तीस साल बाद ...
30 वर्षों तक के समाज सेवी कार्यों के लिए मंच, मुझे सम्मानित कर रहा था। शॉल एवं श्रीफल से मेरा सम्मान किए जाने के बाद, मुझसे उद्बोधन के लिए कहा गया था।
हॉल में अपने सामने 800-900 बुद्धिजीवियों की उपस्थिति से तब मेरे आत्मविश्वास में कमी आ गई। किसी मंच पर प्रमुख अतिथि जैसे बोलने का मेरा यह पहला अवसर था। मैंने किसी तरह से थोड़े शब्द कहे थे -
उपस्थित सभी श्रद्धेय प्रबुद्धजन, आपको संबोधित कर सकने की प्रतिभा मुझमें नहीं है। इसलिए अगर सभा की अनुमति हो तो मैं, अपनी बात प्रोजेक्टर पर, एक शार्ट मूवी के माध्यम से रखना चाहता हूँ।
यह सभा, मुझे सम्मानित करने के लिए चल रही थी। मेरी बात को टाला नहीं गया था। मैंने अब तक रिलीज़ नहीं की गई, अपनी निर्मित करवाई, शार्ट मूवी अपने लैपटॉप के माध्यम से प्रोजेक्टर पर प्ले की थी। फिर स्वयं मंच के नीचे जाकर पहली पंक्ति में आकर बैठ गया था।
मूवी चालू हो गई थी। पहला दृश्य स्क्रीन पर ऐसा दिखाई दिया -
यह हॉस्पिटल का एक छोटा कमरा है। इसकी क्षमता एक मरीज की है। कक्ष के दरवाजे पर ‘कोविड वार्ड’ की प्लेट लगी हुई है। इसमें, भीतर अतिरिक्त बेड लगाया गया है।
वॉल क्लॉक रात 11.30 का समय दिखा रही है। इस समय दोनों बेड पर, मरीज हैं। पहले बेड पर लगभग 40 वर्ष का, एक युवक बेसुध पड़ा हुआ है। दूसरे बेड पर उसकी दोगुनी उम्र के वृद्ध अपनी वेदना के कारण, बीच बीच में कराहते हुए लेटे हैं। उनकी धड़कनें 45 के नीचे चल रही है। इससे उन्हें सेडेटिव देकर सुलाया जाना खतरे की बात हो सकती है। अतः उन्हें सेडेटिव पिल्स या इंजेक्शन नहीं दिया गया है।
वृद्ध कभी सो गए लगते हैं, कभी जाग रहे लगते हैं। जब उनकी आँखे खुली होती हैं तो वे मॉनिटर पर डिस्प्ले होती वेव्स एवं डिजिटल पैरामीटर्स पर अपनी दृष्टि डालते हैं। फिर नम आँखों से युवक के मॉनिटर को देखने के बाद, उसके मुख को स्नेहयुक्त भावों से देखने लगते हैं।
दोनों ही पेशेंट के हाथ, पैर, पीठ एवं सीने पर नली एवं वायर का जाल लगा हुआ है। मुँह पर ऑक्सीजन मॉस्क लगे हुए हैं। मॉनिटर इनफर्मेशन्स, दोनों रोगियों की स्थिति नाजुक होना दर्शा रही हैं।
तब एक 27-28 वर्षीया, सिस्टर (नर्स) जिसके चेहरे पर थकान एवं खीझ देखी जा सकती है, कक्ष में आती है। उसके पीछे, डोर क्लोज़र से दरवाजा बंद हो जाता है। सिस्टर के सीने पर लगी प्लेट पर, विजेता (नाम) लिखा हुआ है। विजेता दोनों मॉनिटर पर एक दृष्टि डालती है। फिर बारी बारी से दोनों मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन पढ़ती है। स्टैंड पर सलाइन लगाकर युवक की हाथों में लगी सुई से, नली जोड़कर ड्रॉप की गति एडजस्ट करती है।
इसके बाद वृद्ध का मॉस्क हटाकर, सिर के पीछे अपना हाथ के सहारे से थोड़ा आगे करते हुए, एक गोली पानी के साथ देती है। फिर वापस उन्हें आराम की अवस्था में लिटा कर, मॉस्क वापस लगा देती है।
इतना करने के बाद वह, कक्ष में रखी कुर्सी पर सिर टिका कर बैठ जाती है। वृद्ध दवा दिए जाने से चेतन हुआ है। वह, विजेता के मुख की थकान एवं खीझ से, उसके प्रति दया अनुभव करता है। वृद्ध पहले दर्द से कराहता है। फिर कहता है - सिस्टर, आप पर बहुत काम बढ़ गया है। बहुत थकी लग रही हो।
सुनकर विजेता का चिढ़ होती है। सोचती है, इस बूढ़े की मैं, सिस्टर कहाँ से लगती हूँ। फिर भी कहती विनम्रता से है -
मेरा नाम विजेता है। मरीज दोगुनी संख्या में आ गए हैं। इससे नर्सिंग स्टॉफ कम पड़ रहा है। 16 घंटे हो चुके हैं तब भी मुझे छुट्टी नहीं मिल पा रही है।
वृद्ध संवेदना अनुभव करता हुआ कहता है - मैंने घर में, हॉस्पिटल लाने को मना किया था। बेटा नहीं माना है, सॉरी, सुजाता!
