लड़की के घर से भागने के पहले
जब पेरेंट्स बेटी के विवाह के लिए योग्य लड़का खोजते हैं तो लड़के की योग्यता, उसके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा और उस परिवार के घरेलू वातावरण का इस दृष्टि से विचार करते हैं कि उनकी प्यार से पाली, बड़ी की गई बेटी के जीवन में उनके घर से ज्यादा सुख-वैभव की सुनिश्चितता हो। ऐसे में जब उनकी बेटी इस हेतु अपने पसंद के किसी लड़के को उनके समक्ष लाती है तब भी इसी कसौटी पर वह लड़का परखा जाता है। उनकी कसौटी पर खरा हो और वह उनकी ही संप्रदाय/जाति का हो तो इस लड़के पर सहर्ष सहमति मिल जाती है। क्राइटेरिया सभी पास होते हों मगर जाति भिन्न होती है तो खानपान पर विचार होता है यह मैचिंग होता है तो थोड़े कम ख़ुशी से ऐसे रिश्ते भी मंजूर हो जाते हैं। खानपान भी भिन्न हो तो इस चुनौती पर बेटी का ध्यान लाया जाना
होता है। भोजन प्रतिदिन और वह भी तीन बार का प्रश्न होता है. बेटी इसे सहमत करती है तो अपनी नहीं बेटी की ख़ुशी के लिए इसे मंजूरी दी जानी होती है। संप्रदाय अलग हो और अन्य बातें ठीक हो तो मन मारकर कभी कभी रिश्ता मान लिया जाता है। लेकिन संप्रदाय/जाति ही मैचिंग नहीं और अन्य बातें भी अनुकूल नहीं लगती हों जिससे बेटी के जीवन में सुख की सुनिश्चितता पर शंका हो तब बेटी पर परिवार में दबाव डालकर उसे उस लड़के से दूर करने का प्रयास किया जाता है। ज्यादातर ऐस प्रकरणों में बेटियाँ मन मसोसकर ही सही, अपने पेरेंट्स के प्यार और अहसानों का लिहाज कर अपना रिश्ता उस लड़के से खत्म करती है लेकिन कोई कोई लड़की विद्रोह कर घर से भाग शादी कर लेती है।
ऐसे में हम (बेटी के माँ-पापा) उन रिश्तेदार, आसपड़ोस या परिचितों की टीका टिपण्णी को इतना महत्व देकर परेशान रहते हैं, जिन्हें अपने मानसिक रोग में घर बाहर में मनोरंजन के लिए किसी चटपटे विषय की रोज दरकार होती है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि इनमें अधिकाँश हमारे ख़ैरख़्वाह (हितैषी) नहीं हैं। हमें इनकी बातों से अपने पर मानसिक दबाव नहीं निर्मित होने देना चाहिए। अपितु अपने दिमाग को शाँत रख जो मन विपरीत हो चुका है , उसे किस तरह से जितना अब संभव है, मन अनुरूप कर लेने पर विचार करते हुए उपाय करने में लगना चाहिए।
हमें (बेटी के माँ-पिता को) इस तथ्य को भी ध्यान में लाना होगा कि जिस गैर जातीय या गैर कौम के लड़के से शादी की जिद बेटी कर रही (या कर चुकी) है वह अगले (गैर जातीय में) 10 एवं (गैर कौम में) 30 वर्षों में अत्यंत सामान्य /व्यापक घटना हो जाने वाली है। अतः सिर्फ इस आधार पर कि लड़का जाति या कौम का नहीं शादी नहीं करने का निर्णय बेटी पर
हम नहीं थोपें, अपितु लड़के और उसके परिवार की योग्यता की परख करें, और वह यदि बेटी के लिए हमारी जाति के उस स्तर के अनुरूप ही है जिसमें हम उसका विवाह सहर्ष का देने वाले होते हैं तो बेटी की जिद पर विचार करना उचित है और 10 वर्ष या 30 वर्ष बाद अन्य, जिसे कर देने वाले हैं, उसे अपनी प्रगतिशील वैचारिकता का परिचय देते हुए थोड़े वर्षों पूर्व ही कर लेने का साहस दिखाते हुए बेटी को तथाकथित प्रेम से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा बेटी को बाद में क्या हासिल होता है या नहीं उससे परे, हर बात में जीवन भर उसे यह पीड़ा हो सकती है कि अच्छा होता कि अगर वह अपने चाहत के उस लड़के से वह शादी करती।
इससे आगे अब, घर से भागने को तत्पर कोई लड़की जीवन के किन पहलुओं पर गौर करे यह उल्लेख भी इस आलेख की पूर्णता की दृष्टि से उचित होगा.
