Thursday, April 29, 2021

मासूम सवाल …

 

मासूम सवाल … 

दृश्य अस्पताल हॉल का था - लगे हुए बेड पर 20 मरीज थे। कुछ के मुँह पर ऑक्सीजन मॉस्क थे। कुछ के बेड साथ रखे गए स्टैंड पर ड्रिप सलाइन टंगी हुई थीं। लगभग सभी रोगी के हाथ एवं सीने पर नलियाँ एवं तार जुड़े हुए थे। बेड के ऊपरी तरफ मॉनिटर स्क्रीन थीं। जिन में मरीज की धड़कनों, रक्तदाब आदि के पैरामीटर एवं तरंग प्रदर्शित हो रही थी। कोई कराह रहा था तो कोई खाँस रहा था। किसी किसी की आँखे, उन्हें हो रही वेदना से नम थी। मगर सभी रोगी इस समय अत्यंत सहमे हुए थे। 

कारण था कुछ मरीज (जिन्हें अस्पताल में एडमिशन नहीं मिल पा रहा था) के परिजनों ने, कुछ देर पहले ही अस्पताल में घुस कर हंगामा खड़ा किया था। हॉल में फर्श पर कुछ फर्नीचर, कंप्यूटर आदि टूटे पड़े थे। एक डॉक्टर को पटक पटक कर मारा गया था। उनके हाथ-पैर में फ्रैक्चर हो गया था। उन्हें अभी ही अस्पताल सहकर्मी ऑपरेशन कक्ष में ले गए थे। 

एक सिस्टर भी, क्रोधित परिजनों के द्वारा की गई हिंसा की शिकार हुई थी। उस पर कोई बाह्य चोट तो नहीं थी मगर उसके कपड़े इस तरह फाड़ दिए गए थे कि उसके अधोवस्त्र फटे भाग से दिखाई पड़ रहे थे। वह अचेत अभी भी हॉल के बीच फर्श पड़ी हुई थी। 

हॉल में मरीजों के खांसने, कराहने के अतिरिक्त, तूफान के गुजरने के बाद जैसा सन्नाटा था। तब नर्स के अचेत शरीर में कुछ हरकत होती दिखाई पड़ी थी। उसकी आँखे खुल गई थी। उसने फर्श पर पड़े पड़े ही अपने शरीर पर दृष्टि दौड़ाई थी। जिससे उसके मुख पर सकते में आने के भाव दृष्टिगोचर हो रहे थे। वह दो चार मिनट यूँ ही पड़ी रही थी। फिर वह उठी थी और किसी रोबोट की तरह चलते हुए, लिफ्ट में आई थी। ग्राउंड फ्लोर पर, उसे लिफ्ट से निकल कर अस्पताल भवन के बाहर आते लोगों ने देखा था। 

वह अपने वस्त्र क्यों नहीं व्यवस्थित कर रही है? और बाहर आकर क्या करने जा रही है? उपस्थित लोगों के मन में ये प्रश्न उमड़ रहे थे। वह नर्स 26-28 साल की भवन के सामने धूप वाली जगह में वैसे ही आकर धरती पर पड़ गई थी जैसे कुछ समय पूर्व, लोगों की हिंसा एवं अपमान भुगतने के पश्चात वह हाल में पड़ी थी। इसे देख कुछ देर पहले हंगामा मचाने वाली भीड़ भी स्तब्ध रह गई थी। अपने अपराध बोध के कारण उनमें से किसी का साहस, उसके पास जाने का नहीं हुआ था। 

अस्पताल में हुई हिंसा की सूचना लगने पर, एक न्यूज़ चैनल की टीम पहुँच गई थी। उसके कैमरामैन ने नर्स के चारों तरफ घूमते हुए वीडियो लेना शुरू किया था। साथ की रिपोर्टर स्पीकर लिए, उत्तेजित स्वर में घटना के विवरण बताते हुए, विभिन्न सवाल खड़े कर रही थी। चैनल स्टूडियो से यह ग्राउंड जीरो, लाइव टेलीकास्ट प्रसारित होने लगा था। 

