Saturday, February 9, 2019

वयस्क हुई बेटी से पापा के बात करने का सलीका

वयस्क हुई बेटी से पापा के बात करने का सलीका 

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(लिव इन रिलेशन पर गतांक से आगे चतुर्थ भाग)

उस शाम जुहू से लौटते हुए अंशुमन और अंशिका तो आपस में थोड़ा कुछ बतिया रहे थे मगर मिताली अपनी विचार तंद्रा में खोई हुई थी। पति अंशुमन की जिस बात को आज तक वह प्रशंसा मानती आई थी कि वे साथ में डॉमिनेटिंग कभी नहीं होते बल्कि हमेशा साथ के लोगों को समान मौका देते हैं, आज उनकी वह विशेषता मिताली को बुराई लग रही थी। मिताली स्वयं तो अंशिका से सख्ती से 'लिव इन रिलेशन' को मना नहीं कर पा रही थी लेकिन चाहती यह थी कि अंशुमन कड़क रूप से अंशिका को विवाह करने का कहें। लगभग 28 वर्ष के दांपत्य जीवन में अंशुमन ने कभी भी एकतरफा अपनी नहीं चलाई थी, हमेशा परिवार के लिए महत्वपूर्ण विषयों पर मिताली के परामर्श से ही चीजें तय वे करते आये थे। मिताली आज चाह रही थी कि जैसा अन्य परिवार में मुखिया की भूमिका में पुरुष कड़े अनुशासन का दायरा घर में नारी और बच्चों पर रखते है उसी अनुरूप अंशुमन बेटी के भविष्य के लिए उसे समझाने की जगह उसे सख्त आज्ञा दें कि अंशिका विवाह करे। उधर अंशुमन कोई उचित युक्ति से इस समस्या का समाधान के लिए विचारों में तल्लीन थे। लंबे समय के साथ में अंशुमन, मिताली के मन में क्या चल रहा है आसानी से भाँप लेते थे किंतु आज मिताली क्या सोच विचार में डूबी है , अंशुमन इस पर गौर नहीं कर पाए थे।
रात्रि खाने के बाद ड्राइंग रूम में तीनों फिर से एक बार वार्तालाप के लिए साथ आ गए थे। मिताली और अंशिका के मुखड़े उनके मन में व्याप्त तनावों को उजागर कर रहे थे जबकि अंशुमन शांत मुद्रा में थे। हँसते हुए अंशुमन ही बोले थे - अरे क्यों आप दोनों इतने फिक्रमंद हो रहे हो , हम सभी पढ़े लिखे लोग हैं , जो करेंगे अपने लिए तय है कि अच्छा ही होगा। फिर खास मिताली के तरफ रुख करके मुस्कुरा के बोले - अंशु बेटे मैंने आपका नाम अपने से मिलता जुलता रखा था कि बेटी को मैं अपने पद चिन्हों पर चलाऊँगा , खैर यह तो कल्पना का संसार था यह कहते हुए अंशिका से आँख मिलाई , अंशिका इस बात पर बोली - जी पापा आप मेरे आदर्श रहे हैं आज भी हैं। आपसे सीखने समझने को मैं उतनी ही उत्सुक आज भी हूँ जितनी पहले थी , कृपया आप मुझे पराई सी ट्रीट मत कीजिये।
अंशुमन ने तब बेटी के सिर पर हाथ रखा और कहा नहीं बेटी पराई कभी ट्रीट नहीं करूँगा। मेरे बच्चे , एक दिन जब हम नहीं रह जाते तब बच्चे ही होते हैं जिनमें हमारे विचार और सँस्कार जीवंत रहते हैं। इसलिए जीवन के इस महत्वपूर्ण विषय पर आगे में जो कहने वाला हूँ उसे थोड़ा लेक्चर जैसा आप सुनो , मेरी यह कदापि अपेक्षा नहीं कि आप लिव इन रिलेशन को खत्म कर लें पर सुनने के बाद एक गंभीर चिंतन इस विषय पर अवश्य कर लेना। यह कहते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि से अंशिका को देखते हुए कहा -
क्या कहती हो आप - आगे कहूँ? कहते हुए अंशुमन ने मिताली पर भी प्रश्नसूचक दृष्टि डाली , तब अंशिका ने कहा जी जरूर पापा , आप कहिये।  वहीं मिताली अंशुमन के नरमी वाले इस जेस्चर से असहमत ही दिखाई दी।
गला साफ़ करने के लिए अंशुमन ने कुछ घूँट पानी पिया फिर कहना आरंभ किया -
