Sunday, August 10, 2014

नारी -आधुनिक परिधान और बढ़ते अपराध

नारी -आधुनिक परिधान और बढ़ते अपराध
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नारी की देश और समाज में दशा सुधारने या उन्हें शोषण और अत्याचार मुक्त करने का विषय उठाया जाता है , तब कुछ तर्क उठाये जाते हैं। जिसमें प्रमुख उनकी वेशभूषा / परिधान को देश में होने वाले उन पर शोषण का कारण बताया जाता है।
लेखक ऐसी अनेकों नारी का उदाहरण दे सकता है , जो समय /समय में विभूषित तो आधुनिक परिधान (जीन्स ,गाउन आदि ) में होती हैं और शीलवान भी होती हैं।  इसके विपरीत परम्परागत परिधानों में भी नारी को शील से भटका हुआ भी देखने में आता है।  अतः कहा जा सकता है कि सुशीला होना परिधान निरपेक्ष होता है।
जब आधुनिक परिधान पर नारी विरुध्द अपराध का कारण आरोपित किया जाता है।  तब पुरुष अपनी कमजोरी से ध्यान बँटाता प्रतीत होता है। क्योंकि अपराध तो छोटी छोटी बच्चियों के साथ भी हो रहे हैं. कुछ हद तक इस तर्क को माना भी जाये तब भी इन अपराधों के उन्मूलन का यह बहुत ही सतहीय उपचार लगता है।
पुरुष की नारी विरुध्द दुष्टता के दूसरे कारण जड़ में हैं। उन जड़ों को पहचान कर उन्हें नष्ट करने पर ही नारी को हम अपनी संस्कृति अनुरूप गरिमा और आदर दे सकेंगे। और स्वयं अपने परिवार का सुख सुनिश्चित कर सकेंगे।
वास्तव में देश में फिल्मों के अस्तित्व में आने के बाद नारी शोषण के अपराध क्रमशः बढ़ते गए हैं।  फिर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर वल्गर सामग्री की उपलब्धता और पुरुष वासना -जनित सोच में उसे स्कूल /कॉलेज में पढ़ती तथा आजीविका को बाहर निकलती नारी तक पहुँचाने की कुत्सित प्रवृत्ति इन अपराधों की जड़ है।  इसमें नशाकारक सामग्रियों का सेवन पुरुष ( और फुसलाई गयी नारी) द्वारा कर लेना कैटेलिस्ट (उत्प्रेरण) का काम करता है। इन कारकों के प्रभाव में पुरुष दृष्टि ख़राब होती है।  वह हर नारी को वासना की दृष्टि से देखता है।  अधिकाँश पुरुष घर-परिवार की पृष्टभूमि और अपनी सामाजिक स्थिति को ध्यान में रख एक मर्यादा का निर्वाह करते हैं। लेकिन कुछ अनुशासन और मर्यादा को ताक पर रख छिछोरेपन पर उतरते हैं। उन्हें दिखती हर नारी वासना पूर्ती का साधन ही लगती है।  पास -पड़ोस और सगे संबंधों को भी वे विस्मृत करते हैं।

आवश्यकता ऐसे कारकों की उपलब्धता पर नियंत्रण की है।  पुरुष जो जन्म किसी परिवार में लेता है। कोख से जन्मा नारी से होता है।  परिवार में यदि रहता है तो नारी भी उसके परिवार की अंग होती है। वह झूठे बहानों/तर्कों का सहारा लेने की जगह यदि इन वस्तुओं का अस्तित्व मिटाने का साहस और इक्छा शक्ति का परिचय दे सके तो ही यह देश भव्य सांस्कृतिक विरासत के अनुरूप मार्ग और दिशा में लौट सकेगा।  अन्यथा हर परिवार की नारी पर उसके विरुध्द अपराधों की आशंका रहेगी। और वह परिवार का भाग्य ही होगा कि उनकी परिजन नारी निर्दोष और शीलवान जीवन जी सकेंगी।

लेखक पुरुष है , नारी क्या सोचती और समझती है।  उसकी राय /मत बिना लेख अधूरा ही होगा।  स्वस्थ चर्चा अपेक्षित है।

--राजेश जैन
10-08-2014

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