Friday, June 26, 2015

अग्रणी भी किन्तु - आशंकित नारी

अग्रणी भी किन्तु - आशंकित नारी
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बच्चे के प्रश्न पर एक युवा डॉक्टर कहती हैं ,  देश में जनसंख्या समस्या है , और देश का ढाँचा और अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती जनसंख्या को झेल पाने में अपर्याप्त है अतः राष्ट्र का प्रश्न है तो एक ही संतान (चाहे बेटी या बेटा) होना चाहिये। यह कथन ,उस जिम्मेदारी और राष्ट्रनिष्ठा को अभिव्यक्त करता है , जिसकी हमारे समाज और देश को , प्रगति और खुशहाली की दृष्टि से जरूरत है। नारी देश हित में विचारशील है , सहयोग करने को तत्पर है। उनका स्वयं का एक नौ वर्षीय बेटा है। किन्तु अगला कथन , अग्रणी नारी को भी आशंकित किये हुये है , वे कहती हैं  …
एक बच्चा तो होना चाहिये , अन्यथा समाज के दबावों को झेलना कठिन चुनौती है।
राष्ट्रहित की अनिवार्यता और समाज की सोच में , यहाँ विसंगति परिलक्षित होती है। देश में ऐसी अनेक विसंगतियाँ हैं इसलिये हम 68 वर्ष की स्वतंत्रता के बाद भी देश को वाँछित उन्नति दिलाने में असमर्थ रहे हैं। 
एक बड़ी विसंगति है , नारी जो जनसंख्या का आधे से थोड़ा ही कम हिस्सा है , असुरक्षित है , नित अपमानित है , उनकी शिक्षा और जीविकोपार्जन में पग पग पर चुनौतियाँ हैं।
हम अनदेखा कर रहे हैं , अपने स्वार्थ और वासना में उन्हें शोषित करते जा रहे हैं। आधी जनसँख्या को यदि हम कुंठित रखेंगें तो उनके साथ ही उनसे गुथे -बुने अपने जीवन को भी सुखदता से जी पाने से हम वंचित रहेंगे।
--राजेश जैन 
26-06-2015

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