भारतीय बच्चे
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जब तक माँ -पिता की छत्रछाया रहती है , ये अगर पचास -साठ वर्ष के भी हो जायें , उनके समक्ष बच्चे ही होते हैं.
जीवन भर अपने माँ -पिता के त्याग - निस्वार्थ उनके लाड़ का स्मरण रखते हैं।
कितने भी बड़े पद - हैसियत के हो जायें , उनके समक्ष छोटे ही होते हैं। आदर उनके लिये आजीवन रखते हैं।
उनकी असहाय (आश्रित) अवस्था में भी अपने पास ही रखते हैं। वृध्दाश्रम में नहीं भेजते हैं।
उनकी सेवा-सहायता को व्यस्तता में भी तत्पर होते हैं।
अपनी निज महत्वाकांक्षाओं को भुला , आवश्यकता हो जाये , तो जीवन के कुछ वर्ष उनको समर्पित करते हैं। अर्थात अपने जीवन के वर्ष , उनकी आयु बढ़ाने को दे देते हैं।
यह वो संस्कृति होती है। जिसमें परिवार ,समाज और माटी (इस देश) में , त्याग , विश्वास , भाईचारा और परस्पर स्नेह की पावन गंगा अनवरत बहती है।
"धन्य हमारी भव्य संस्कृति है
अन्य को जीवन आधार देती है
जीवन यहाँ मनुष्य का मिला तो
अन्य जीव पुष्टि की प्रेरणा देती है "
इस संस्कृति का बचाव किया जाना मनुष्य अस्तित्व (मानवता ) के लिये बेहद आवश्यक है।
हम भारतीय हैं . अहो भाग्य ,यह दायित्व हमारा है।
-- राजेश जैन
15-08-2014
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जब तक माँ -पिता की छत्रछाया रहती है , ये अगर पचास -साठ वर्ष के भी हो जायें , उनके समक्ष बच्चे ही होते हैं.
जीवन भर अपने माँ -पिता के त्याग - निस्वार्थ उनके लाड़ का स्मरण रखते हैं।
कितने भी बड़े पद - हैसियत के हो जायें , उनके समक्ष छोटे ही होते हैं। आदर उनके लिये आजीवन रखते हैं।
उनकी असहाय (आश्रित) अवस्था में भी अपने पास ही रखते हैं। वृध्दाश्रम में नहीं भेजते हैं।
उनकी सेवा-सहायता को व्यस्तता में भी तत्पर होते हैं।
अपनी निज महत्वाकांक्षाओं को भुला , आवश्यकता हो जाये , तो जीवन के कुछ वर्ष उनको समर्पित करते हैं। अर्थात अपने जीवन के वर्ष , उनकी आयु बढ़ाने को दे देते हैं।
यह वो संस्कृति होती है। जिसमें परिवार ,समाज और माटी (इस देश) में , त्याग , विश्वास , भाईचारा और परस्पर स्नेह की पावन गंगा अनवरत बहती है।
"धन्य हमारी भव्य संस्कृति है
अन्य को जीवन आधार देती है
जीवन यहाँ मनुष्य का मिला तो
अन्य जीव पुष्टि की प्रेरणा देती है "
इस संस्कृति का बचाव किया जाना मनुष्य अस्तित्व (मानवता ) के लिये बेहद आवश्यक है।
हम भारतीय हैं . अहो भाग्य ,यह दायित्व हमारा है।
-- राजेश जैन
15-08-2014
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