Monday, April 12, 2021

आयशा की नकल

 

आयशा की नकल 

प्रभुत्व एवं देवांशी, दोनों में प्रेम एक ही कंपनी में साथ कार्यरत होते हुए हुआ था। जिसकी परिणति उनका विवाह सूत्र में आबद्ध हो जाना था। 

आरंभिक वैवाहिक जीवन ने, उन्हें ऐसा आभास कराया था कि जैसे आपस में उनमें का प्यार किसी और युगल में होता ही नहीं है। 2 साल बीते थे, अब देवांशी 5 माह की गर्भवती थी। सोनोग्राफी रिपोर्ट के आधार पर, देवांशी को प्रभुत्व से संबंध में सतर्कता का परामर्श दिया गया था ताकि गर्भस्थ शिशु पर कोई खतरा उत्पन्न नहीं हो। 

इससे देवांशी की उदासीनता ने, प्रभुत्व को चिढ़ा दिया था। प्रभुत्व आजकल ऑफिस से तो देवांशी के साथ निकलता फिर, किसी किसी बहाने से बाहर रहकर, घर देर रात लौटता। पहले देवांशी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। एक दिन ऑफिस में देवांशी, प्रभुत्व के पास ही थी तब, प्रभुत्व के मोबाइल पर किसी का कॉल आया था। देवांशी ने अनुभव किया था कि कॉल पर बात करते हुए, देवांशी की उपस्थिति से प्रभुत्व असमंजस में रहा था। देवांशी ने इसे सहज में लिया और उठकर अपनी सीट पर चली गई थी। 

थोड़ी देर बाद प्रभुत्व, देवांशी के पास आया और उसने कहा - देवांशी, एक क्लाइंट से बाहर मीटिंग है, मैं उसमें जा रहा हूँ। 

देवांशी ने प्रभुत्व के आँखें चुराकर बात करना नोट किया था। तब भी निर्भाव, सहमति में सिर हिला दिया था। देवांशी के मन में प्रभुत्व को लेकर उस दिन शक उत्पन्न हुआ था। आगे पंद्रह दिन में प्रभुत्व की, अपने प्रति उपेक्षा ने आखिर देवांशी को बाध्य किया कि वह डिटेक्टिव की सेवा लेकर, प्रभुत्व की गतिविधियों की जाँच करवाए। 

डिटेक्टिव की ख़ुफ़िया रिपोर्ट ने देवांशी के दिल को तोड़ दिया था। प्रभुत्व घर से देर रात तक बाहर रहकर, एक बड़ी उम्र की क्लाइंट महिला के साथ प्यार की पींगे बढ़ा रहा था। प्रेम विवाह करने के बाद भी, एक दूसरे के प्रति निष्ठावान नहीं रह जाना, ऐसे उदाहरण आजकल समाज में बहुत देखने में आते हैं।

उस रात जब प्रभुत्व घर आया तो देवांशी ने कहा - प्रभुत्व, ये मैं क्या सुन रही हूँ कि तुम, किसी क्लाइंट के साथ अवैध रिश्ते में हो? 

प्रभुत्व चौंका था उसने पूछा - यह तुमसे किसने कहा?

देवांशी ने कहा - मुझ से किसने कहा, तुम्हारा यह जानने से अधिक जरूरी यह है कि तुम मुझे बताओ यह बात सच है या झूठ?

