Thursday, February 14, 2013

मनुष्य जीवन का आनंद (और वरिष्ठ नागरिक)

 मनुष्य जीवन का आनंद (और वरिष्ठ नागरिक)
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कुछ 70 से अधिक हो चुके क्रियाशील व्यक्तियों के क्रियाकलाप पर गौर करें ..

अ . 80 से अधिक 
के वे  हो चुके हैं अति प्रतिष्ठित ,अति सम्मानीय हैं . पूरा देश भ्रमण करते हैं . आदर और निष्ठा से स्वागत होता है , उनका . वे युवा पीढ़ी को सच्चा , और कर्मठ देखना चाहते हैं .उन्हें विभिन्न मंचो से संबोधित करते हैं .राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं . इससे उन्हें व्यक्तिगत लाभ कुछ नहीं है . एकमात्र अपेक्षित सम्मान ही ऐसी बात है , जो उनके लाभ में गिनी जा सकती है . फिर भी अपना आराम और सुविधा की फिक्र बिना वे अपना कर्तव्य मान यह कार्य कर रहे हैं .

ब . मध्यम वर्ग परिवार के मुखिया 80 वर्ष से अधिक के हैं . घुटनों की समस्या में चलने में कठिनाई है उन्हें . फिर भी नैतिकता के साथ व्यवसाय करते हैं . ग्राहक को गुणवत्ता का सामान और सेवा में उनका विश्वास है . अपने को इस तरह व्यस्त रखते अपनी शारीरिक पीडाओं से ध्यान हटा पाते हैं . इस उम्र में भी आय की अपेक्षा इसलिए है क्योंकि उन्हें लगता है नैतिकता से सारी उम्र व्यवसाय में ज्यादा पूँजी नहीं बना पाए हैं . महंगाई ज्यादा है सोचते हैं , कुछ स्वयं भी कमा लें तो उनके बेटे को घर चलाने में थोड़ी सरलता हो सकेगी . अपने ग्राहंकों की संतुष्टि से प्रसन्नता भी मिलती है .



स . प्रतिष्टित और सम्मान से देखे जाने वाले अरबपति 70 वर्ष से अधिक के एक सफल आज भी पूर्ण सक्रिय देखे जा सकते हैं . प्रसिध्द हैं अतः कोई भी सही गलत विज्ञापन , ब्रांड अम्बेसेडर या किसी भी ढंग से थोड़े से समय व्यय कर करोड़ों अर्जित कर सकते हैं . परिवार को यह धन नहीं भी आये तो कोई कमी नहीं है . पर अपनी प्रसिध्दि को एनकैश करते हैं . देश के युवा को गलत प्रेरणा या दिग्भ्रमित होने की उन्हें फ़िक्र नहीं . अपने परिवार का वैभव और महत्व बढाने को ही चिंतित हैं , जो उन्हें क्रियाशील रखे है .

द . 80 वर्ष से अधिक के ग्रामीण परिवेश के ना तो कोई ज्यादा सम्मान , ना ही धन कमाने की चिंता है . घर परिवार में बहुत पर्याप्त कुछ नहीं पर, पुत्र जीवन यापन जितना जुटा ही लेगा विश्वास है . फिर भी कृषि कार्य में अब भी लगे हुए हैं . सोचते हैं , कृषि कला है जिसमें वे दक्ष हैं . उसमें सक्रिय रहने से कुछ अनाज उत्पादन बढ़ता है . जो परिवार और दूसरों के उदर पूर्ती को मिलेगा तो संतुष्टि मिलेगी . बदले में सादा रहन सहन के कारण कोई मान तो नहीं मिल सकेगा . फिर भी इस उम्र में सक्रिय रहते हैं .जब तक जीवन है श्रम करते रहना चाहते हैं .

इ . 80 वर्ष के हैं .कुछ शारीरिक परेशानी ने मनोबल तोड़ दिया कुछ करने की इक्छा नहीं होती . घर में कमाया पर्याप्त है . पर दवाई पर व्यय करते बेटे को अच्छा नहीं लगता . उपेक्षा से और उदास हो जाते हैं सोचते हैं, जल्दी मृत्यु आ जाए तो अच्छा है .
फ . अति व्यस्त जीवन शैली , योग्यता अनुरूप महत्वाकांक्षा या जीवन सपनों के ना होने और अनियंत्रित जिव्हा तुष्टि के खानपान के कारण उत्पन्न तनावों और शारीरिक तथा मानसिक रोगों में बहुत 70 वर्ष से कम जीवन में ही दुखद विदाई लेकर अपने स्वयं के साथ अन्याय और आश्रितों को दुखी और निराश छोड़ जाते हैं .


हम दोष ढूँढने वाली अपनी दृष्टि दूसरों पर केन्द्रित कर , उनमें बुराई पा तिलमिला रहे हैं . आश्चर्य करते हैं ,इतना बुरा करते दूसरे कैसे आत्मग्लानि , लज्जा बोध या किसी तरह के पछतावे में पड़ने से कैसे बच सकते हैं ? क्यों नहीं सुधरते , सुधरें तो देश और समाज सुधरे .

जबकि बुराई भांप ने वाली हमारी  यह प्रखर दृष्टि स्वयं में कोई बुराई नहीं देख पाती .

