Wednesday, June 10, 2015

मैं , नारी हूँ

मैं , नारी हूँ
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गर्भ से ही , मेरी चुनौती आरम्भ होतीं हैं
मार दी न जाऊँ तो ही जन्म लेती हूँ

बेटी तो, पापा की लाड़ दुलारी होती हैं
बाहर , कुदृष्टि के तीरों से आहत होती हूँ 

बेटी पर बेटे की तुलना में पाबंदियाँ होती हैं
उन्नति अवसर न मिलते मन मार लेती हूँ 

शादी किसी के बेटे का ,मुझ बेटी से होती है
पापा, को नतमस्तक देख पीड़ा सह लेती हूँ

प्रेमिका रहती जब तक नारी प्रिया होती हैं
पत्नी होकर मिलती ,पति उपेक्षायें ,सहती हूँ

माँ , छोटे बच्चों की प्राण से प्यारी होती हैं
बढ़े हुये ,एकतरफा उनसे ममता रखती हूँ

नारी यौवन-रूप जब तक ,आकर्षण केंद्र होती हैं
घटते ही ,दूध की मक्खी सी निकाल फेंक दी जाती हूँ  

मनुष्य हूँ , स्वाभिमान मेरे भी होते हैं
ना चाहूँ साथ तो बहलावे-फुसलावे देखती हूँ

मनुष्य होकर मैं ,जानवर सी प्रयोग की जाती हैं
क्योंकि पुरुष नहीं , मूक सी ,मैं नारी रहती हूँ

क्या लूँ बदला , सब तो मेरी संतान होती हैं
बदलूँगी अब लेकिन स्वयं , मैं नारी कहती हूँ
--राजेश जैन
11-06-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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