देवांशी तो सच्चाई जान चुकी थी मगर प्रभुत्व क्या कहता है उसे, प्रभुत्व के मुँह से सुनना था। प्रभुत्व ने झूठ बोलने की जगह ढिठाई से कहा - 

यह सच है, मगर तुम कंपनी में काम करते हुए जानती हो ना कि यह, अब आम बात हुई है। इसे अवैध कहना अब उचित नहीं। तुम यह भी तो जानती हो कि तुम्हारी गर्भावस्था के कारण, मेरी जरूरतें पूर्ण नहीं हो रहीं हैं। 

देवांशी को, प्रभुत्व के ऐसे स्वार्थीपन ने क्रुद्ध किया था। उसने चीखते हुए कहा - प्रभुत्व अभी अधिक दिन नहीं हुए हैं जब हम, एक दूसरे के प्रेम और साथ को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मानते थे। मेरे जिस गर्भ के हवाले से तुम, अपने दुष्कर्म को उचित ठहरा रहे हो वह मेरा गर्भ, तुमसे ही तो है। तुम इतना गिरा काम कैसे कर सकते हो? तुम ऐसी बुरी बात कह ही कैसे सकते हो?

प्रभुत्व ने बेपरवाही से कहा - मैंने कहा ना कि मेरा किया, अब कोई निराली बात नहीं रह गई है। एक दो से कभी कभार संबंध हो जाना अब बुरा नहीं होता है। इसे, मेरी जरूरत समझ कर तुम मुझे निभा लो। अभी मुझे और तुम्हें, शांत होकर सो जाना चाहिए। 

देवांशी रो पड़ी, उसने पूछा - तुम ऐसे कह रहे हो जैसे कि एक दो से मेरे संबंध हो जाएं तो तुम बड़ी शांति से उसे निभा सकोगे, बताओ ऐसा कर सकोगे?

प्रभुत्व ने बिना किसी पछतावे के कहा - जब ऐसा होगा तब सोचूँगा।अभी मुझे नींद आ रही है। तुम्हारे लिए भी गुस्सा छोड़, अभी आराम करना ठीक होगा। 

कहकर वह सोने के पूर्व के कामकाज में लग गया। देवांशी लाचार रोते रोते बिस्तर पर लेट गई। 

अगले दिन देवांशी ने ऑफिस से छुट्टी ली थी। वह, घर में बैठकर तय कर रही थी कि बन गई इस अप्रिय स्थिति में उसका क्या किया जाना उचित होगा। तब तीन बजे, डिटेक्टिव ने कॉल कर बताया कि प्रभुत्व, उस महिला के साथ लॉन्ग ड्राइव पर जा रहा है। यह सुनते ही देवांशी ने एक निर्णय ले लिया। उसने डॉक्टर की बताई सावधानी की उपेक्षा कर अपनी स्कूटी ली थी और घर से निकल पड़ी थी। 

स्कूटी पर उसके मन में साबरमती रिवर फ्रंट पर, पति की दगाबाजी से त्रस्त, आयशा की आत्महत्या वाला प्रकरण चल रहा था। देवांशी, हाईवे पर नदी के ऊपर के ब्रिज के बीचों बीच पहुंची थी। 

फिर देवांशी ने प्रभुत्व एवं अपने पापा को कॉल किया, मोबाइल कैमरे को अपने पर फोकस करते हुए मोबाइल रेलिंग पर रखा और खुद रेलिंग पर बैठ गई। प्रभुत्व एवं पापा के कॉल पर आते ही कहा - अलविदा प्रभुत्व, तुम्हारे बच्चे की तरफ से भी पापा को अलविदा, मैं नदी में कूदकर प्राण दे रही हूँ। 

यह दृश्य देखकर, प्रभुत्व और कार में उसकी साथ बैठी महिला, दोनों की घिग्घी बंध गई। प्रभुत्व ने कहा - नहीं देवांशी, यह नहीं करो। मुझे क्षमा करो, तुम अपने साथ, हमारे बच्चे को भी ऐसी निर्ममता से कैसे मार सकती हो?