समुचे सामाजिक परिदृश्य के लिए पूर्व राष्ट्रपति , अपने व्यवसायी पिता , एक तथाकथित सेलिब्रिटी (कोई भी हो सकता है ) तथा जनसामान्य में से वरिष्ठ व्यक्तियों को कल्पना पटल पर लाते हुए , सामाजिक दोष और बुराई पर हमारे स्वयं के व्यवहार और दृष्टिकोण को रखने का प्रयास किया है . .
यद्यपि अ,ब एवं द में उल्लेखित तरह की सोच और व्यक्तित्व दिनोंदिन बिरले होते जा रहे हैं . पर इनके अस्तित्व से यह विश्वास तो करना होगा कि जीवन में वैयक्तिक भोग से परे समाज , परिवार और देश के हित के लिए भी जीवन जीने या समर्पित करने की परंपरा रही है .

उल्लेखित स , इ एवं फ में वैयक्तिक भोग , छद्म आधुनिकता की प्रति स्पर्धा , देश और समाज के प्रति दायित्वों के प्रति उदासीनता की प्रवृत्ति प्रधान होते हुए अधिकाँश के मन और कर्म पर हावी होते जा रही है . अगर हम अपने समाज और देश की भलाई के लिए अपने अनैतिक हितों को तिलान्जित करने का साहस नहीं कर सकते तो क्या लाभ हमारे उच्च शिक्षित होने का या युवा या बलवान होने का ?

आधुनिकता या उच्च शिक्षा सिर्फ जीवन में वैयक्तिक भोग और इस से दुष्प्रेरित दूसरों के अधिकारों पर झपटना उनकी निजता का उल्लंघन को ही अगर दुष्प्रेरित करती है . तो यह आज के मानव समाज के साथ ही आगामी हमारी संतति के लिए सर्वथा अनुचित है .
हमें आधुनिकता की परिभाषा में और हमारी शिक्षा में व्यक्तिगत उपभोग और दूसरों के नैतिक अधिकार के लिए प्रत्येक के छोटे छोटे त्याग और संवेदना का एक उचित संतुलन शामिल करना चाहिए .
यह ऐसा उपाय है जिससे उन बुराई से हमें निजात मिल सकती है . जिसे अनुभव कर या शिकार हो हम व्यथित होते हैं और जब तब आंदोलित होते हैं . फिर यह ज्वार कुछ समय में शांत हो जाता है .जबकि बुराई अविराम जारी रहती हैं .
इतिहास या अपने पूर्वजों से जो सूचनाएं हम  पाते हैं वे दर्शाती हैं , किसी भी समय का मनुष्य समाज बुराई विहीन नहीं रहा है .  बुराई 100 वर्ष पहले भी अस्तित्व में थीं , 200 वर्ष पहले भी और इसी तरह 2000 या 10000 वर्ष पूर्व भी . बुराई के बारे में जो भिन्नता मिलती है, मात्र  बुराई के प्रकार कालांतर में बदले होते हैं तथा बुराई की मात्रा में अंतर मिलता है .

पहले समाज में छुआ-छूत और अन्धविश्वास बड़ी बुराई थी अब ये कम हैं तो दूसरी ज्यादा हैं . साथ ही जीवन स्वचालित सुविधा-विहीन और कम विज्ञान उन्नति का था अब ज्यादा उन्नत है ,सुविधापूर्ण है . बुराई की मात्रा भूतकाल में कितनी भी थी , अभी की तुलना में शायद हमेशा कम ही रही होगी (जो इसलिए भी लगता हो सकता है क्योंकि हमें भूतकाल की अच्छाई स्मरण रहती है और वर्तमान की कठिनाई ) . सच भले ही ऐसा ना हो पर आज की बुराई मात्रा देखना और सहना अनुचित लगता है . आज हम स्वयं को उच्च शिक्षित ज्यादा और सभ्य कहते हैं . अगर ऐसा है तो हमारी बुध्दिमानी और पढ़ा लिखा होना किस काम का , जब हम हमारे समाज और देश से इन बुराई को कम नहीं कर सकें तो .
हमने आधुनिकता के नाम पर जिन पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण किया है . वे असफल सामाजिक व्यवस्था हैं , जिसमें परिवार इकाई का अस्तित्व खतरे में है . और जहाँ मनुष्य मनुष्य ना रह रोबोट की भांति संवेदना शून्य होता जा रहा है . जो मनुष्य जीवन के अनमोलता को विस्मृत कर रहा है . जहाँ जीवन उदेश्य सिर्फ सुविधाओं और उपभोग में सिमटता जा रहा है .

ऐसी पाश्चात्य सभ्यता को अपने मनोमस्तिष्क पर हावी होने देना स्वयं अपने पर अत्याचार है, अन्याय है . तथाकथित सेलिब्रिटी जो इस पाश्चात्यता की जननी है के हमें  पथगामी नहीं होना चाहिए . हमारे अपने देश और समाज के हमारे सच्चे नायकों के पदचिन्हों पर हम चलें . हम इतना सच्चा समाज बनायें जिससे यह पाश्चात्यता हमारे पीछे चल वापस रोबोट से मनुष्य होना आरम्भ करे . और यह जाने की कम बुराइयों में मनुष्य जीवन का आनंद क्या होता है ?

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