Friday, February 8, 2013

संस्कार

संस्कार

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अच्छे संस्कार हैं , या कोई संस्कारहीन हीन है , यह टिप्पणी अक्सर ही सुनते हैं ,सब करते हैं . कोई के अच्छे कार्य , या बुरे के जिक्र में भी संस्कार कारण निरुपित किया जाता है . क्या होते हैं संस्कार , कैसे दिए जा सकते हैं . संस्कार हीन कोई कैसे हो सकता है . प्रश्न के उत्तर सब के पास हैं .शब्द अलग हो सकते हैं . आशय प्रायः समान ही होगा .

वास्तव में एक नवजात शिशु के लालन -पालन कर ...उसे किशोर वय में पहुँचते तक , सांसारिक जीवन के दृष्टिगत माँ- पिता और घर में अन्य बड़े अपने बच्चों के सरल ,सहज और सुखी जीवन की आशा से सिखाते ,बतलाते हैं . इस पूरी प्रक्रिया के लिए जो शब्द है प्रयोग किया जाता है वह "संस्कार" है . इस तरह दिए जा रहे मिल रहे संस्कार का स्तर , पालकों की तथा बच्चे की स्वयं की योग्यता पर निर्भर करता है . अंध-विश्वास , या गलत पूर्वाग्रह से कोई पालक प्रभावित है तो , उनके बच्चों में यह दोष परिलक्षित होने की सम्भावना हो जाती है . और जिन घरों में जीवन स्वरूप का सही ज्ञान , और सांसारिक ,धार्मिक ,व्यवहारिक और नैतिक शिक्षा की पर्याप्तता है . उस घर के बच्चे संस्कारवान होंगे और अपने कर्मों और आचरण से अन्य को प्रभावित करते हुए सफल और सुखी जीवन व्यतीत करेंगे , इसकी सम्भावना प्रबल होती है . संस्कारवान संतान ना केवल परिवार बल्कि समाज ,देश और विश्व के लिए हितकारी होती है . अतः यदि हम अपने बच्चों को सही संस्कार देते हैं , तो यह आत्म विश्वास हमें होना चाहिए कि हम इस से अपने बेटी या बेटा बाल्यकाल में सच्ची सेवा सुश्रुषा नहीं कर रहे हैं , अपितु मानव समाज और देश की सच्ची सेवा कर रहे हैं . जिस समाज या देश में नागरिक अधिकांश संस्कारवान होते हैं वह उन्नति की ओर बढ़ता है . संस्कारवान संतान ही परिवार , देश और समाज के लिए अपनी सच्ची जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने कर्म और आचरण रखता है . हमारे दिए अच्छे संस्कार ही हमारे पुत्र या पुत्री को बुरी संगत में पड़ने से रोक लेती है . वर्ना आज बुरी संगत और अनेकों बुराइयां चंहु ओर उपलब्ध हैं , जो आधुनिकता के नाम पर किसी के भी अच्छे कर्म और आचरण से विमुख करने में विलम्ब नहीं करती .
संस्कार कैसे दिए जाते हैं ?  मेरा मानना है ,मानव बच्चा बालपन से ही बुध्दिमान होता है . उसका मस्तिष्क हमारे कथन से प्राप्त होने वाले निर्देश को हमारे स्वयं के इन (निर्देश के विषय ) पर हमारे आचरण और कर्म से तुलना करता है . कहने का आशय यह है कि अनकही बातें वह हमारी करनी से भी ग्रहण करता है .  ऐसे में स्वयं हमारी कथनी और करनी में अंतर ना हो तो बच्चा हमारे बताये मार्ग पर चलना सीखेगा . हमारी कथनी और करनी में अंतर देखेगा तो भ्रमित होगा . कभी एक ही प्रसंग में हमारे कहे ढंग से कार्य करेगा और कभी हमें क्या करता देखता है उस अनुसार कार्य करेगा . और स्पष्ट करने के लिए उदाहरण से बात करें तो , यदि हमें बच्चे को धार्मिक संस्कार देने हैं तो हमें मंदिर जाना , स्वयं धर्म चर्चा में हिस्सा लेना और धर्म अनुसार अपने आचार और व्यवहार रखने होंगे , और यही फिर ऐसा करने के लिए बताने पर उसमें धार्मिक संस्कार पड़ेंगे . हम स्वयं मंदिर ना जाएँ और बच्चे से कहें प्रतिदिन मंदिर जाना अच्छा है , तो वह हमारे शब्द और व्यवहार में अंतर भापेंगा . कभी मंदिर जाना उचित मानेगा कभी जाना उचित नहीं भी समझेगा .
इसी तरह हम यदि चाहें कि हमारा पाल्य झूठ न कहे, बड़ों से सम्मान से पेश आये , घर के बाहर बड़ों का आदर करे , देश के प्रति सम्मान रखे और , शराब ,सिगरेट ना पिए तो यही बातें उसे हम स्वयं करते हुए भी दिखने चाहिए . हम अपने माता -पिता से सम्मान से पेश आयें , उनकी सेवा करें , पास-पड़ोस के लोगों से सम्मान-जनक संबोधनों और शालीनता से बातें करें , उनके दुःख के प्रति संवेदना प्रदर्शित करें . अपने कार्य को निष्ठा पूर्ण ढंग से करें . हम शाकाहारी हों ,शराब ,सिगरेट छूते ना हों  तब ही बेटी /बेटा सदमार्गी और सदाचारी होगा . 
अच्छा सिर्फ कहा जाना , संस्कारी बनाना सुनिश्चित नहीं कर सकता . आचरण और कर्म में यदि हम कोई कमी रखेंगे तो बच्चों को अच्छा कहा और समझाया  जाना अपर्याप्त सिध्द होगा . उसके संस्कारहीन बनने की सम्भावना बनेगी . भले ही लौकिक शिक्षा कितनी भी अच्छी क्यों ना हासिल कर ले वह .
आज देश /विश्व और समाज में बहुत बुराई और समस्याएँ हैं . इन्हें दूर करने के लिए हर घर के बच्चे के संस्कार अच्छे हों यह आवश्यक है . तब ही आने वाली पीढ़ी सुखी भी हो सकेगी और समाज से बुराई और समस्या कम करने में सफल भी हो सकेगी.

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