Monday, April 26, 2021

प्रश्न हमारे समक्ष है …

 

प्रश्न हमारे समक्ष है  … 

हमारी सोसाइटी के ओनर्स एसोसिएशन ने, (प्रशंसनीय) इनिशिएटिव लेकर सात मार्च को वैक्सीन का पहला डोज़ अरेंज कराया था। मैं इस हेतु रजिस्टर कराने गया था। वहाँ वालन्टेरली उपलब्ध आदरणीय महोदय ने कहा- सर, 100 रजिस्ट्रेशन चाहिए, 65 अब तक हुए हैं। आप सोसाइटी के बाहर के भी परिचित-रिश्तेदार का भी रजिस्ट्रेशन करवाएं तो अच्छा है। डोज़ उपलब्ध ज्यादा हैं, लग कम सक रहे हैं। 

18 अप्रैल को कॉन्टैक्ट किया तो ओनर्स एसोसिएशन ने बताया, कोशिश कर रहे हैं, वैक्सीन अभी कम पड़ रही हैं। 19 अप्रैल की रात उनके द्वारा कहा गया, अगले सुबह 100 डोज़ उपलब्ध हुए हैं, आप सुबह जल्दी टोकन ले लीजिए। 

अगली सुबह वहां कटु दृश्य था। पहले डोज़ के समय डोज़ लेने लोग तैयार नहीं थे। इस बार टोकन के लिए लड़ रहे थे। 100 टोकन उपलब्ध थे। क़्यू में सब पहले लगने की कोशिश में थे। सिक्योरिटी को मेहनत करनी पड़ी, हमें 56-57 क्र. के टोकन मिल गए थे। बहुत से लोग क्रोधित होकर वापस लौटे थे। इस बीच हमारा वैक्सीनशन पूरा हुआ था। 

महामारी की आपदा देश पिछले वर्ष से झेल रहा था। सरकार का दायित्व था अतः इस हेतु सरकार ने प्रिवेंटिव मेजर्स लिए थे। 

सरकार की कोशिशें उपाय क्रियान्वित करने की थी। हम, जिन्हें क्रियान्वयन स्वयं नहीं करना था, सरकारी उपाय में वोलिंटियर होकर, क्रियान्वयन को सफल करने में सहायता दे सकते थे। 

हमने यह नहीं करके, आलोचक की भूमिका ले ली। व्यवस्था की हर कोशिशों में अच्छाई की ओर दृष्टि नहीं करके, उसमें दोष खोज कर उस पर दायित्वहीनता से  टिप्पणी करने लगे। यह मुसीबत हम सब पर है इसे समझते हुए, जिनके पास जो समाज भूमिका थी उसे, उनका अधिक उदारता से  निभाना अपेक्षित था। ऐसा नहीं हुआ। 

लोगों ने खाने पीने की सामग्रियों पर अधिक कमाई करना, औषधियों, मॉस्क, सेनेटाइजर पर अधिक दाम वसूलने शुरू किए। लॉकडाउन में सार्वजनिक जगह डिसिप्लिन का परिचय नहीं दिया गया। संपन्न नागरिकों के द्वारा प्रधानमंत्री केयर फंड में 500-1000 रूपये तक का दान नहीं दिया गया। वैवाहिक एवं धार्मिक आयोजन चलते रहे। निर्धारित संख्या से ज्यादा लोग भीड़ बनते रहे। व्यवस्था में दोष खोज खोज कर उस पर राजनीति करते रहे। 

इन चुनौतियों में भी हमारी एजेंसीज काम करती रहीं। हालाँकि जितने सामाजिक सौहार्द कायम रख कर, जितना कम जनहानि के साथ आपदा पर नियंत्रण होना चाहिए था, उससे अधिक नुकसान सहित देश में पहली वेव कमजोर हुई थी। सरकार के साथ वैज्ञानिक, चिकित्सा विशेषज्ञ एवं वैक्सीन निर्माण प्रयासों ने देश को 2 देश निर्मित वैक्सीन भी उपलब्ध करा दी। जिन्हें वैक्सीन क्रियान्वयन का दायित्व नहीं था, उन्होंने पुनः आलोचक की भूमिका ग्रहण कर ली। भड़काऊ बयानों से दृश्य यह उपस्थित हुआ कि पहले वैक्सीन ज्यादा, लगाने वाले नहीं मिल रहे थे। अब लगाने वाले इतने बढ़ गए कि वैक्सीन लगा पाना कठिन हो गया। 

इस बीच दूसरी वेव आ गई। उपचार कराने हेतु परस्पर एवं वैक्सीन लगवाने हेतु हम, आपस में उलझने लगे। सामाजिक सौहार्द तार तार होने लगा। केसेस किसी को भी आशा नहीं थी उससे कहीं अधिक संख्या एवं तेजी से आने लगे हैं। 

देश पर जनसंख्या भार, बहुत है। यह हमारी ही देन है। इस जनसंख्या भार को समझे बिना हमने, व्यवस्था में कमी का दोषारोपण भी पूरा सरकार पर शुरू कर दिया।

ऑक्सीजन की माँग बड़ी, इसमें भी लोगों को अपने लिए अवसर दिखने लगा।   

हम, सहयोगी एवं जागरूक नागरिक होने का परिचय नहीं दे सके। फलस्वरूप प्रिवेंटिव मेजर्स फेल हो गए। आज सरकार ब्रेकडाउन मेजर्स पर काम करने को लाचार हुई है। 

हम ये दर्दनाक दृश्य स्मरण रख सके तो शायद अगले चुनाव में सरकार बदल देंगे। तब अगली सरकार भी ऐसे परिदृश्यों में असफल ही होगी। सफलता सरकार के प्रयासों से ज्यादा, हमारे राष्ट्रनिष्ठ होने से मिल सकती है। 

यह नहीं होने पर दिनों दिन जनसंख्या और बढ़ेगी, सामाजिक सौहार्द और बिगड़ेगा। हम अपने नहीं, दूसरों पर आरोप रखने की दृष्टि सुधार नहीं सकेंगे। 

यदि यह हुआ तो हम, भारतीय को ना भारत में जगह मिलेगी ना ही उसका स्वागत कहीं और होगा। भारतीय, ना भारत में खुशहाल होगा, ना ही कहीं और सम्मान से रह सकेगा। 

यह विचारणीय प्रश्न किसी अमेरिकी या यूरोपियन के समक्ष नहीं, स्वयं (हम) भारतीय नागरिकों के समक्ष उपस्थित हुआ है। 

क्षमा कीजिए मैंने, हम शब्द का प्रयोग कर अपने को ही नहीं आपको भी दोषी बता दिया है। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-04-2021

         


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