मौत स्वागत योग्य नहीं होती
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फिर अपराध सिध्द होने पर कुछ मौत की सजा पा स्वयं मारे जाते हैं .
इस तरह के दुखद हादसे से पहले (निर्दोष और मासूम ) भी कुछ अनाथ , बेसहारा होने को लाचार होते हैं . अपने प्रियजन को खोने का आजीवन दुःख को श्रापित हो जाते हैं .
बाद के घटना क्रम में न्याय ( तथा-कथित , संविधान अनुसार ) पालन में दोषी का परिवार इसी श्राप से पीड़ित होता है .
असमय मौतें बार बार दोहराई जाती हैं , कहीं सही शिक्षा या सबक ना लिया जा रहा है . ना ही सही शिक्षा सबक दिया जा सका है .
अकेले मारे जाने वाले ही नहीं , इनके मारे जाने से कटुतम और स्थाई बिछोह को विवश होते परिवार-जन जिनके ह्रदय में इन मौतों ने जीवन जीने की कोई भी अभिलाषा अधूरी छोड़ दी है तो मौत स्वागत योग्य नहीं होती है .
हादसे तो पूर्व से ज्ञात नहीं होते हैं . पर दंड तो पूर्व-नियोजित होता है . हादसे से पीड़ित परिजन यदि अपराधी को क्षमा नहीं करते हैं , तो अपराधी की मौत से यद्यपि प्रसन्न होना होता है .
श्रध्दा-सुमन अकाल मारे गए व्यक्तियों के लिए . साथ ही आशा का एक दीप प्रज्वलित करते हुए कि शीघ्र ही सही शिक्षा और सबक लेते हुए , क्रिया और प्रतिक्रियाओं में ये अप्रिय प्रसंग किन्ही व्यक्तियों और निर्दोष परिजनों के सम्मुख प्रस्तुत होना बंद हो जायेंगे।
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