Wednesday, February 6, 2013

स्व-आलोचक


स्व-आलोचक
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कुछ वर्षों के घटनाक्रम पर दृष्टि डालें . देश कुछ हादसों /आन्दोलन का प्रत्यक्ष-दृष्टा बना जब , महानगरों से लेकर दूरस्थ ग्रामों के महत्वपूर्ण से लेकर अति साधारण नागरिकों तक ने जिस पर गंभीर चिंतन -चर्चा और सक्रिय भागीदारी और जागरूकता प्रदर्शित की . ये थे
* घुसपैठी आंतकियों द्वारा मुंबई में होटल ताज़ ,रेलवे-स्टेशन और अन्य स्थानों पर अंधाधुंध फायरिंग (गोलियाँ बरसा कर ) सैकड़ों निर्दोषों की जान ले ली और अपनी... भी गंवाई .

* दिल्ली में , भारत के बाहर भेजा गया कालाधन ( बैंक में जमा किया गया ) , को वापस भारत लाये जाने की मांग के साथ भारत के विभिन्न हिस्से से आंदोलनरत नागरिकों ने प्रदर्शन किया उत्पन्न संघर्ष से घायल एक महिला को जान तक गंवानी पड़ी .

* बढ़ गए भ्रष्टाचार के रोकथाम के लिए दोषियों पर कार्यवाही की नीयत से दिल्ली में लाखों नागरिकों ने इकट्ठे हो कई दिनों तक शांतिपूर्ण आन्दोलन किया .

* दिल्ली की सड़कों पर चलती बस में दुस्साहिक रूप नारी शोषण का घिनौना कृत्य (बहुत पुराना घोर निंदनीय अपराधिक प्रकरण की दुखद पुनरावृति ) किया गया . पीडिता जीवन से संघर्ष करते तेरहवें दिन हार गई . उसकी अकाल मौत से पाषाण ह्रदय मानस के नयन भी अश्रुपूरित हुए  . ( देश के विभिन्न हिस्से में ये कुकृत्य प्रतिदिन दोहराए जा रहे हैं )

* देश की सीमा पर तैनात (देश के ग्रामीण क्षेत्रों के ) दो साहसी फौजियों को दुश्मन के द्वारा न केवल निर्दयता से मार डाला अपितु उनके शव के साथ भी पैशाचिकता प्रदर्शित करते उनके सर सहित विभिन्न अंगों को धड़ से पृथक कर गायब कर दिया गया . पूरा देश पुनः उद्वेलित हुआ . दो सैनकों के शव का असम्मान हरेक को स्वयं अपना अपमान भी लगा . परिवार और हर सच्चे मनुष्य को , सभ्यता के इस काल में इस तरह के उत्पन्न कारुणिक दृश्य से गहन मानसिक वेदना हुई .

सभी उपरोक्त बातें , अलग अलग मंचों से अलग अलग विचारकों से और विभिन्न पक्षों से अपने अपने पूर्वाग्रहों अनुसार विभिन्न तरह से निरुपित और चर्चा में रही हैं और आगे भी रहेंगी . इस तरह या इस से भिन्न पर इतनी ही दुष्प्रभाव /प्रभाव कारी घटनाएं पहले भी हुईं हैं . हमारा दुर्भाग्य/भाग्य आगे भी घटित होती जायेंगी .

दुर्भाग्य यह भी है , कुछ लोग कितनी भी गंभीर और दुखद घटना हो , अपने हित आग्रहों अनुसार उसे सही भी ठहराते देखे जा सकते हैं . साफ़ है अपने पूर्वाग्रहों , अन्धविश्वास , अंध-श्रध्दा और अज्ञानता के कारण उन्हें  दोष उनमें दिखाई देगा जो निर्दोष है .

इसे हम मानसिक रोग कहेंगे . वह अस्वस्थ आचार -विचार मन में घर किये हुए हैं . जिसके कारण दूसरों की प्रताड़ना से स्वयं हर्षित होते हैं (sadism ) .

तमाम इस तरह के दुखद घटनाक्रमों के उपाय अपने अपने तरह से सब सुझाव रूप में सामने लाते हैं . सही भी है . जिस तरह घाव कोई हो जाए . हम उपचार करते हैं . पहले घाव की ड्रेसिंग ( सफाई ) की जाती है . फिर उसपर मलहम का कपास रखा जाता है . फिर पट्टी (बेंडेज ) बांध दी जाती है . खाने को दवाई भी साथ दी जाती है . गंभीरता अनुसार इंजेक्शन भी लग सकते हैं . नियमित अन्तराल में घाव को जांच और पुनः पट्टी बदलना भी पड़ सकता है .

सामाजिक बुराइयाँ भी समाज के अधिकाँश सदस्यों के मन में विभिन्न तरह के ख़राब विचारों , स्वार्थ-लिप्सा , सुविधा-लोलुपता और वैयक्तिक भोगवाद की लालसा के कारण एक रोग के भांति हैं . विभिन्न स्तर और प्रकार से रोकथाम इन मानसिक अस्वस्थता के लिए जरुरी है . व्यवस्था में सुधार , कड़े क़ानूनी प्रावधानों और दंड प्रावधानों से तो की ही जा सकेगी . परन्तु साथ साथ ही मनुष्य ह्रदय स्व-सोच में से ये रोगी विचार , तर्क ,लालसाएं और जीवन शैली का कम किये जाने के उपाय भी करने होंगे .
इसके लिए प्रत्येक को आत्म-अवलोकन करना होगा गलत सिध्दांत , गलत सोच या छद्म नायकों जिनका अनुशरण करने से ये बुराइयाँ पनप रहीं हैं .उन्हें तजने की वीरता दिखाए बिना हम आज की सामाजिक बुराइयों और दुखद घटनाक्रमों से मुक्त नहीं हो सकते .
हमें यह सोचना होगा जिस तरह हम अपने बच्चों को अच्छा घर उनके जीवन के लिए सुनिश्चित करना चाहते हैं , उसी तरह एक समाज बनाना /व्यवस्था बनाना भी सुनिश्चित करें . कितना भी अच्छा घर यदि वह एक स्वस्थ समाज (आसपास यही है ) में नहीं विद्यमान है तो उसमें निवासरत हम और बच्चे बेखटके जीवन यापन नहीं कर सकते . आसपास की बुराइयाँ जब तब इस घर के भीतर घुसपैठ करती रहेंगी . और हम जब-तब दुखी होते रहेंगे .
हमें अपने हित के साथ समाज के हित की भी चिंता करनी होगी . इसके लिए हमें जो प्रिय (जो सामाजिक दृष्टि से अप्रिय हैं ) अपनी आदतों को स्वतः तजने का साहस प्रदर्शित करना होगा .
पर -आलोचक तो हम सभी हैं . हमें स्व-आलोचक भी स्वयं बनना होगा . तभी समाज से बुराइयाँ कम की जा सकेगी . अन्यथा बारी बारी बुराइयों के दुष्प्रभाव भुगतते रहना होगा . चाहे जितने भी सुरक्षित भवनों में हम रहते हों .

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