स्टुडिओ से न्यूज़ एंकर महिला भी उत्तेजित हो इसे ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह बता रही थी। कह रही थी एक बड़ी खबर आ रही, जयप्रकाश अस्पताल से, जिसमें उत्तेजित परिजनों ने डॉक्टर-नर्स के साथ मारपीट की है। हम आपको अस्पताल लिए चलते हैं जहां अस्पताल भवन के सामने एक नर्स, फटे वस्त्र में घायल जमीन पर पड़ी हुई थी। दर्शकों को अब अस्पताल के सामने का यह दृश्य दिखाई देने लगा था। 

कहीं से एक कुर्सी लाकर, चैनल रिपोर्टर, सहारा देकर सिस्टर को कुर्सी पर बैठा रही थी। फिर कोई एक शॉल ले आया था। ज्यों ही रिपोर्टर ने शॉल से, सिस्टर के फ़टे वस्त्रों से दिख रहे मांसल अंगों को ढकने का प्रयास किया, नर्स ने उसे रोक दिया था और दर्शकों ने सिस्टर को कहते सुना था -

नहीं मुझे ऐसे ही रहने दो, नहीं तो आपके द्वारा दिखाया जा रहा समाचार कम सनसनीखेज हो जाएगा। आपकी टीआरपी बढ़ ना सकेगी। 

इससे रिपोर्टर के मुख पर खिन्नता दिखी थी। जल्द ही उसने अपने को नियंत्रित कर लिया और कैमरे के सामने मुखातिब होकर कहा - 

देश की नं. 1 हमारी चैनल, इस दुखद घटना को सर्वप्रथम आप तक पहुंचा रही है। हम सुनवाते हैं, अस्पताल में हुई हिंसा से पीड़ित सिस्टर के मुँह से ही आज की घटना का ब्यौरा।  

दर्शकों को फिर नर्स के चारों ओर लगी भीड़ को देखा था। फिर नर्स को देखा था। नर्स के सामने अब रिपोर्टर ने स्पीकर कर दिया था। रिपोर्टर ने पूछा - आपका नाम क्या है?

नर्स ने बताया - मृदुला 

रिपोर्टर ने कहा - आप हमारे दर्शकों को बताएं, आपके साथ क्या कुछ किया गया है?

आसपास से कोई पानी की बोतल ले आया था। मृदुला ने कुछ घूंट लेकर अपने गले से नीचे उतारे थे। लगता था कि आधे घंटे तक पड़े पड़े उसके मन में जो विचार चलते रहे थे वो उसके जुबान पर आ गए थे। दर्शक श्रोताओं को उदास मगर दृढ नारी स्वर में यह सुनाई पड़ रहा था -

युवावस्था में मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति, औसतन प्रतिदिन 8 घंटे सोते हैं। अब 13 महीने हुए हैं, हम छह घंटे भी शांति से नहीं सो पा रहे हैं। हमें फुर्सत नहीं मिल रही है यह सोचने की कि इसे हमारे स्वास्थ्य पर क्या बुरा प्रभाव पड़ेगा? हमारे जीवन के कितने दिन कम हो जाएंगे। छह महीने पहले अस्पताल में मेरे संक्रमित हो जाने से मेरे माध्यम से कोरोना, मेरे घर तक पहुँच गया। बाकी तो स्वस्थ हुए मगर मेरे 53 वर्षीय पापा की जीवन ज्योति अकाल ही बुझ गई। मुझे फुर्सत नहीं मिली कि मैं उन्हें याद करके तसल्ली से रो ही लेती। 