देवांशी के पापा ने भी समझाते हुए कहा - देवी, किसी भी समस्या का समाधान, आत्महत्या नहीं है। वापस आ जाओ जो भी तुम्हारी समस्या है उसे, हम सब मिलकर देख लेंगे।  

देवांशी ने पापा की बात को अनसुनी करते हुए कहा - अब पानी सिर से ऊपर हो गया है। प्रभुत्व, तुम उसी महिला से शादी करके बच्चा पैदा कर लेना। पापा मुझे माफ़ करना, मैं जीने का हौसला खो चुकी हूँ। मैं अब नदी में कूद रही हूँ। 

प्रभुत्व गिड़गिड़ाया था - देवांशी, हमारे होने वाले बच्चे की कसम, मैं अब कोई अवैध रिश्ता नहीं रखूँगा। प्लीज रेलिंग से उतर जाओ, मुझे बताओ तुम कहाँ हो मैं, अभी ही वहाँ पहुँचता हूँ। 

देवांशी का विचार, प्रभुत्व को धमकाने बस का था जिससे वह सुधर जाए। रेलिंग पर मगर देवांशी अनियंत्रित हो गई, वह डगमगा कर फिसली एवं नदी में जा गिरी थी।
प्रभुत्व ने रेलिंग से गिरते हुए देवांशी को देखा था। उसकी आत्मा काँप गई थी। 

महिला भी अत्यंत भयभीत हो गई थी। वह चिंता में पड़ गई कि देवांशी की आत्महत्या की पुलिस जाँच में, उसकी बुरी पहचान सामने आ जाएगी। इस अवैध रिश्ते की बलि, उसके मध्यमवर्गीय परिवार की ख़ुशी चढ़ जाएगी। अपने दो छोटे बच्चे एवं पति के सामने उसकी कामुक छवि कितनी शर्मनाक होगी। ऐसी चिंतित वह प्रत्यक्ष में प्रभुत्व से कह रही थी - 

कैसे कैसे काम कर जातीं हैं यह लड़कियाँ। आयशा प्रकरण की दुष्प्रेरणा ने देवांशी से, नकल में वह काम करवा दिया है जिससे हमारी फांसी तय हो गई है।

इधर, देवांशी का नदी में गिरना हुआ और मेरी कार का ब्रिज पर पहुंचने का संयोग हुआ था। 

मैंने देखते ही, अपने ड्राइवर से कार रोकने कहा था। मैं स्विमिंग पूल में अच्छी तैराकी जानती थी। कार के रुकते ही बिना ज्यादा सोचे समझे मैंने, देवांशी के पीछे नदी में छलांग लगा दी थी। मुझ पर तब, एक जीवन बचा लेने का जुनून सवार था। 

नदी में तभी, वह लड़की एक बार डूब कर, सतह पर आई थी। मैंने उसे गिरेबान से थामा था, वह अचेत थी। तैरते हुए मैंने, उसे जैसे तैसे अपनी पीठ पर लादा था। उसके साथ, नदी के प्रवाह वेग में साथ तैर पाना, स्विमिंग पूल में तैरने जितना सरल नहीं था। मुझे, मेरी ही जान पर बन आई लग रहा था। बहुत ही मुश्किल से मैं, उसे लेकर किनारे पर पहुँच सकी थी। 

मैंने, उसे खींच कर रेत पर पेट के बल लिटाया था और पीठ पर मालिश और थपकियाँ देके उसका गटक लिया पानी निकालना आरंभ किया था। 

भाग्य की बात थी कि अधिक विलंब नहीं होने से, फेफड़ों में भरा पानी निकलते ही उसकी चेतना लौट आई थी। अब वह कराह और हाँफ रही थी। हाँफ, मैं भी रही थी मगर यह देख खुश थी कि सुखद संयोग ने देर नहीं होने दी थी। युवती का जीवन बचा लिया गया था। मैंने, ध्यान से उसे देखा तो, मुझे समझ आया कि मैंने एक नहीं दो जीवन बचाए थे। युवती गर्भवती दिख रही थी। मैंने नाम पूछा, उसने देवांशी बताया था।   

