Wednesday, February 20, 2019

क्या था उसके पास

क्या था उसके पास ..

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क्या था उसके पास - एक घर जो किराये का था , उसमें कुछ अपने थे , कुछ अपने नहीं रहे थे उनकी स्मृति साथ थी। कुछ तस्वीरें थीं जो जीवन के उस अतीत की साक्षी थी जिसमें वह जीवन ऊर्जा से भरपूर , कुछ आकर्षक बच्चा या युवा था। कुछ अपने सुख की अभिलाषा और कुछ परोपकार कर किसी के सुख का कारण बन जाने की योजना। 
क्या था उसके पास - जीवन का बड़ा समय व्यतीत हो गया था , खेद था कि कुछ बातें बहुत देर से समझ आईं थीं , संतोष था थोड़ा कि थोड़ी जो बुध्दि थी उसने निपट स्वार्थी होने से रोका था।
क्या था उसके पास - बचे कुछ दिन और कुछ रातें थीं जीवन की , दिन में जीवन यापन के लिए कुछ कमा लाने के लिए के घर से निकलने की लाचारी और रात में थक हार में सो जाने का क्रम।  और कभी कभी सिधाई के व्यवहार और आचरण के कारण, धूर्त दुनिया द्वारा छल लिए जाने के दुःख और मिले तनाव में करवट बदलते घंटों गुजार दी जानी वाली अनिद्रा।
क्या था उसके पास - अतीत की कुछ धुँधली होती हुईं यादें जिससे 'पहले ज्यादा सुखी था', यह एक भ्रम जबकि पूरे जीवन कोई न कोई परेशान कर देने वाली बातें हमेशा रहीं थीं उसके पास।
क्या था उसके पास - व्यर्थ की एक धर्म विशेष की आस्था जिसमें दूसरों को पराया समझने ,दुश्मन मान के उन्हें हेय देखना या उनसे नफरत रखने के विचार। जबकि उन दूसरों के पास भी थीं यही भ्राँत बातें। उस जैसे ही सबकी मजबूरी मिले जीवन को जी लेने की थी. साथ ही थी उसके आसपास बना दी गईं धर्म, जाति और राष्ट्र विशेष की सीमाओं में सिमट रह जाने सभी की ही मजबूरी थीं। 
क्या था उसके पास - किसी की मौत पर व्यर्थ जश्न मनाने कुबुध्दि जिसमें उसके जीवन को कुछ मिलना नहीं था। धिक्कार भी नहीं था उसके पास अपनी कुबुध्दि के लिए। 
क्या था उसके पास  - औरों की नकल कर लेने की प्रवृत्ति उसे सरल मार्ग लगती थी। इसके अधीन वह मानवता खो रहे व्यक्तियों की नकल कर लिया करता था। और जैसे एक सियार के हुआ बोलने पर सब हुआ हुआ करते हैं वैसे ही कुछ को कहते देख अनर्गल सब वह भी कहता था। 
क्या था उसके पास  - बेहद संकीर्ण दायरा और सोच जिसमें पूरे जीवन अनुभव नहीं कर सका था कि यही जमीन है यही समाज है जिसमें उसे जीना और मर भी जाना है जिसे अच्छा बना देने में अपना सहयोग देता तो औरों का पथ प्रदर्शन कर उनकी प्रेरणा भी बनता। 
क्या था उसके पास - अब थोड़ा और कुछ समय जिसमें रोग ग्रस्त रहकर क्रमशः निष्क्रिय होते हुए चार कन्धों एक दिन चल देने की नीयती। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-02-2019

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