Wednesday, August 22, 2018

'रिवायत ए नफ़रत' मिटाने का जिम्मा जिन पर
 मज़हब के बहाने - 'रिवायत ए नफ़रत' चलाये रखते हैं
#बेशर्मी_से_इसे_मजहब_कहते_हैं

परिवार तक में बैर होता है - बैर समाज से कैसे मिट सकता है
मगर
पूर्वाग्रही 'रिवायत ए नफ़रत' चलना - दुःखद अभिशाप लगता है

हम पर मरने वाले कुछ हैं मगर
हमें फ़िक्र ,
जलने वालों की होती है
जो व्यर्थ जला करते हैं

जब भी आक्रोशित नारी,पुरुषों को बुरा-बुरा कहती है
 सहज ही लगता है
अपनी आश्रिता रख पुरुष ने शोषण तो किया है उनका

एक साहस हममें यह हो कि
अपने अवगुणों को स्वीकार करें
दूजा साहस यह हो कि
उन अवगुणों से खुद को मुक्त करें


 

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