अब तक ड्राइवर, कार को ब्रिज से उतार कर नदी के किनारे कच्चे रास्ते पर ला चुका था। युवती अब कुछ स्वस्थ अनुभव कर रही थी। मुझसे थैंक यू कहते हुए उसके चेहरे पर कृतज्ञता के भाव थे। हम दोनों के कपड़े गीले थे। मैंने उसको सहारा देते हुए कार तक लाया था। 

तब ड्राइवर ने पछतावे में कहा - मैडम जी, नदी में इनके प्राण रक्षा के लिए, मुझे कूदना चाहिए था। एकाएक मैं वह साहस नहीं कर पाया जो आपने किया। 

मैंने कहा - जब इन्हें बचा लिया गया है तो इसका महत्व नहीं रह गया है कि कौन साहस नहीं कर सका। अब बंगले पर चलो। 

ड्राइवर ने कहा - जी, मैडम जी। और कार चला दी थी। देवांशी ने तब चिंतित हो कर कहा - मेम मेरी स्कूटी एवं मोबाइल ब्रिज पर ही है। 

मैंने कहा - चिंता ना करो, चल कर ले लेते हैं। 

तब ब्रिज पर आकर मेरे कहने पर ड्राइवर ने देवांशी का मोबाइल, उसे दिया था। फिर स्कूटी स्वयं बंगले तरफ बढ़ा दी थी। भीगे कपड़ों में मैं, कार ड्राइव कर रही थी। साइड सीट पर देवांशी भी भीगी ही बैठी थी। 

मैंने पूछा - आज मरने का इरादा था?

उसने कहा - नहीं, आत्महत्या करने का अभिनय दिखा कर, पति को डराना चाहती थी मगर संतुलन बिगड़ने से मैं नदी में गिर गई। मैं सच में मर जाती अगर आपने यह साहस नहीं दिखाया होता। 

कहते हुए उसकी आँखों में आँसू थे। मैंने पूछा - यह खतरनाक स्टंट करने की जरूरत क्यों पड़ी? 

इस पर देवांशी ने कारण बताने के लिए, अपने एवं प्रभुत्व के विवाह से लेकर, अब तक की बातें विस्तार से बताई थीं। मुझे प्रभुत्व की नीचता पर क्रोध आया था। तब हम, मेरे बंगले पर पहुँच चुके थे। भीतर पहुंचकर मैंने, कपड़े बदलने के लिए देवांशी को अपना एक गाउन सहित अन्य वस्त्र दिए थे। साथ ही मैंने भी अपने वस्त्र बदले थे। फिर गरमा गरम कॉफी पीते हुए मेरे कहने पर, देवांशी ने कॉल किया एवं अपनी मम्मी पापा को, मेरे बंगले पर आने के लिए कहा था। मैंने, देवांशी को प्रभुत्व से अपने बच जाने की बात बताने से मना किया था। 

देवांशी के मम्मी-पापा आए थे तब मैंने, उनसे कहा कि वे, प्रभुत्व को कॉल करके कहें कि ‘तुमने मेरी बेटी को मार डाला जिसकी कठोर सजा तुम्हें दिलवाई जाएगी’। 

देवांशी के पापा ने अभिनय में रोते हुए, प्रभुत्व से कहा - प्रभुत्व तुमने मेरी बेटी को आत्महत्या के लिए उकसा कर मरवा दिया है। अब मैं, तुमको नहीं छोड़ूँगा। 

प्रभुत्व ने पश्चाताप भरे स्वर में कहा - हाँ, पापा मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। मैं नदी के ब्रिज तक होकर आया हूँ। वहाँ मुझे देवांशी का कोई चिन्ह नहीं मिलने से मैं स्वयं पुलिस स्टेशन आकर अपना अपराध दर्ज करवा रहा हूँ। 

इतना सुनते ही देवांशी के पापा ने फोन काट दिया और मुझे प्रभुत्व की कही बात बताई। फिर पूछा कि अब क्या करना चाहिए?

