कुछ करके ही, इस ज़िंदगी से गुजरना था हमें
तब नफ़रत नहीं, प्यार करना मंजूर हुआ हमें
उकेरे गए नामों की - बख़त होगी क्या आखिर
तारीख जब जानेगी नहीं - ये थे कौन आखिर
मैं उकेरता फिरूँ नाम अपना - हासिल न कुछ बच पाएगा
ग़र उकेर सकूँ काम अपना - तो यादगार कुछ रह जाएगा
आइना है सामने और देख भी हम लेते हैं
यही बहुत कि अपनी सच्चाई जान लेते हैं
तब नफ़रत नहीं, प्यार करना मंजूर हुआ हमें
उकेरे गए नामों की - बख़त होगी क्या आखिर
तारीख जब जानेगी नहीं - ये थे कौन आखिर
मैं उकेरता फिरूँ नाम अपना - हासिल न कुछ बच पाएगा
ग़र उकेर सकूँ काम अपना - तो यादगार कुछ रह जाएगा
आइना है सामने और देख भी हम लेते हैं
यही बहुत कि अपनी सच्चाई जान लेते हैं
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