Thursday, June 11, 2015

भय लगता है

भय लगता है (पुरुषों से अतिरिक्त नारी भय)
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द्वार-बाहर …
कॉलेज ,ऑफिस में पास बैठ कोई हरकत न करदे इससे …भय लगता है        …
सार्वजनिक जगहों में जाने पर अंगों को घूरती नज़रों से …भय लगता है
बस -ट्रेन, यात्रा, भीड़ में बहाने से रगड़ ना दे कोई इससे …भय लगता है
रूचि नहीं सम्पर्क नहीं मेरा ,उनकी मुझमें रूचि से मुझे …भय लगता है
घर -परिवार …
माँ -पापा उच्च शिक्षा अवसर देंगे या नहीं इस ख्याल से …भय लगता है
माँ -पापा को मेरे विवाह पर परेशानी होगी इस ख्याल से …भय लगता है
विवाह बाद अपरिचित परिवार में निभ सकूँगी ख्याल से …भय लगता है
शारीरिक-नारी संरचना …
किस अवसर किस जगह पीरियड आ जायेगें इस भय से …भय लगता है
माँ बनना तो ख़ुशी इसके पहले प्रसव वेदना के ख्याल से …भय लगता है
सामाजिक परिदृश्य …
पापा ,भाई ,पति एवं स्वयं मेरी ,मुझ पे खतरे की चिंता से …भय लगता है
--राजेश जैन
11-06-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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