Friday, August 10, 2018

'आम' , कोई नहीं होता यहाँ
खुद के लिए -
सूरत , हसरतें , ख़्वाब , मंसूबे ,
ज़िंदगी और इरादे उसके 'खास' होते हैं

चलिए अब से उसूल हम ऐसे कर लेते हैं
जिद कोई नहीं ,
भली हर बात आपकी या हमारी मान लेते हैं


अधूरे रह गए सभी के कुछ ख्वाब
अधूरे कुछ ख्वाब हमारे भी रहेंगे

जिसे तुम्हारी रुखाई समझ - हम शिकायत रखते थे तुमसे
थे तुम जीवन संघर्ष में व्यस्त - ये जान अपने पर अफ़सोस हुआ

आपसे ऐसी उम्मीद न थी कि
 निर्दयता से वह खुशफ़हमी तोड़ देंगे
 जिससे हमें ज़िंदगी अपनी
 जीने लायक लगा करती थी

किसी बेचारे की तो - जाँ पर बन आई
बेदर्द आप - उस पर आपको हँसी आई





 

No comments:

Post a Comment