यही माटी है जिसने ए पी जे अब्दुल कलाम को जन्मा है
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14 फरवरी 2019 ,फिर एक तारीख़ बनी जिसके माथे पर कलंकनीय दिन होने का टीका लगा। जिसने इस देश के करोड़ों नागरिकों के दिल को आहत किया। जिसको याद कर करके सालोंसाल दो देश एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए अपने बजट का बड़ा हिस्सा, अपनी सैन्य शक्ति और हथियारों के इजाफ़े के लिए लगायेंगे और अपना विकास अवरुध्द करते हुए दुनिया के अन्य देशों से पिछड़ते जाने का क्रम बरक़रार रखेंगे। फिर शत्रु देश के सियासत करने वाले 14 फरवरी 2019 को अपनी उपलब्धि और हमारे देश के सियासत करने वाले प्रतिक्रिया में की जाने वाली कार्यवाही को अपनी उपलब्धि बतायेंगे।
हमारे देश में आम चुनाव का समय है जो सियासती पार्टी अभी सत्ता में नहीं है , सत्ता हासिल करने के लिये और दूसरी अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए जो हथकंडे अपनायेंगे उससे मुल्क की दो कौमें एक दूसरे के लिए नफ़रत , रंजिश और बदले की भावना दिल में रखना जारी रखेंगी। जिससे वक़्त वक़्त पर फिर करतूतें होती रहेंगी जिससे दोनों ही बेफ़िक्री से ज़िंदगी के लुफ़्त से मरहूम रहेंगी।
फिर हम अपने सपूत जिन्हें ज़िंदगी जीने का हक़ है अकाल खोते रहेंगे। हम उन्हें शहीद का सम्मान तो देते रहेंगे मगर उनके बच्चे , माँ -पिता और पत्नी के ग़म को कम नहीं कर सकेंगे।
सिलसिला दशकों से यही चला आ रहा है , कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं अनेकों लोगों ने दोनों देशों ने जन्म लिया और अनेकों मर गए, जिन्होंने जाना नहीं कि समाज सौहार्द का सुख होता क्या है?, मोहब्बत से जी गई जिंदगी का मजा होता क्या है? और मुल्क की खुशहाली होती क्या है?
अगर हम अपने को सभ्य मानते हैं तो दशकों के पहले के अप्रिय घटनाक्रम को याद नहीं रखना होगा, हमें उसे भुलाना होगा। परस्पर समन्वय की हर उस बात को याद करना होगा और उसका प्रचार करना होगा जो हमें हार्दिक ख़ुशी देता है।
दोनों ही कौमों को यह स्मरण करना चाहिए कि यही देश है यही माटी है जिसने ए पी जे अब्दुल कलाम को जन्मा है।
हमें अपनी भव्य संस्कृति की पुनः पुष्टि दुनिया के समक्ष पेश करनी होगी कि कैसे, विभिन्न कौमें इस देश में अपने अपने मज़हबी तरीकों में खुशहाली , सहयोग से रहते हुए भी एक स्वस्थ परिवेश का निर्माण कर सकती है।
हम दुश्मनी की नहीं कैसे पुनः एक भव्य राष्ट्र बनें इस उपाय को ईजाद करें।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन16-02-2019
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