जहन में रहे यह बात कि कद्र किसी के होने पर रहे
न रहे कोई फिर कद्र की तब सिर्फ पछतावा ही होगा
1947 तक भारत विशाल होता था जिसके अब तीन टुकड़े हैं। जब एक भारत था इस के सारे क्षेत्र में सभी बेरोक टोक कहीं भी जाकर रह सकते थे , कहीं भी व्यवसाय या सर्विस कर सकते थे कहीं भी आया जाया करते थे। अब पेशावर या ढ़ाका जाना चाहें तो सौ विचार / औपचारिकतायें और वहाँ से कोई आना चाहे तो वह भी लाचार।
गर हद हम किसी के ऊपर तय करें तो
एक हद खुद हमारे पर भी तय हो जाती है
न रहे कोई फिर कद्र की तब सिर्फ पछतावा ही होगा
1947 तक भारत विशाल होता था जिसके अब तीन टुकड़े हैं। जब एक भारत था इस के सारे क्षेत्र में सभी बेरोक टोक कहीं भी जाकर रह सकते थे , कहीं भी व्यवसाय या सर्विस कर सकते थे कहीं भी आया जाया करते थे। अब पेशावर या ढ़ाका जाना चाहें तो सौ विचार / औपचारिकतायें और वहाँ से कोई आना चाहे तो वह भी लाचार।
गर हद हम किसी के ऊपर तय करें तो
एक हद खुद हमारे पर भी तय हो जाती है
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