Friday, June 5, 2015

मनुष्य

मनुष्य
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उसकी दृष्टि लगभग पचास मी. आगे पड़ी और उसके कदम अचानक तेज हो गये।
वह तब पीछा कर रहा था , - धन का नहीं , राजनैतिक पार्टी का नहीं , सिनेमा का नहीं , किसी सेलेब्रिटी का नहीं , किसी नारी का नहीं।  और तो और किसी धर्म का भी नहीं।
वह पीछा कर रहा था -...
सामने रास्ते पर लकड़ी से टटोलते , सुबह भ्रमण को निकले , राजकुमार कुरील साहब का जो दृष्टिहीन थे। उनको पथ-प्रदर्शन के लिये , उनके भ्रमण को सरल करने के विचार ने उसके कदमों को स्फूर्त कर दिया था।
दो -तीन मिनट में साथ आ कर अब वह उनकी लकड़ी थामे , उन्हें अपने साथ चला रहा था। उसके मन में विचार कौंध रहे थे। उसे लग रहा था , उसके कदमों में आई व्यग्रता , मानवता की दिशा की ओर बढ़ने की प्रेरणा के कारण थी।
इस समय उसे लग रहा था जैसे वह अपने आप को मनुष्य सिध्द कर सक पा रहा था …

--राजेश जैन   
06-06-2015

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