हम खो रहे हैं अपना आराम व सुख, अपने परिजन, फिर भी लगे रहे हैं। हमने आजीविका के लिए चिकित्सा क्षेत्र को चुना था। हमें, हमारा कर्तव्य स्मरण रखना था। देश पर महामारी की आपदा में जितने अधिक से अधिक लोगों को बचाया जा सकता है। उन्हें बचाने के लिए यह नहीं सोचना था कि क्या हमें मिलेगा या हम क्या खो देंगे। 

आज देश पर संकट अधिक गहरा गया है। अकेले हमारे प्रयास पर्याप्त नहीं रह गए कि हम सभी को अस्पताल में स्थान दे पाते। सभी को जीवन रक्षक प्रणाली और जीवन वायु उपलब्ध करा कर उन्हें बचा सकते। 

विफलता के कई कारण थे तब भी, सभी को उपचार नहीं दे पाने, सभी के प्राण रक्षा नहीं करने का ग्लानि बोध हम अनुभव कर रहे थे। हमें दिख रहा था जिन्हें आवश्यकता होते हुए उपचार नहीं मिल पा रहा है, उनके परिजन उद्वेलित हैं। हम पर भीषण मानसिक दबाव था। हम पर खतरा था। जानते हुए कि हम पर हमला हो सकता है हम नित अपनी ड्यूटी पर उपस्थित हो रहे थे। 

ऐसी चुनौतियां जीवन में बार बार नहीं आती हैं। हम जूझ रहे थे कि इस स्थिति को जितने शीघ्र नियंत्रित किया जा सके, हम करें। हमें कई बार, रिलीवर नहीं मिल रहा था। हममें से अनेक 24-24 घंटे अस्पताल में रहे आते थे। ऐसी स्थिति में भी हम, स्वस्थ होकर जाते व्यक्ति के चेहरे की प्रसन्नता देखकर, प्रसन्न हो रहे थे। 

हमने क्या किया है उसे हमारे देशवासी नहीं देख सके इस बात का दुःख हमें नहीं है। खेद मगर, हम क्या नहीं कर सके इसे ही देखा जा रहा है। 

कोई बात नहीं आज भीड़ ने एक डॉक्टर को बुरी तरह पीट दिया। कोई बात नहीं कि यह भुला दिया गया कि इसी कोरोना में अपने पापा को खोकर मैं, एक अनाथ बेटी हूँ। आवेशित पुरुषों ने मुझ पर भी कुछ हाथ जड़ दिए। अधिक दुखदाई यह है कि मेरे साथ, व्यवहार बलात्कारी मानसिकता वाला किया गया। जिसका परिजन बीमार है वह, अपने परिजन की बीमारी भूलकर, यह याद रख पाया कि मैं एक जवान औरत हूँ। मुझे छेड़ा जा सकता है। 

इसलिए मैंने फाड़ दिए गए वस्त्रों में ही, पिछले घंटे भर से अपने को सब के सामने रख लिया है। तुम निर्णय कर लो कि तुम्हें इस नर्स की सेवा चाहिए या बलात्कार करने के लिए यह औरत।   

किसी को पीटना है तो मुझे और पीट ले। मगर वह यह जान ले कि इस से डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ बढ़ जाने वाला नहीं है। अस्पताल में पेशेंट के लिए खाली जगह नहीं बन पाएगी। 

उपस्थित आप और मेरा देश, मेरी जवान देहयष्टि देख तृप्त हो जाए तो मैं, कपड़े ठीक कर फिर सेवा में लग जाऊँगी। जिस किसी को फिर पीटने की इच्छा है, फिर छेड़खानी का सुख चाहिए है, कल फिर आ जाए वह, किसी परिजन के उपचार के बहाने, मैं फिर इस ही अस्पताल में उपलब्ध मिलूंगी। 

मेरे विचार दृढ हैं मेरे लक्ष्य और संकल्प दृढ हैं। मुझे क्या खो देना पड़ रहा है इसका स्मरण नहीं रखना है। मुझे जो आता है उस अनुरूप, रोगियों को सेवा प्रदान करना है। 