मैंने कहा आप दोनों अब घर जाओ। देवांशी को यहीं रहने दो। एक दो दिन देवांशी के बचने का, प्रभुत्व को पता नहीं होने दो। उसे हवालात की हवा और पुलिस की लातें खाने दो। फिर तय करेंगे कि देवांशी को आगे क्या करना है। 

उसी शाम मैं, देवांशी को अपनी मित्र, गयनेकोलॉजिस्ट से जांच कराने ले गई थी। सुखद बात थी कि देवांशी का गर्भस्थ शिशु ठीक था। अगले दो दिनों में मैंने, देवांशी से की गई बातों में जान लिया था कि वह, प्रभुत्व को क्षमा कर देगी यदि आगे प्रभुत्व, उसके साथ निष्ठापूर्वक रहे। ये दो दिन, देवांशी के वीकेंड हॉलीडेज थे। अतः मेरे आतिथ्य में रह पाने एवं मुझसे फ्रेंडशिप बढ़ा पाने में देवांशी को असुविधा नहीं हुई। 

उधर प्रभुत्व ने, महिला से संबंध को गुप्त रखा था। देवांशी एवं अपने बीच, मतभेद से हुए विवाद को देवांशी की आत्महत्या का कारण बताया था। ये दो दिन न्यायालय में भी अवकाश के थे। पुलिस की हवालाती खातिरदारी के बीच, दो दिन प्रभुत्व गहन पश्चाताप में रहा था। वह सोचता रहा कि उसकी अच्छी खासी नौकरी, प्यार करने वाली पत्नी एवं उसका होने वाले बच्चा सब उसकी अपनी मूर्खता के भेंट चढ़ गए हैं। अब ना जाने कितने वर्ष उसके जेल में बीतेंगे। 

इस बीच पुलिस की खोजबीन में देवांशी का कोई अता पता नहीं मिला था। 

रविवार शाम, मैं, देवांशी को लेकर उस पुलिस स्टेशन गई थी जहाँ प्रभुत्व हिरासत में था। इंस्पेक्टर मुझे पहचान गया था। उसने पूछा - वकील साहिबा कैसे तकलीफ की यहां आने की?  

मैंने देवांशी का परिचय देते हुए कहा - देवांशी ने पति को सबक देने के लिए, एक नाटक रचा था। आशा है अब दो दिनों में, इनके पति प्रभुत्व की बुद्धि, आपकी आवभगत से ठिकाने पर आ गई होगी। अतः प्रभुत्व की प्रथम सूचना रद्द करते हुए, उसे रिहा कीजिए। मैंने, तत्संबंध में देवांशी का हस्ताक्षरित आवेदन, थाने में प्रस्तुत करवा दिया था। औपचारिकताएं पूर्ण किए जाने पर, प्रभुत्व को रिहा कर दिया गया था।

सब कुछ इस तरह से हो गया था कि यह कांड, कंपनी तथा प्रभुत्व - देवांशी के परिचितों की जानकारी में नहीं गया था।   

देवांशी, प्रभुत्व के साथ चली गई थी। देवांशी, अब पूर्ववत प्रेम से ना रहकर, सहमी उदास सी रहती थी। यह देख प्रभुत्व, उससे अत्यंत प्यार से पेश आता और स्वयं को ही धिक्कारा करता था। 

देवांशी, मेरे साथ मोबाइल पर संपर्क में रह कर, प्रभुत्व के साथ किस तरह पेश आए उसके लिए टिप्स लिया करती थी।  

प्रभुत्व, अब प्रतीक्षा करता था कि कब बीतते समय की मलहम, उनके बच्चे का जन्म और देवांशी से उसका, प्रेममय व्यवहार और उसकी सेवा, देवांशी को सामान्य करें, ताकि दोनों में पूर्ववत प्रेम का बसेरा हो जाए और वे पुनः अपने को उत्कृष्ट प्रेमी मानने लगें  …  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 

12-04-2021

                      

        

                           

                


No comments:

Post a Comment