Tuesday, October 22, 2019

उसे यूँ प्रतीत हुआ था, कठिन होगा जीना उसके बिना ...

उसे यूँ प्रतीत हुआ था, कठिन होगा जीना उसके बिना ...


नुसरत जहां को ये तो समझ आता था कि जिनका साथ होश सम्हालते ही सत्रह वर्षों से मिला (अब्बा, अम्मी, भाई आदि), उनमें से किसी का भी विछोह होने पर तो जीना दुश्वार हो जाएगा, लेकिन जिसे कॉलेज में आये तीन महीनों से ही जाना-पहचाना था। जिसका सामीप्य कुछ दिनों ही महसूस किया था, उसकी अपने प्रति उदासीनता से कैसे जी पायेगी वह?
नुसरत तब गर्ल्स स्कूल में पढ़कर, जुलाई में कॉलेज आई थी। जहाँ पहिली बार लड़के भी उसकी क्लास में थे। यहाँ, अनूप वह लड़का था जो उसे पहले कनखियों से देखा करता था. एक बार नुसरत के उसे देख हँस बस देने से अब सीधे ही लगातार निहारने लगा था। ऐसा होने से नुसरत को पहले तो डर सा लगा था। मगर कोई महीना ही बीता होगा। उसे, उसका यूँ देखना अच्छा सा लगने लगा था। दूसरे ही महीने उसके इशारे मिलने पर कॉलेज कैंपस में छिपकर किसी कोने में वह, उसे मिलने लगी। पहली पहली मुलाकातों में कुछ प्यार भरी बातें हुईं साथ जीने, मरने की कुछ कसमें दोनों ने लीं।  नुसरत का मन अब पढ़ाई में नहीं लगता था।वह क्लासेज में भी और घर में भी उसी के ख्यालों में गुमसुम रहने लगी थी। दूसरे महीने सिलसिला कुछ आगे बढ़ा अनूप और वह क्लासेज से बंक मार पार्कों और मॉल में जाने लगे थे। इस बीच अनूप मॉल से कुछ गिफ्ट दिलाने लगा थाऔर पार्कों के छिपे कोनों में उसके बदन को छूने लगा था। नुसरत को यह सब प्यारा तो लगता था मगर एक अपराधबोध से वह डरी भी रहती थी। घर में शिक्षा-सँस्कार में यह सब वर्जित बताया गया था। और गैर मुस्लिम को काफिर बताते हुए उनसे करीबी साथ न रखने की हिदायत भी थी। लेकिन दिल से मजबूर हुई नुसरत, नित अनूप से छिपे कोनों में मिलने लगी थी। पिछली तीन मुलाकातों में अनूप तो उसे चेहरे और होंठो पर किस भी करने लगा था। नुसरत मना करते हुए भी उसको धक्का दे दूर करने का प्रयास नहीं कर पाती थी। 
फिर वह हादसा हो गया था। अक्टूबर के महीने में अनूप ने गरबा कार्यक्रम में उसे बुलाया था। नुसरत ने अम्मी-अब्बा को, सहेलियों की जिद के बहाने से, इस हेतु बहुत मुश्किल से राजी किया था। नुसरत की ताकीद की गई थी कि घर से उसे गरबे के परिधान के ऊपर बुर्का ओढ़के जाना और आना होगा और हर हर हाल में रात साढ़े दस बजे तक घर लौटना होगा। उस रात साढ़े आठ बजे वह गरबा स्थल पर पहुँच गई थी। आधे घंटे अनूप के साथ गरबा किया था. फिर अनूप के कहने पर वह उसके साथ एक होटल रूम में पहुँची थी। अनूप की योजना का उसे अंदाजा भी हुआ था, डर भी लगा था मगर सम्मोहित सी वह अनूप का साथ देती जा रही थी। कमरे में उसे, अनूप ने बेड पर साथ लिटा लेने को दो तीन मिनट ही हुए थे कि दरवाजा भड़भड़ाये जाने से वे अलग हुए थे। नुसरत को वॉशरूम भेज अनूप ने दरवाजा खोला था।दरवाजे पर नुसरत के अब्बा थे। तमतमाये नुसरत के अब्बा ने अनूप पर घूसों से पीटा था. नुसरत को वॉशरूम से बाहर लाकर बुर्के में घर ले जाया गया था।   
अगले एक महीने फिर नुसरत कॉलेज नहीं आ सकी थी। बहुत अनुनय विनय और वादे किये जाने के बाद नुसरत के अब्बा ने उसे कॉलेज की अनुमति दी थी। अब अनूप उसकी ओर देखता भी नहीं था। घर में किये वायदों के अनुसार यह ठीक तो था मगर नुसरत को अचरज होता साथ ही दिल भी दुखता था कि अनूप जो साथ जीने मरने की कसम लेता रहा था कैसे बदल गया था। नुसरत ने घर में अनूप से, बात न करने और न मिलने का भरोसा तो दिलाया था। मगर उसके लिए प्यार रख कर पढ़ाई करने का उसका इरादा किया था। उन दिनों उसे यूँ प्रतीत हुआ था, "कठिन होगा जीना अनूप के बिना"  मगर ज़िंदगी को कुछ और मंजूर था। 
