परवाह होनी चाहिए
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दुनिया से ,हम अनेक शिकवे -शिकायत रखते हैं , ये कम रहें इसलिए हमें दुनिया की परवाह होनी चाहिए। परवाह होने पर ही हमारे कर्म -आचरण इस तरह मर्यादित हो सकते हैं जो अन्य को अप्रिय नहीं लगते हों। लेकिन , हम भूल करते हैं कि दुनिया को हमारी परवाह नहीं ,तो हम दुनिया की परवाह क्यों करें ?
वैसे तो समय के साथ मानव यात्रा स्वचालित (ऑटोमैटिक) चलती है , बिना विचारे भी रहें और अकर्मण्य रहें तो भी ऑटोमैटिक जीवन व्यतीत होता है। लेकिन ऑटोमैटिक चलने वाली किसी यात्रा का अंत सही लक्ष्य तक पहुँचेगा यह जरूरी नहीं है। वृक्ष से टूटकर फल नीचे ही गिरता है , जल प्रवाह ऊँचाई से नीचे की ओर ही होता है , दोनों ऑटोमैटिक बातें हैं।
मनुष्य बिना विचारे अपना जीवन ऑटोमैटिक चलने दे तो , वह ऊँचाई से नीचे (पतन) की ओर ही चलेगा। जीवन में हमें ऊर्जा मिलती है , उसका प्रयोग कर हमें पतन की ओर न चलकर , जहाँ उचित है , ऊँचाइयाँ हासिल करनी चाहिये। ऐसा करने पर ही हम समाज और संसार को ऐसी मंजिल पर ला सकेंगे , जहाँ हमारा ही नहीं अपितु अधिकाँश का जीवन सुखद हो सकेगा। और हमारे दुनिया से शिकवे शिकायत कम हो सकेंगे। अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ी और समाज के प्रति हमारे यह उत्तरदायित्व होते हैं। हम विचारशीलता से अपने कर्म -आचरण करें , ऑटोमैटिक नहीं बल्कि अपने जीवन के हर क्षण पर अपना नियंत्रण रख अपना जीवन जियें। स्वयं भी ऊँचाइयों को प्राप्त करें और अपने समाज को मधुरता की ऊँचाई पर स्थापित करें।
--राजेश जैन
22-06-2015
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दुनिया से ,हम अनेक शिकवे -शिकायत रखते हैं , ये कम रहें इसलिए हमें दुनिया की परवाह होनी चाहिए। परवाह होने पर ही हमारे कर्म -आचरण इस तरह मर्यादित हो सकते हैं जो अन्य को अप्रिय नहीं लगते हों। लेकिन , हम भूल करते हैं कि दुनिया को हमारी परवाह नहीं ,तो हम दुनिया की परवाह क्यों करें ?
वैसे तो समय के साथ मानव यात्रा स्वचालित (ऑटोमैटिक) चलती है , बिना विचारे भी रहें और अकर्मण्य रहें तो भी ऑटोमैटिक जीवन व्यतीत होता है। लेकिन ऑटोमैटिक चलने वाली किसी यात्रा का अंत सही लक्ष्य तक पहुँचेगा यह जरूरी नहीं है। वृक्ष से टूटकर फल नीचे ही गिरता है , जल प्रवाह ऊँचाई से नीचे की ओर ही होता है , दोनों ऑटोमैटिक बातें हैं।
मनुष्य बिना विचारे अपना जीवन ऑटोमैटिक चलने दे तो , वह ऊँचाई से नीचे (पतन) की ओर ही चलेगा। जीवन में हमें ऊर्जा मिलती है , उसका प्रयोग कर हमें पतन की ओर न चलकर , जहाँ उचित है , ऊँचाइयाँ हासिल करनी चाहिये। ऐसा करने पर ही हम समाज और संसार को ऐसी मंजिल पर ला सकेंगे , जहाँ हमारा ही नहीं अपितु अधिकाँश का जीवन सुखद हो सकेगा। और हमारे दुनिया से शिकवे शिकायत कम हो सकेंगे। अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ी और समाज के प्रति हमारे यह उत्तरदायित्व होते हैं। हम विचारशीलता से अपने कर्म -आचरण करें , ऑटोमैटिक नहीं बल्कि अपने जीवन के हर क्षण पर अपना नियंत्रण रख अपना जीवन जियें। स्वयं भी ऊँचाइयों को प्राप्त करें और अपने समाज को मधुरता की ऊँचाई पर स्थापित करें।
--राजेश जैन
22-06-2015
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