Friday, April 9, 2021

तकलीफों ने अम्मा की जिजीविषा खत्म कर दी थी। ऐसे एक दिन ग़ज़ल ने खुद अम्मा की स्पंज बाथ कराया था। उनका शरीर देख उसके आँसू, अम्मा की पीठ पर टपक गए थे। 

अम्मा ने अश्रु की गर्माहट अपनी पीठ पर अनुभव की तो पूछा - ग़ज़ल तुम रो रही हो क्या?

ग़ज़ल ने कहा - अम्मा ये तुम्हारे शरीर की कैसी हालत हुई है। माँस लटक सा गया है। त्वचा ने अपनी स्निग्धा खो दी है। जहाँ तहाँ रगें उभर रही हैं। 

अम्मा ने कहा - हाँ ग़ज़ल जब मेरा यह बदन किशोर वय में साँचे में ढला अपनी सुंदरता के चरम पर था तब मुझे कल्पना नहीं थी कि कभी मुझ पर बुढ़ापा आएगा और शरीर अपना रूप खो देगा। 

कहते हुए शारीरिक कष्ट से परे, तन की अपनी हालत की अनुभूति करते हुए  मानसिक रूप से दुखी हो गई थी। वेदना की लकीरें उनके छोटे पड़ गए मुख पर उभर आईं थीं। 

ग़ज़ल को यह अपनी भूल लगी कि व्यर्थ उसने यह चर्चा छेड़ी एवं अम्मा का मन अधिक दुखा दिया।      

उस रात अम्मा के शरीर की दशा स्मरण करते हुए वह अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने निर्वस्त्र खडी हुई थी। सोच रही थी कि साँचे में ढला दिखता कोई युवा शरीर बुढ़ापे में कितना कुरुप हो जाता है। 

आज ग़ज़ल लगभग 40 साल की थी। अभी जिसकी अभी उसे कल्पना नहीं, क्या 20-25 साल बाद उसका शरीर भी अम्मा जैसा हो जाएगा। जो स्वास्थ्यगत समस्याएं आज अम्मा को हैं आगे उन्हें, ग़ज़ल को भी भुगतना होगा। ये विचार उस रात ग़ज़ल को डराते रहे थे। अम्मा की देखभाल के लिए वह थी लेकिन तब ग़ज़ल की ऐसी दशा में उसकी देखभाल उसका कौन अपना करेगा?

लिव इन ने उसका जो बिगाड़ा था अपनी उस कुमति के लिए ग़ज़ल ने, स्वयं को आज से पहले इतना कभी नहीं धिक्कारा था। वह सोच रही थी कि लिव इन में नहीं रही होती तो उसका अपना पति एवं कम से कम 10 वर्ष के उसके बेटे बेटी होते। जो उस के ऐसे पराश्रित दिनों में उसकी देखभाल एवं सेवा में साथ रहते। 

(लिखी जा रही कहानी लिव इन रिलेशन से उद्धृत अंश)


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