे तब यह पूछा कि अगर दूसरी बार भी सफल नहीं हुई तो शुक्रिया क्या करेगी? सर इस पर उसने जिस हौसले से जबाब दिया उससे मैं खुद पर शर्मिंदा हुआ।
प्रदीप जी - क्या?
शैलेष - सर, उसने बताया - उसके अब्बा टैक्सी चलाते हैं, उनके आँतों में तकलीफ़ के कारण कई बार उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. आज भी वे हॉस्पिटलाइज़्ड हैं। शुक्रिया और सभी आशंकित रहते हैं कि वे पाँच सात साल भी जी सकेंगे या नहीं। शुक्रिया की तीन छोटी बहनें हैं, माँ - घर में सिलाई से कुछ कमा लेती हैं। अगर अब्बा को कुछ होता है तो उनकी परवरिश के लिए उसे कमाने योग्य बनना होगा। अगर दूसरी बार भी असफल रहती है तो वह कोई अन्य कोर्स करेगी। एआईआईएमएस में न भी पढ़ने पर उसकी योग्यता समाप्त नहीं होगी। उसके जीवन को - परिवार की जिम्मेदारी उठाने का उद्देश्य मिला है। वह जैसे भी संभव है उसे पूरा करेगी।
प्रदीप जी- उससे तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया है?
शैलेष ने दृढ़ता पूर्वक उत्तर दिया - नहीं सर उसमें मुझे मेरी प्रेरणा दिखाई पड़ी है, वह मेरा प्यार नहीं, प्रेरणा है।
प्रदीप जी- क्या वह सुंदर है?
शैलेष कुछ खेद मिश्रित स्वर में - सर ,ऐसी बात नहीं, वह बुर्के में थी. लेकिन कोई अंतर नहीं उसके सुंदर होने न होने में जिसका मन इतना सुंदर हो।
इतना सब सुनते-विचारते हुए, शैलेष को और न छेड़ते हुए, प्रदीप जी ने शैलेष के द्वारा आज अनुभूत की गई बातों को पर्याप्त और उसे रात्रि अपने अंर्तद्वंद से जूझते छोड़ने को उपयुक्त मानते हुए कहा - शैलेष कल आप नौ बजे नहीं, साढ़े ग्यारह बजे आइये. कल के लिए आपको मेरे नए आदेश रहेंगे.
शैलेष विदा हुआ और प्रदीप जी सोचने लगे - लगता है भगवान ने, शैलेष को कुछ विशेष करने के लिए बनाया है. इतना कुशाग्र बुध्दि होने के बावजूद उसे प्रवेश परीक्षा में असफलता दिलवाई है, फिर मुझसे परामर्श को मिलवाया है और उस पर शुक्रिया के माध्यम से सच्ची प्रेरणा का संयोग कराया ...

.... आगे जारी
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
08-10-2019

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