मृदुला चुप हो गई थी। 

तब भीड़ में से एक अधेड़ सामने आया था वह चिल्लाकर बोला - हाँ, मैंने मारा है इसे। देखो मेरे पिता इधर अस्पताल के बाहर पड़े मौत से जूझ रहे हैं। अस्पताल शुल्क बहुत महँगा किया हुआ है और उस पर भी जगह नहीं दे रहे हैं। त्रिया चरित्र है सब इसका, अपनी नाकामियों पर पर्दा डालकर, सहानुभूति बटोरने के लिए। इसकी निर्लज्जता तो देखो चर्चा पाने के लिए अंग दिखाते पड़ी है यह सबके सामने। 

रिपोर्टर ने मृदुला से पूछा - क्या उत्तर है इस व्यक्ति के आरोप का, आपके पास? 

मृदुला ने प्रश्न की विचित्रता से दुखी होकर उत्तर दिया - 

बड़े ही मासूम हैं ये भाई। और बड़े ही मासूम इनके और आपके सवाल हैं। मैं रोई नहीं हूँ तब भी इसमें इन्हें त्रिया चरित्र दिखाई दे रहा है। क्या मैंने आमंत्रित किया था इन्हें कि मुझे मारो, मुझसे छेड़खानी करो और मेरे कपड़े फाड़ो ताकि मुझे चर्चा पाने के लिए यह स्वाँग करने का मौका मिले। लागत से छह गुनी शिक्षा, कपड़े, अनाज, फल, दवाएं और सभी सामग्रियों और सेवाओं में, मैं जीवन यापन करती रही हूँ। इन्हें सिर्फ हमारे शुल्क ही महँगे दिख रहे हैं। चलो मैं शुरुआत करती हूँ। शुल्क घटाने की, मैं अति लाभ के चिकित्सकीय पेशे से इस्तीफा दे देती हूँ। कल से मैं, यहीं फुटपाथ पर सब्जी फल बेचने बैठ जाती हूँ। मामूली लाभ पर दूँगी यहाँ अस्पताल में भर्ती होने वाले परिजनों के लिए फल। खरीदें ये भाई भी, मेरे से सब्जी फल, सस्ते में। 

तब न्यूज़ एंकर ने, ग्राउंड जीरो से आ रहे दृश्य का वॉल्यूम म्यूट किया था। उसने दर्शकों के सामने सवाल रखा - 

क्या मृदुला का अस्पताल में पिटने और लाज खोने के खतरे को देखते हुए नर्स का काम छोड़ कर सब्जी बेचना शुरू करना चाहिए? कृपया हाँ या नहीं में, हमारी चैनल की वेबसाइट पर तुरंत मैसेज करें .. 

अब न्यूज़ चैनल दर्शक, ‘राजश्री के विज्ञापन’ में हमारे महानायक का पुरुष चरित्र देखने लगे थे। 

उधर ग्राउंड जीरो पर पुलिस पहुंचकर कार्यवाही करने लगी थी। त्रिया चरित्र, बताने वाले अधेड़ के, पुरुष चरित्र को जाँच में लिए जाने के लिए उसे कुछ और दोषियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया था। 

बाद में मृदुला ने भावावेश से मुक्त होकर, विचार किया था। यह सोचने पर कि उस जैसी प्रशिक्षित नर्स की आवश्यकता आज समय को है वह अगले दिन फिर यूनिफॉर्म में आकर अस्पताल में अपनी ड्यूटी करने में लग गई थी  …. 

अगले दिन उधर, पुलिस पूछताछ में, वह अधेड़ अपनी कही हुई बात की पुष्टि में कह रहा था - 

मैंने कहा था ना कि यह सब त्रिया चरित्र और चीप पॉपुलैरिटी के लिए किया गया स्वाँग है, क्या मृदुला आज सब्जी बेच रही है?   

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

29-04-2021

 

                


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