नारी समस्या के समाधान के सतही प्रयास ..
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अगर यह कहें कि नारी जीवन में समस्याओं के समाधान के जो भी प्रयास अब तक किये गए हैं वह सतही ही हैं इसमें तनिक भी अन्योक्ति नहीं होगी। ठीक वैसे ही जैसे धरती पर उग गया विषैला पौधा छटनी कर दिया गया हो। नारी विरुध्द अपराध की रोकथाम के कानून , नारी के लिए दैनिक जीवन में सावधानी के परामर्श या बाह्य खतरों से बचने के लिए उनका घर से कम निकलना और पर्दों और बुरकों के पीछे छिपे रहना यह सब सामान्य परिस्थितियों में ही पर्याप्त सिध्द होता है। असामान्य परिस्थिति जैसे कौमी दंगे , बाहरी देशों के आक्रमण आदि में, दुश्मन में पुरुषों से अधिक नारी को लक्ष्य किया गया है, सुबूत में देखें इतिहास में अनेकों घटनायें मिलती हैं। करीबी इतिहास पर ही दृष्टि डालें तो देश के विभाजन, श्रीमती इंदिरा गाँधी हत्याकांड के बाद भड़के दंगे, गोधरा कांड के बाद के दंगे आदि देखने मिलेंगे जिसमें (जिसे माना) दुश्मन उसे बेइज्जत , उस पर दबाव बढ़ाने , उसे सुरक्षात्मक रहने को बाध्य करने की नीयत से (साथ ही अपनी कुत्सित हवस की पूर्ति के लिए) उनकी औरतों पर दुराचार (और अनेकों पर इस सीमा तक यौन शोषण जिसे बर्दाश्त न करने पर वे मारी गईं हैं), हत्या आदि उदाहरण बहुतायत में मिलते हैं।
विडंबना यह है कि जब जब ऐसे हालात पैदा हुए हैं , उसे उत्पन्न करने के लिए कभी कोई नारी नहीं पुरुष ही जिम्मेदार रहे हैं। साफ़ है हर कौम ने अपने आक्रोश में शिकार अपने दुश्मन नस्ल की नारी को बनाया है, जो कसूरवार कभी नहीं थी। ये ही घटनायें हैं जिसने विवशता में परिवार, समाज और धर्म में मनुष्य को उस मानसिकता के लिए विवश किया जिसके रहने से बेटे और बेटी की जन्म से, आजीवन तक की परवरिश और उसके जीवन यापन की पध्दति ही बिलकुल अलग कर दी गई है। यही मानसिकता कारण रही है कि समान मनुष्य होने पर नारी और पुरुष समानता से नहीं देखे जाते हैं। और नारी अभिशप्त सा जीवन जीने को बाध्य होती है। इसलिए यह लेखक नारी उन्नति के सारे उपायों को सिर्फ नारेबाजी करार देता है और अब तक दिमाग में उत्पन्न उपायों को सतही का विशेषण देता है।
(जारी ... )--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05.01.2019
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