आतिथ्य -भारतीय परम्परा
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वैभवपूर्ण प्राचीन भारतीय संस्कृति और उसको पुष्ट करती प्राचीन धरोहर (मंदिर , स्मराकें ,धर्म विश्वास ,ग्रन्थ,नदियाँ ,जलाशय इत्यादि ) विदेशी सैलानियों को देश भ्रमण को आकर्षित करते हैं .
इस आकर्षण के वशीभूत वे भारत आ पहुँचते हैं . विदेशी युवतियाँ जब अकेली होती हैं , तब विदेशी चलन से दुष्प्रभावित होकर यहाँ के कुछ पुरुष उन पर वासनामयी दृष्टि रखते हैं . वे समझते हैं विदेशी युवतियाँ शारीरिक संबंधों के बारे में स्वछन्द होती हैं . ऐसी सोच से प्रभावित हो उन से संबंधों को लालयित हो ऐसे आचरण करते हैं जो प्रख्यात भारतीय आतिथ्य के अनुरूप नहीं होता . प्रतिवर्ष कुछ ऐसे ही अनैतिक प्रयासों में उनसे दुराचार के कुछ प्रकरण बनते हैं ,उनमें से कुछेक प्रकरणों में विदेशी नारियों को प्राण भी गवानें पड़ते हैं . यह आधुनिकता , ललचाई नियत से किये कृत्य पूरे भारतीयों का सर शर्म से झुकाते हैं . यह आतिथ्य -भारतीय परम्परा के पूर्णतः विपरीत है .हम अतिथि को भोजन स्वयं भूखे तक रह कर कराने के त्याग के लिए पहचाने जाते थे . उनकी प्राण और सम्मान रक्षा में अपने प्राणों को तक खतरे में डालते थे .
ना हम अपने समाज में अच्छाई बचा पा रहे हैं , ना ही परंपरागत अच्छाई पर चल पाते हैं . ऊँची ऊँची पढाई कर हम कुछ सीख रहे हैं या सीखा जो था वह भी भूल रहे हैं ?
जिन्होंने ना पृथ्वी के ऊपर किसी सीमाओं को जाना या माना . जिन्हें हजारों किलोमीटर कई कई देशों की सीमाओं पर से गुजरते बिना पासपोर्ट और वीजा के उड़ने की आदत है . साइबेरिया में जब जलवायु , तापमान सहन करना उन्हें मुश्किल हो जाता है . अपने प्राणों को बचाये रख सकने की चिंता में और अपने बच्चों को जन्म देने के लिए साइबेरियन पक्षियों के अनेकों जोड़े पूरे भारत के विभिन्न जलाशयों के आस पास अपना बसेरा हजारों किलोमीटर दूर आ बनाते हैं . ग्रीष्म ऋतू में यहाँ जलाशय सूखने लगते हैं और यहाँ का तापमान उन्हें अप्रिय होता है तब 4-5 महीनों के प्रवास उपरान्त अपने मूल बसेरों की ओर लौटना चाहते हैं . पर हम पुनः अपना आतिथ्य भूलते हैं . हममें से कुछ इन सुन्दर अतिथि पक्षियों का शिकार करते हैं . और इस तरह हमारी दुष्टता से कुछ पक्षी हर वर्ष आने के बाद यहाँ से कभी लौट नहीं पाते .
वेदना और लज्जा अनुभव होती है . आधुनिकता जनित मानवता से पतन के इन प्रकरणों को देख और सुनकर .
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