विजेता समझती है कि वृद्ध की स्मरण शक्ति कमजोर हुई है। उस ने अपना नाम विजेता बताया है। कह, सुजाता रहा है। विजेता कहती है -
आपने, अपनी बारी पर वैक्सीन लगवाई होती तो आपको हॉस्पिटल नहीं लाना पड़ता।
वृद्ध कहते हैं - मैंने सोचा था, मेरे नहीं लगवाने पर किसी एक, अन्य को वैक्सीन का लाभ मिलेगा। यह सोचा था कि मेरा क्या है तब नहीं तो, साल-छह महीने में मुझे तो जाना ही पड़ेगा।
विजेता ने कहा - 5-5 लाख वैक्सीन, देश के लोग लापरवाही से खराब कर रहे हैं। यहाँ आप हैं कि किसी और के लिए, अपने दो डोज़ बचा देने की चिंता में पड़े रहे हैं। अब देखिए ना, आप दूसरे की ऑक्सीजन ले रहे हैं।
वृद्ध फिर कराह रहे थे। अब उनमें शारीरिक पीड़ा के साथ ग्लानि बोध भी था। कहा - विजेता, ऑक्सीजन कम पढ़ रही है, क्या?
विजेता सोचने लगी, अब सही नाम कहने लगा यह बूढ़ा। उसने कहा - कम नहीं, ऑक्सीजन बची ही नहीं है। जिस मात्रा में अभी खर्च हो रही है, रात तीन बजे तक खत्म हो जाएगी। जबकि नई आपूर्ति सुबह के पहले नहीं हो पाएगी। ऑक्सीजन खत्म हुई तो आप बच नहीं पाओगे। सुबह आपके परिजन हंगामा खड़ा करेंगे। हमारा पूरा हॉस्पिटल स्टाफ, इसे लेकर परेशान है। हमारी थकान, हमारे प्रयास और हमारे त्याग कोई नहीं देखेगा। सब को आप (मरीज) का मर जाना आक्रोशित करेगा।
वृद्ध कुछ समय, कुछ नहीं बोला तो विजेता ने समझा, सो गया बूढ़ा! अच्छा हुआ व्यर्थ दिमाग चाट रहा था।
विजेता ने सिर कुर्सी के बैक पर रख कर आँखे मूंद लीं थी। वृद्ध की कराहने की आवाज ने उसे चिढ़ाया था। फिर सुना वृद्ध कह रहा है - सुजाता, मेरी ऑक्सीजन बंद कर दो।
विजेता ने आँख खोली, उत्सुकता से कहा - क्यों, अभी मुश्किल से 80 है। बंद करते ही आप परलोक सिधार सकते हो।
वृद्ध ने कहा - कोई बात नहीं। (फिर युवक की तरफ इशारा किया) मेरी बचेगी तो इस बच्चे को मिलेगी। इसकी ऑक्सीजन, मॉनिटर पर 75 दिख रही है। शायद सुबह नई ऑक्सीजन आने तक, मेरी बची ऑक्सीजन, उसके काम आ जाए। अभी यह बच जाए तो शायद 40 साल और जी सकेगा। घर में पत्नी-बच्चे, इसके स्वस्थ हो कर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे होंगे।
विजेता ने सोचा - बड़ा उपकार करने को मरे जा रहा है, यह बूढ़ा। यहां बीमार चार सौ हैं। अपनी ऑक्सीजन बचा के, किस किस की जान बचा लेगा, यह बूढ़ा। विजेता ने पूछा - मरते समय परोपकार का मन कर रहा है, आपका?
वृद्ध चुप रहा। आँखें बंद किए हुए ही कराहता रहा। दो तीन मिनट बाद बोला - जीवन भर परोपकार की बातें सुनकर तथा परोपकार किया जाता देख कर मैं, उसकी सराहना करता रहा हूँ। कभी परोपकार किया नहीं है। पता नहीं, ऑक्सीजन की इतनी किल्लत में, मेरे ना लेने पर भी इस बच्चे को बचाया जा सकेगा या नहीं। तब भी मेरी ऑक्सीजन बंद कर दो, सुजाता। मेरा जीना अब किसी काम का नहीं। जबकि इस बेचारे पर जिम्मेदारी बहुत होंगी।
विजेता ने कहा - मेडिकल एथिक्स (चिकित्सा नैतिकता) के विरुद्ध यह काम, मेरी नौकरी ले सकता है। आप जानते हैं?
