अपनी हस्ती को मैंने जमीं पर रखा
गिरा कई बार मगर सलामत मैं रहा
इक हसरत मेरी, शोहरत तेरी आसमां छू ले
औ इल्तजा खुदा से, कि टिकाये उसे रख दे
शिक़वा मैं कोई ज़िंदगी से नहीं करता
मेरी ज़िंदगी मेरे खुदा की दी नेमत है
गिरा कई बार मगर सलामत मैं रहा
इक हसरत मेरी, शोहरत तेरी आसमां छू ले
औ इल्तजा खुदा से, कि टिकाये उसे रख दे
शिक़वा मैं कोई ज़िंदगी से नहीं करता
मेरी ज़िंदगी मेरे खुदा की दी नेमत है
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