Wednesday, August 29, 2018

अम्मी नज़मा और डॉक्टरेट बेटी आयशा

अम्मी नज़मा और डॉक्टरेट बेटी आयशा

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मुस्लिम परिवार में छह बच्चों में , चार बेटियों में तीसरे नंबर की आयशा , अपने सभी भाई बहनों में सबमें कम आकर्षक या कहिये साधारण से कमतर सूरत की थी. थोड़ी बड़ी हुई तो यह बात उसे समझ आने लगी थी। और किसी को तो उसके हीनताबोध के तरफ ध्यान देने की फुरसत न थी मगर अम्मी नज़मा के विशेष स्नेह और करुणा को आयशा समझ रही थी। नज़मा लालन पालन में विशेष ख़्याल इस बात का करती कि आयशा की जन्म से मिली कमी की प्रतिपूर्ति उसके अच्छे गुणों से की जा सके। जब और भाई बहन अपने रूप सौंदर्य के बलबूते इतराते फिरते , आयशा पर नज़मा के विशेष परवरिश का परिणाम यह रहा कि वह पढ़ने में बेहद कुशाग्र थी।

बड़े होने के साथ उसके भाई बहन कोई बारहवीं तो कोई जैसे तैसे कला संकाय से ग्रेजुएशन कर सके ,मगर आयशा ने इंजिनियरिंग में गोल्ड़ मेडल हासिल किया। अपने रूप लावण्य के बल पर आयशा की बहनें , पसंद की गईं और 20-21 के होते होते उनकी शादी हो गई , यहाँ तक की उससे छोटी बहन आफरीन का भी विवाह कर दिया गया। कमसूरत और इतनी ज्यादा पढ़ी लिखी आयशा में लड़के वालों की रूचि नहीं होने से , 23 साल की आयशा ने अपनी अम्मी की पैरवी से अब्बा से पीएचडी की सहमति प्राप्त कर ली। पीएचडी का विषय लिया - "मुस्लिम औरतों की सामाजिक दशा".

कमी को अपनी शक्ति में बदलने को चरितार्थ करते हुए आयशा ने 27 वर्ष की होते तक पीएचडी पूर्ण कर ली। उसकी प्रतिभा से प्रभावित एक युवक ने उससे विवाह प्रस्ताव किया तो आयशा ने यह कहते हुए उसे अस्वीकृत कर दिया कि मुस्लिम समाज में जागरूकता की कमी है वह इस हेतु और विशेष तौर पर मुस्लिम बहनों - बेटियों की उन्नति के लिए कार्य करना चाहती है , जबकि उससे शादी करने पर वह मुस्लिम नहीं रह जायेगी , तब उसकी गंभीरता से सुनवाई मुस्लिम समाज में नहीं हो सकेगी. ऐसे में उसने हासिल शिक्षा का लाभ समाज को नहीं मिल सकेगा . इस प्रस्ताव की जानकारी आयशा ने नज़मा को तो दी किंतु दोनों ने गृह शांति के नज़रिये से परिवार में सभी से गोपनीय ही रक्खा।

पीएचडी और 27 की हो जाने पर फ़िक्र में अब्बा ने उसकी शादी के लिए दौड़ धूप तेज की और किसी तरह से एक लड़के और उसके परिवार से उन्हें हामी मिली . लड़का सरकारी विभाग में क्लर्क ही था , तब भी आयशा ने नज़मा से कहा कि वह इस पर भी तैयार हो जायेगी , बस असलम से पहले आधे घंटे एकांत में चर्चा कर लेना चाहती है। अब्बा को इस बात के लिए राजी करना कठिन था , लेकिन लाड़ली बेटी के लिए इस दुष्कर कार्य का जिम्मा नज़मा ने लिया और अब्बा से सहमति करवा ली।

असलम से भेंट में आयशा ने साफ़गोई से पूछा कि - आपके ख़्याल मुस्लिम औरतों के मामले जैसे तीन तलाक , बुर्क़ापरश्ति या हलाला आदि को लेकर कैसे हैं? असलम ने जबाब में कहा इस संबंध में वह प्रगतिशील विचार रखता है। आयशा ने तब पूछा क्या आपको मेरी डॉक्टरेट के विषय की जानकारी है? असलम के हाँ में सिर हिलाने के बाद आयशा ने पूछा शादी बाद  मुस्लिम में जागरूकता के लिए चाहे जाने पर , कार्य करने के लिए मुझे आज़ादी दे सकोगे? असलम तनिक विचार में पड़ा , वह आयशा जैसी हाइली एजुकेटेड लड़की को खोने का खतरा नहीं उठाना चाहता था , इस प्रश्न पर कन्फूज्ड होने पर भी प्रकट में उसने कहा , बिलकुल आयशा मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।

आयशा ने आश्वस्त होकर शादी के लिए हामी भर दी। असलम और आयशा की शादी संपन्न हुई। ससुराल का माहौल दक़ियानूसी ही मिला , उसके लक्ष्य उसे कठिन होते लगे . ऐसे में असलम से भी बच्चा पैदा करने के सवाल पर आयशा की कहा-सुनी हो गई। आयशा ने कहा उसने अपने घर में ज्यादा भाई - बहन होने से कई बातों के लिए उन्हें तरसते देखा है . यह भूल वह नहीं करना चाहती , साथ ही एक-दो बच्चे करने के लिए बहुत जल्दबाजी उचित नहीं। असलम ने इस पर उसे अत्यंत गुस्सा दिखाया। इस बात से नाराज आयशा अगले दिन मायके आ गई . आयशा ने नज़मा को बताया तो वे चिंता में पड़ गई किंतु उन्होंने अब्बा को भनक नहीं लगने दी। खैर सातवें दिन असलम आ गए आयशा से मनुहार कर साथ वापिस चलने को राजी किया।

