बदनीयत
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एक तरफ स्त्रीजात के लिए कठिन मर्यादायें और दूसरी तरफ हर किशोरी/युवती को बदनीयती से घूरती नज़रें, समाज में पुरुष की संवेदनहीनता दर्शाती है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं कि किन प्रयोजन (मंदिर में पूजा अर्चन या विद्यालय में शिक्षा अर्जन), किन दायित्व (कार्यालय या व्यवसाय से आजीविका कमाने) या किन मजबूरियों में (अस्पताल में खुद या घर के सदस्य के रोग निदान के लक्ष्य) आदि के कारण मजबूरी में नारी ने घर के बाहर कदम रखने का साहस किया है।
पुरुष की नारी के लिए स्वयं तय की गई मर्यादाओं के प्रति उसकी बेपरवाही अजीब है कि मनोरंजन की दृष्टि से किसी पार्क, भ्रमण स्थल या होटल आदि में आई नारी को बरगला कर उसके साथ धोखा करते हुए उसे यह विचार भी नहीं आता कि इससे, पीड़ित नारी पर के जीवन पर क्या बुरे प्रभाव होंगे। यह सभी बात पुरुष की संवेदनहीनता की परिचायक तो है ही। यह पुरुष के अंधत्व को भी सिध्द करता है कि वह देखने/समझने में विफल है कि अप्रत्यक्ष रूप से वह खुद के लिए भी मुश्किलों का सामान इकट्ठा कर रहा है. उसे आजीवन अपने जैसी ही हरकत करने वाले पुरुषों से अपनी बहन,बेटी या पत्नी के बचाव के लिए फ़िक्र में रहना पड़ता है.
अगर पुरुष को यही सब ज़िंदगी के मजे लगते हैं तो वह न्याय करने में मर्दानगी भी दिखाए जिसमें नारी पर लादी गईं अतिरिक्त मर्यादाओं का बोझ कम हो सके, वह भी अपना जीवन ख़ुशी से जी सके।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 28-07-2019
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