Saturday, August 11, 2018

उसने चाहा था ....

उसने चाहा था ....


बालक से बड़ा हो रहा था तो औरों के साथ बहुत कुछ ऐसा होते देखता जा रहा था , जो उसे स्वयं के साथ होते देखना कभी पसंद नहीं होता। इसलिए उसने चाहा था , कि
वह युवा से बूढ़ा कभी न हो , लेकिन उम्र के साथ वह बूढ़ा हो गया था।
उसने चाहा था , कि -
वह कभी किसी के आश्रित न हो , लेकिन बीमार और कमजोर होने पर बिस्तर पर पड़ अपने परिवारजनों के आश्रित हो गया था।
उसने चाहा था , कि -
उसके उपचार पर कोई ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ा , उसके बेटे - बहुयें , बेटी दामाद को उसके लिए परेशान नहीं होना पड़े , किंतु आखिरी के कुछ महीनों में नरम गरम हालत के चलते उसके उपचार पर बीस लाख रूपये का खर्च आया था , सभी परिजन उसकी सेवा सुश्रुषा एवं उपचार पर व्यय से तंग आ गए थे।
उसने चाहा था , कि -
जब अंतिम घड़ी आये उसे पीड़ा ज्यादा न हो किंतु कई महीनों बिस्तर पर रहकर उसने बहुत कष्ट सहे थे। अंतिम श्वाँस लेते वक़्त वह दुनिया से गुजरने का कोई मलाल नहीं करे , मगर ऐसी खराब हालत में भी उसे देहत्याग करने में भय हो रहा था। अंतिम समय उसके मलद्वार नाक , मुहँ साफ़ रहें , मगर यह भी नहीं हुआ था सभी जगह से रक्त गंदगी बाहर आई थी।
उसने चाहा था , कि -
जब उसकी अंत्येष्टि हो तो उसके जाने का दुःख करने वाले लोग ही अंत्येष्टि में शामिल हों , मगर यह तक नहीं हो पाया था - चार पाँच सौ की ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई थी जो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की मजबूरी में थी। अधिकाँश राजनीति , सिनेमा और व्यापारिक चर्चा में लीन रहे थे , कुछ तो पान-गुटका , सिगरेट का सेवन करते हुए हँसी ठिठोली कर रहे थे।

कुछ भी तो नहीं लग रहा था जो उसके चाहे अनुसार हुआ था , लेकिन उसका तो देहावसान हो चुका था वह इस हेतु पश्चाताप करने के लिए भी नहीं बचा था कि व्यर्थ वह अपने रूप पर आत्ममुग्ध रहता था। बेकार अपनी शिक्षा , ज्ञान और अर्थ अर्जन से स्वयं में गर्व बोध करता था। भ्राँति में जीता था कि पत्नी , बच्चे , उसके नाते-रिश्तेदार और उसके मित्र सच्चे और उसे बेहद प्यार करने वाले हैं। जीवन में पाले अपनी हैसियत और शक्ति का घमंड और उसका श्रेष्ठता-बोध सभी तो मिथ्या सिध्द हुआ था।
दुखद आश्चर्य यह भी था कि उसकी ऐसी परिणीति से कोई कुछ समझने को भी तैयार नहीं था  .....

राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
12-08-2018

 

No comments:

Post a Comment