 आयशा ने वापिस आकर टीवी न्यूज़ चैनल पर आयोजित चर्चा कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए अपने पीएचडी के विषय की जानकारी सहित चैनलों से संपर्क शुरू किया और एक दिन एक प्रतिष्ठित चैनल से उसे आमंत्रण मिल गया। ससुराल वालों ने आपत्ति की लेकिन असलम , आयशा की नाराज़ी की रिस्क नहीं लेना चाहता था। इसलिए उसने परिवार वालों को राजी किया। लाइव शो के पश्चात जब आयशा घर वापिस पहुँची तो घर में सभी की भृकुटि तनी हुई थी। रात में असलम ने उसे बताया कि , प्रोग्राम में मुस्लिम औरतों की दशा पर उसके बेलाग कथन घर में पसंद नहीं किये गए हैं।

आयशा की मंजिल कठिन थी , लेकिन एक कार्यक्रम की शिरकत ने टीवी चैनलों से ऐसे कार्यक्रम के आमंत्रण आयशा को सुलभ कर दिए। घर से प्रतिरोध और असलम के समर्थन की रस्साकसी में कुछ ही अर्से उसे एक दो तीन फिर कई प्रोग्राम में हिस्सा करने का मौका मिला। इससे मन ही मन असलम खुश था कि उसे और उसके परिवार को जहाँ कोई जानने वाला नहीं था , अब उनके जानने वाले बहुत बढ़ रहे थे। आयशा की जिद , असलम की बैकिंग के सामने परिवार चुप था। मगर कट्टरपंथियों की इस पर संभावित प्रतिक्रिया को लेकर आयशा के ससुराल और मायके दोनों में ही भय और आशंकायें व्याप्त थीं। हालाँकि दोनों ही परिवार अपितु उनके पास-पड़ोस के घरों की महिलायें , आयशा के तर्कों से मन ही मन सहमत कर रहीं थीं। आयशा के मोबाइल पर दोनों ही तरह के कॉल्स बढ़ गए थे। फेसबुक में फॉलोवर पहले 25-30 से अब 2 लाख से ऊपर पहुँच गए थे . उसके रूप की कमी उसकी समझदारी ने मिटा दी थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह अपने लिए नहीं मुस्लिम समाज में जागृति के लिए जी रही थी।

ऐसे में एक दिन टीवी शो में आयशा को अदालत के कटघरे में खड़ा किया गया , आरोप यह लगाया गया कि - "वह डॉक्टरेट है किंतु देश और समाज में अल्पसंख्यकों पर ढाये जा रहे जुल्म के ख़िलाफ़ आवाज नहीं उठाती।"
आयशा ने सफाई में कहा - "मैं डॉक्टरेट हूँ इसलिए ऐसा नहीं करती हूँ , मैं जानती हूँ क्रिया की प्रतिक्रिया होगी। बँटवारे के हादसों से भरी नफरत से प्रतिक्रिया और उस पर प्रतिक्रियाओं का सिलसिला सत्तर से अधिक वर्ष होने पर भी जारी है। हमारी आजादी के समय की पीढ़ी ने देश छोड़ने की जगह यहाँ रहने का विकल्प चुना था। हम पर यह दायित्व है , उनके इस निर्णय को सही सिध्द करें। इस देश में ही जन्मे होने से इस देश को अपनी रूह तक से अपना मानने की जरूरत है , परस्पर दोषारोपण से कोई समाधान नहीं। अपने कर्तव्य को पहचानने की जरूरत है। हमारे से इस देश को इस समाज को अपेक्षा क्या हैं , हमें उसके अनुरूप व्यवहार और कर्म करने की जरूरत है। हमारा यह मानना गलत है कि इस्लाम की भलाई इस्लामिक देश में हो सकती है। हम देख सकते हैं कि गैर इस्लामिक देश में मुसलमान उनकी औरतें बेटियाँ  इस्लामिक देशों की तुलना में बेहतर और प्रगतिशील ज़िंदगी जी रहे हैं। इसलिए मैं जुल्म के खिलाफत से ज्यादा , ज़ुल्म की परस्थितियाँ मिटाने को अपनी आवाज देती हूँ। " आयशा के तर्क कट्टरता के पैरोकार मुसलमानों को तो नागवार लगे , किंतु अन्य के लिए ये वैचारिक प्रेरणा बन गए। अख़बारों ने आयशा पर आलेख छापे। अब आयशा की पहचान एक समाज सुधारक के रूप में बनने लगी थी।

ज़िंदगी में लंबे समय तक सब कुछ कहाँ ठीक चलता रह सकता है। एक सुबह आयशा के अब्बा ने बताया , सबेरे चार बजे अचानक कार्डियक अरेस्ट के कारण अम्मी नज़मा चल बसी हैं । आयशा की प्रेरणा , आयशा की मनोबल , आयशा की जान , अम्मी जान का जाना , आयशा के लिए दुनिया में सबसे बड़ा सदमा था। उसे उबरने में बहुत वक़्त लगा।

बड़ी सजींदगी से एक रात आयशा ने असलम से कहा - अम्मी नज़मा ने एक सच्ची इंसान , मुझे पैदा किया था। उस परम्परा को वह आगे बढ़ाना चाहती है। उसका वक़्त आया है अब वह एक औलाद पैदा करना चाहती है जो नेक इंसान हो और साथ ही भारत की सच्ची/सच्चा नागरिक भी।
असलम पहले ही धन्य था अपनी पत्नी रूप में आयशा को पाकर। उसने इस बात पर प्यार से आयशा को देखते हुए , उसे अपनी बाँहों में समेट लिया।

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

30-08-2018


 

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