लड़की को समझना होगा कि इस विशाल दुनिया में सिर्फ वही कुछ लड़के नहीं हैं जो उसके आसपास (पड़ोस/स्कूल/कॉलेज/कार्यस्थल) में संपर्क में आये हैं. उसे स्वयं को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि वह जिस योग्य है, उस योग्यता का लड़का जो उसका वर हो सकता है इनमें से नहीं। उसे अपनी परिपक्वता तक प्रतीक्षा करना चाहिए या अपने परिपक्व पापा और माँ के चयनित लड़कों में से किसी का चुनाव करना चाहिए. भागने को तत्पर किसी भी लड़की को यह सच्चाई भी समझनी चाहिए कि लड़के के जिन वादों पर वह विद्रोह का कदम उठाने जा रही है, उसके साथ विवाह हो जाने पर लड़का चाह कर भी उन वादों को पूरा नहीं कर सकेगा. चाहे प्रेमविवाह हो चाहे पेरेंट्स के द्वारा अरेंज्ड हो शुरुआत जिस गर्मजोशी से होती है, लम्बे साथ में वह प्यार की गर्मजोशी कायम नहीं रहती। वास्तव में जीवन को निभाने के लिए सिर्फ प्यार (समझने का भ्रम है) ही एक सवाल नहीं होता। अपितु जीवन को और भी तमाम वस्तुओं /बातों की जरूरत होती है जिसमें पति-पत्नी को मशीन की तरह बन कर व्यवस्था में जुटना होता है। सिर्फ प्यार करते रहने में जिसे जुटाया नहीं जा सकता। अतः यहाँ दिल नहीं दिमाग को सक्रिय रखने की जरूरत होती है कि क्या भागकर शादी कर लेने पर ये सभी जरूरतों की सुनिश्चित हो जाने की संभावना बनती भी है या नहीं. अभी लड़की को यह भी समझना चाहिए कि उम्र के आने पर दैहिक संबंध की जरूरत जब महसूस होना शुरू होती है तब आसपास मंडराने वाला कोई भी लड़का अच्छा लग सकता है , यह कतई जरूरी नहीं कि उसमें उतनी योग्यता है भी अथवा नहीं जिससे की उसे जीवन में आवश्यक सम्मान, सुविधाओं और अपेक्षित प्यार की उससे पूर्ति हो सकेगी भी या नहीं। लड़की खुद में साहस का भी परीक्षण करे कि विशेषकर अंतर्जातीय या अंर्तसंप्रदाय के लड़के से विवाह में विपरीत खानपान (शाकाहार/माँसाहार) और विपरीत रीति-रिवाज तथा विपरीत धार्मिक आस्था की चुनौती वह झेल सकती है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्यार को निभाने के चक्कर में उसके स्वाभिमान पर ही आ बने। यह तथ्य भी उसके गौर करने योग्य है कि वह जिस पर मर-मिटने के स्तर का प्यार समझ रही है साथ के कुछ वर्षों में ही वह एक साधारण सा प्यार रह जाने वाला साबित होगा । इसके विपरीत जिससे कम पसंद के चलते शादी अगर वह करती है तो उसके साथ रहते हुए भी उसकी कुछ अच्छाइयों (कुछ तो सभी में होती है) के कारण कुछ समय में उससे भी ऐसा साधारण सा प्यार तो हो जाने वाला होगा।
अंत में पँक्तियां उस लड़के के लिए भी, जो लड़की को भगा ले जाने को उत्सुक है कि वह उपरोक्त सभी प्रश्नों की कसौटी पर स्वयं को परखे. उसका लड़की से प्यार सच्चा है तो प्रथम कर्तव्य उसकी जीवन भर की ख़ुशी का उपाय उसे करना है। उसे स्वयं में आवश्यक योग्यता की परख करनी चाहिए। इतनी अगर नहीं है तो धीरज के साथ उसे अर्जित करने के उपरांत लड़की के घर वालों के समक्ष मंजूरी को जाना चाहिए। और योग्यता नहीं है तो इस लड़की की जीवन ख़ुशी के मद्देनज़र उसका पीछा छोड़ना चाहिए। उसका यह नैतिक साहस ही उसे सच्चा एवं साहसी और निस्वार्थ प्यार करने वाला पुरुष साबित करेगा।
अंततः यही निष्कर्ष आता है कि लड़की को घर से भागना न पड़े ऐसी समझदारी के प्रयास सभी ओर से होने चाहिए।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
20-07-2019
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