"लाखों वर्ष एक जानवर तरह की नस्ल को मनुष्य होने में लगे। उस यात्रा में जीवन के अनेकों पध्दति प्रयोग में लाईं और बदली गईं। पहले नर नारी दोनों एकाधिक साथी से शारीरिक संबंध स्थापित करते रहे थे। नर इनसे उपजी संतान से निरपेक्ष होता था। वह यह भी नहीं जानता था कि किस संतान के होने के लिए  वह जिम्मेदार था। संतान की आरंभिक परवरिश विशुध्द नारी का दायित्व था क्योंकि उसके ही गर्भ से संतान जन्मी है , उसे ज्ञात रहता था। इस तरह नर सिर्फ 'भोगता' रहता था , जिम्मेदार नहीं। उसी तरह बहु साथियों से सहवास के होने पर भी नए साथी की तलाश बाद भी रही आती थी। अर्थात किसी से किसी भी बार के शारीरिक सुख हासिल करने के बाद फिर उसकी कामना हो जाना , फिर नए साथी को ढूँढने का सिलसिला बना रहना इस अनुभव से मनुष्य बन रहा जानवर यह निष्कर्ष भी निकाल लेने में सफल हुआ कि तृप्ति अनेकों से सहवास से नहीं अपितु स्वयं के भीतर से आती है, और उस साथी में मिलती है जिसके प्रति प्यार दया और त्याग की भावना भी हो। लाखों वर्षों के अनगिनत ऐसे जीवों के अनुभव के बाद परिवार नाम की सँस्था और विवाह नाम की रीति, जीवन शैली बनाई गई। यद्यपि परिवार और पति पत्नी के लिए नियम कई बने और बदलते रहे जैसे एक स्त्री के एकाधिक पति या एक पुरुष की एकाधिक पत्नियाँ कालांतर में समाप्त प्राय हो रहीं।
अतः परिवार और विवाह बंधन को छोड़ना अनुभवों से ली गई सीख को तजना होगा। लिव इन रिलेशन जैसी जीवन शैली अपनाना पुनः पुरुष को भोगता मात्र स्वीकार कर उसे संतान परवरिश और शिक्षा सँस्कार दायित्व से मुक्त कर देना होगा। कुछ अरसे के अस्थाई से रिश्ते में रह फिर काम लोलुप जानवरों की तरह अन्य साथी को भटकना होगा। जिसमें लालसायें हमेशा अतृप्त रहती हैं। `
विवाह रीति और परिवार में कुप्रथाओं जैसे सती , बहु विवाह और बालविवाह या विधवा स्त्री का विवाह नहीं होना आदि का आज बातें अब खत्म की जा चुकी हैं । दहेज और नारी पर गृह हिंसा जैसी बुराई खत्म की जानी चाहिए , इस हेतु लिव इन रिलेशन उपाय नहीं है, बल्कि दांपत्य में उचित कर्तव्यबोध समझना उपाय है ।  समझना होगा कि विवाह एक जीवन पध्दति है अतः विवाह उन्मूलन नहीं किया जा सकता. परिवार में ऐसे सुधार अवश्य किये जाने चाहिए जिसमें नारी को बंधनों में बाँध उनकी प्रतिभाओं का दमन किया जाता है. नारी आज जीवन में समान अधिकार समान अवसर को व्यग्र है . उसे पुरुष समतुल्य समझे जाने की जरूरत है . हमारी बेटी होने से तुम्हारा हित सुनिश्चित करने के प्रयास हमारी जिम्मेदारियों में आता है उसी के तहत हम तुम्हें सचेत करना चाहते हैं कि समय द्वारा तुम्हारे पर किये जा रहे लिव इन रिलेशन के प्रयोग से तुम न सिर्फ बचो अपितु इससे अब की पीढ़ियों को बचाने की भी चेतना बनो।  अन्यथा यह समाज में कठिन साध्य रोग जैसा व्याप्त होगा जिसके उपचार किये जा सकने में काल बीत जायेंगे और जिसकी चपेट में न सिर्फ अनेक नारियों का बल्कि पुरुष और बच्चों का जीवन तबाह होगा। "
मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ। इस पर तुम्हारा निर्णय क्या होगा इस हेतु मेरा कोई दबाव नहीं होगा। कल हम वापिस जायेंगे। हो सके तो जाने के पूर्व तुम कल हमें अपने निर्णय से अवगत करा देना। और अधिक समय विचार हेतु चाहो तो वैसा करना।  कहते हुए फिर अंशुमन ने पानी के कुछ घूँट पिये और माँ-बेटी को आगे बात करने का अवसर देकर शुभरात्रि कहते हुए उठकर शयनकक्ष में चले गए।
अंशिका ने पापा द्वारा कही जा रही बातों को पूरे ध्यान से सुनी ही थी, साथ ही मिताली भी अंशुमन की बातों को सुन उसकी मन ही मन सराहना कर रही थी। उसे लग रहा था अंशिका पर अवश्य ही इन बातों का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और वह अपने लिव इन रिलेशन को समाप्त करके विवाह हेतु स्वयं राजी होगी और जतिन को राजी करेगी।
(जारी)
राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
10-2-2019


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