अब्बा से तो नहीं मगर अकेले में अम्मी से उसने तर्क किये थे, 'जिन बातों पर भाई को कोई बंदिशें नहीं उनके लिए उस पर क्यूँ बंदिशें हैं?' अम्मी ने कहा था - औलाद होने पर हम पेरेंट्स पर जिम्मेदारी और भार तो आता ही है, मगर बेटों के लिए जितना, उससे अतिरिक्त बहुत भार हम पर बेटियों के लिए आता है। 
"क्यूँकि बेटी को हम गैर कौम में निकाह करने नहीं दे सकते और निकाह के पहले बेटी के जिस्मानी रिश्ते किसी को बर्दाश्त नहीं है। इन मर्यादाओं के बाहर, ऐसा होने पर तुम्हारी ज़िंदगी सलामत नहीं होगी. हम भी कौम में गुजर नहीं कर पायेंगे। तुम इसे साफ़ समझ लो तो तुम्हें पढ़ने का मौका देंगे। अन्यथा तुम्हारे निकाह के लिए जल्दी दूल्हा देख लिया जाएगा।"
प्रेमी से धोखा और घर से लड़की होने के कारण एक तरफा पाबंदी किसी पर नैराश्य भाव और अवसाद का कारण हो सकती है लेकिन नुसरत की प्रकृति भिन्न थी। 
अनूप के अपने बदन पर स्पर्श, जो उस समय सुख देते लगते थे उनका स्मरण से अब उसे घिन होती। मुस्लिम लड़के को अन्य संप्रदाय की लड़कियों से प्रेम की अनुमति और लड़कियों पर इस हेतु पाबंदी, इस दोहरी कसौटी पर उसका तर्क आपत्ति करता। साथ ही अपने मजहब के अतिरिक्त अन्य धर्मी लोगों को काफिर ठहराने की सोच में भी उसे संकीर्णता दिखाई देती। नुसरत के मन में इन बातों से विद्रोह उत्पन्न हो गया। इसके परिणाम स्वरूप उसने मन ही मन एक संकल्प ले लिया कि वह घरवालों को शिकायत का कोई मौका दिए बिना पढ़कर अपनी ऐसी हैसियत बनाएगी जिसके होने से समाज से 1. बेटे-बेटी के लिए भेदभाव पूर्ण व्यवहार, 2. मजहबी आधार पर इंसान और काफिर ठहराने की संस्कृति इन  दोहरी कसौटियों से मुक्त करने के लिए वह काम कर सके। 
उम्र जनित आवेग जिसे अनूप के स्पर्श ने ज्वाला दी थी। किसी लड़की के लिए ऐसे में इस सुख को कड़ाई से त्याग देना आसान नहीं होता। अक्सर ऐसे में लड़कियाँ प्रेमी के धोखे की स्थिति में अन्य लड़कों के साथ को लालायित होती हैं। नुसरत ने मगर अपने संकल्प को विस्मृत नहीं होने देकर इन लालसाओं पर नियंत्रण कर लिया था।  
समय बीता, नुसरत के पढ़ाई में प्राप्त हर वर्ष के नतीजे परिवार के लिए चौंकाने और गौरव दिलाने वाले होते गए। जिनसे परिवार वाले अनूप के साथ नुसरत के किस्से भूल गए थे। अपने संकल्प अनुसार नुसरत ने आई ए एस किया। इस मुकाम पर पहुँच नुसरत, अपने तर्क अनुरूप काम को आज़ाद हो गई थी। बाद में उसने अपने साथी आई ए एस निखिल से विवाह किया तब घर में कोई एतराज नहीं कर सका। इसका उद्देश्य नुसरत का अपने मार्फत, समाज को यह संदेश देना है कि मुस्लिम लड़के ही नहीं अब मुस्लिम लड़की भी गैर संप्रदाय में शादी करने लगी है। नुसरत का मानना है इससे अंर्त-संप्रदाय सौहार्द्र कायम करने में मदद मिलेगी। 
साथ ही आज, डीएम अलीगढ होकर उसने मोबाइल ऍप के जरिये लड़कियों और युवतियों को अपने विरुध्द कहीं भी हो रही ज्यादतियों पर शिकायत करना सुलभ कराया हुआ है।  जिसमें छोटी भी ज्यादती करने वालों को नोटिस के जरिये परिवार सहित जिलाधीश कार्यालय के हाल में दिन दिन भर बिठाया जाता है। 
इससे दिन दिन भर कामकाज और पढ़ाई के होने वाले नुकसान को देखते हुए, साथ ही जगहँसाई के कारण लड़के और पेरेंट्स अपने और बेटों के व्यवहार को लेकर ज्यादा सावधान हो गए हैं। आज, अलीगढ़ में अब कोई शोहदा कॉलेज/स्कूल जाती किसी लड़की की स्कर्ट उठाने या अन्य छेड़छाड़ का दुस्साहस नहीं करता है  ....
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
23.10.2019

     

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