Saturday, July 6, 2019

कोरा वादा !



कोरा वादा !

-------------------

आफ़रीन लगभग बिफर कर बोली - हम आठ बहन-भाई पैदा किये हमारी अम्मी ने. मेरा भी ऐसा ही सिलसिला चालू कर दिया, आपने. मेरे ना कहते हुए भी बिना निरोध साधन के प्रयोग के लगे रहते थे आप, रात दिन में चार-छह बार. जो सिलसिला कम रखते हुए लंबे अर्से चलाया जा सकता था, ख़त्म एकबारगी हुआ.अब, अम्मी की तरह ताउम्र मैं भी बच्चों के लिए लगी रहूँगी. कहते हुए आफ़रीन का चेहरा, मानसिक पीड़ा और क्रोध से सुर्ख हो गया था.
यह सब सुन आदिल का परंपरागत पुरुष भड़क उठा था, उसका मन हुआ आफ़रीन के गालों पर दो चाँटे जड़े, मगर पहले से ही उदास हो रही आफ़रीन पर और दर्द बन कर टूटने से उसने किसी तरह खुद को रोका. प्रकट में कहा - आफ़रीन तुम अगर बच्चों के लिए लगी रहोगी, तो मैं कौनसा अलग कुछ जीऊँगा, मुझ पर तो उनके अतिरिक्त, तुम्हारा भी भार होगा. यूँ आरोप की भाषा में न कहो ये सब.
स्वयं पर हुई इस हिंसा ने आफ़रीन के तेवर और विद्रोही कर दिए. हुए दर्द से उत्पन्न विलाप करते हुए वह आप से तुम के संबोधन पर उतर आई. आदिल से बोली - तुम मेरे बोलने पर पाबंदी लगा सकते हो, मगर हर कौम की नारी जिसमें अपने अधिकार और जीवन के प्रति चेतना आई है, उन सबके आज के समवेत स्वर को तुम, पाबंद नहीं कर सकते. साथ ही मुझे अपने पर आर्थिक भार मानने वाले तुम, यह भी समझ लो कि इसके जिम्मेदार भी तुम्हारी पुरुष बबर्रता से उत्पन्न सोच है, जो नारी को अपने कैद में बनाये रखने से पुष्ट होती है. तुम जैसे लोग ही चाहते हैं कि हम पुरुष आश्रिता नारी, स्व-निर्भरता की दृष्टि से शिक्षित नहीं किये जायें. आफ़रीन इससे आगे भी कुछ बोलती रही, लेकिन आदिल तब तक कमरे से जा चुका था.
आगे तीन दिन तक अस्पताल में आने वाले रिश्तेदार और परिचित आफ़रीन की ख़ामोशी और उदासी का कारण, उसकी जन्मी बेटी (बेटा नहीं) को मानते रहे. आदिल इन तीन दिनों में कमरे में आया तब भी आफ़रीन, उसे नज़रअंदाज करते रही. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद एक रात आदिल जिसका गुस्सा अब शांत हो चुका था , आफ़रीन की चिरौरी करते हुए क्षमा याचना करने लगा. आफ़रीन ने उस प्रसंग के बाद पहली बार आदिल की ओर देखा और कहा माफ़ किया, तुम्हें. मगर अभी बिना रोके-टोके, तुम मेरी बात सुनो और उसे समझने की कोशिश करो कि- इस देश में घर में जितनी जगह नहीं है उससे ज्यादा बच्चे भरे हैं, जो उनके सहज विकास को सुनिश्चित नहीं करते. बाजारों, सड़कों और रेल में पैर रखने को जगह नहीं है. जहाँ देखो वहाँ कतार लगीं हुईं हैं. कार्यलयों, न्यायालयों आदि सब जगह काम के बोझ इतने हैं कि 10 मिनट में हल होने वाली समस्यायें दिनों, महीनों और सालों तक लंबित रहती हैं. हर कौम में अपनी आबादी बढ़ाने की होड़ लगी हुई है. बहुसंख्यक हो कर हमें, क्या प्राप्त होगा? वह भविष्य के गर्त में है मगर इस मूर्खता ने आज के मनुष्य के जीवन को नर्क कर रखा है. क्षेत्रफल में कहीं छोटे इस देश की जनसँख्या अगले कुछ वर्षों में - दुनिया में सबसे अधिक हो जाने वाली है. इस देश, इस समाज के प्रति क्या हमारा कोई दायित्व नहीं ? ये प्रश्न उठा वह चुप हो गई.
आदिल आज पहले ही सरेंडर था - उसने आफ़रीन से वादा किया कि वह अपनी दो से ज्यादा संतान नहीं करेगा. आफ़रीन को आदिल की बात पर न तो यकीन आया और न ही उसकी खराबियों को अनदेखा कर सकी. मगर प्रकट में उसके मुख पर, फीकी मुस्कान अवश्य दिखाई दी.
'तुम्हारा भी भार' शब्दों के प्रयोग ने आफ़रीन को और आहत कर दिया, उसने जबाब दिया - आप ये तो ना कहो तो अच्छा है, हमें घर-बच्चों में बाँध कर और वस्त्रों मैं कैद करके आप स्वयं बाहर की औरतों की अर्धनग्न-नग्न तस्वीरों,वीडियो को देखते रहोगे. आफ़रीन ने आदिल के फेसबुक, इंस्टा आदि के इन शौक की साक्षी होने पर ये कहा, लेकिन आदिल को यह कडुआ सच बर्दाश्त नहीं हुआ. इस बार क्रोध से तमतमा कर उसने यह भूलकर कि यह अस्पताल का कक्ष है और नवजात बेटी बगल में सोइ है, उसने अपनी लेटी पत्नी के एक हाथ से सिर के बाल पटा दिए और दूसरे हाथ से दो जोरदार थप्पड़ आफ़रीन के मुहँ पर जड़ दिए.
बेटी के जन्म देने के बाद खामोश-उदास सी लेटी थी आफरीन. इसके विपरीत पति आदिल ख़ुशी के मारे वाचाल हुआ जा रहा था. आफरीन को यूँ नवजात के प्रति उदासीन सा देख आदिल ने पूछा - क्या, हुई पीड़ा से ऐसी गमगीन हो? आफरीन ने सिर्फ नकारने मुखमुद्रा से इस बात का उत्तर दिया. आदिल ने फिर पूछा बेटा नहीं हुआ इससे निराश हो? इस पर भी आफरीन ने सिर्फ एक शब्द - "नहीं" कहा. अब आदिल कारण जानने को व्यग्र हो गया, प्रश्न किया- फिर क्या कारण है यूँ खामोश, किस विचार में डूबी हो? आफरीन की आँखे छलक आईं, कहा - हमारी शादी 14 अक्टूबर को हुई है, और आज 4 जुलाई ही तो है. कह कर चुप हो गई. आदिल ने सवाल किया- इसमें उदास होने की क्या बात है?

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
06-07-2019


No comments:

Post a Comment