हम उसे क्या कहें ?
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बैलगाड़ी चला करती थी , कभी उसके नीचे कुत्ता भी चला आता था। कुत्ता उसके नीचे धूप की प्रखरता से बचते अपनी यात्रा तय कर लेता था। उसकी यात्रा इस तरह शीतलता की अनुभूति से तय होती थी। अगर नीचे चलने वाला कुत्ता यह सोचने लगता कि बैलगाड़ी वह खींच रहा है तो शीतल अनुभूति के स्थान पर पूरी यात्रा में भ्रमवश एक बोझ ढोने की अनुभूति उसे होती ,जबकि बोझ यथार्थ में उसके ऊपर नहीं होता।
इसी तरह मनुष्य , एक ज्ञान पूर्वक जीवन से परिपूर्णता के वरदान के साथ जन्मता है। अपनी जीवन यात्रा में उसकी शीतलता युक्त आनंद के साथ वह सर्वहितकारी कर्म और आचरण से पूरे जीवन की सुखद अनुभूति उठा सकता है। लेकिन भ्रमवश कुछ प्रवृत्तियाँ सुखकारी समझ कर उत्पन्न का लेता है , यथा हिंसकता से दूसरे को क्षति पहुंचाने की , लालच से अधिक साधनों के संग्रह की और वासना से कई कई संबंधों की उत्सुकता की। ये सब सुख के भ्रम होते हैं , लेकिन जीवन भर उसके बोझ के नीचे दबा रहकर , मनुष्य जीवन की सुखदता और सार्थकता से वंचित रहकर दुःख ही पाता है।
कुत्ता यदि भ्रम पाले तो उसकी अल्पबुध्दि से सहानुभूति हमें होना चाहिये। किन्तु ज्ञानमय उन्नत मस्तिष्क के होते हुये मनुष्य यदि भ्रम पाल सुख के स्थान पर दुखद जीवन यात्रा पूरी करे तो हम उसे क्या कहें ?
-- राजेश जैन
18-08-2014
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