वृद्ध ने सुझाव दिया - मेरा मॉस्क लगे रहने दो, ऑक्सीजन जीरो पर कर दो। आप पर कोई संदेह नहीं करेगा। वैसे भी बहुत लोग मर रहे हैं। मेरा मरना अस्वाभाविक नहीं लगेगा। मुझे लगता है, ऑक्सीजन बंद करने पर भी मैं, नई आपूर्ति आने तक मरूँगा नहीं।
कोविड वार्ड में वैसे भी कोई रिश्तेदार देखने आ नहीं सकता था। डॉक्टर के भी सुबह तक आने की कोई संभावना नहीं थी। बूढ़े के बकबक ना सुनना पड़े सोचते हुए विजेता ने तब, वृद्ध के चाहे अनुसार ऑक्सीजन बंद कर दी।
इसके साथ ही बूढ़े के कराहने एवं श्वास लेने में तकलीफ की आवाज बढ़ गई थी। विजेता ने बूढ़े के चेहरे पर एक दृष्टि डाली, उसकी आँखें बंद थीं। तब विजेता अन्य मरीजों को देखने चल दी थी।
किसी तरह ऑक्सीजन साढ़े तीन बजे तक चल पाई थी। तब अचानक ऑक्सीजन आपूर्ति आ गई। हॉस्पिटल में 15 मिनट में सप्लाई पुनः चालू कर दी गई थी। जिससे रोगियों पर से ऑक्सीजन नहीं मिलने का खतरा टल गया था।
विजेता को याद आया कि वृद्ध बिना ऑक्सीजन पर है। वह बुरी तरह थकी हुई थी, निद्रा की कमी से उसके एक एक कदम, मुश्किल से बढ़ रहे थे। फिर भी बूढ़े की चिंता में, वह दौड़ती हुई उसके कक्ष तक लपकी थी। दरवाजा खोलते ही सबसे पहले विजेता की दृष्टि, बूढ़े के बेड के बगल में लगे मॉनिटर पर गई थी। हृदय धड़कनों को दर्शाने वाली वेव, जीरो लेवल पर सीधी रेखा हो चुकी थी। विजेता रो पड़ी थी सिर्फ इतना निकला था - ओह्ह मैं, हत्यारी!
फिर रोते रोते विजेता ने वृद्ध के शरीर से जुड़ी नलियाँ एवं वायर हटाए थे। मुंह पर का मॉस्क हटाया था। वृद्ध का मुँह खुला था। जो श्वास लेने में कठिनाई एवं श्वास लेने के प्रयास में, अंतिम समय में खुला रह गया था। विजेता ने, वृद्ध की ठोड़ी पर हाथ रख उनका मुँह बंद किया था। फिर, कोविड खतरे को भूलकर, रोते हुए वृद्ध के सीने पर अपना सिर रखा था। विजेता इस ही स्थिति में कुछ मिनट रही थी। तब उसे, बगल के बेड से आती आवाज सुनाई दी थी - सिस्टर, ये आपके रिश्तेदार थे, क्या?
विजेता वृद्ध के सीने से अलग हटी थी। उत्तर दिया था - मेरे ही नहीं, ये संपूर्ण मानवता के रिश्तेदार थे। इन के सीने से लग, मैं यह अनुभूति कर रह थी कि कुछ ही समय पूर्व तक, इनके हृदय की हर धड़कन, आपकी चिंता कर रही थी कि आप बच सकें, आपके पत्नी बच्चे अनाथ ना हो जाएं।
युवक को कुछ समझ नहीं आया था। वह चुप रह गया था। विजेता ने, वृद्ध के बाजू में रखा मोबाइल देखा तो उसमें कोई लॉक नहीं था। विजेता ने कॉल हिस्ट्री देखी थी। रात 9.35 बजे आखिरी कॉल, उस में, किसी सुजाता का देखने मिला था। विजेता ने उस पर कॉल किया। उत्तर तुरंत मिला था।
नारी स्वर, उसकी, गहन चिंता में होने की बात दर्शा रहा था। वह पूछ रही थी - पापा, आप अच्छे तो हो?
विजेता की रुलाई फूट पड़ी थी। वह सिर्फ हिचकियाँ ले रही थी। कुछ कह नहीं सकी थी।
शार्ट मूवी खत्म हो गई थी।
मैं, अब उठकर मंच पर आया था। मैंने, पुनः स्पीकर अपने हाथ में लिया था। सामने दीर्घा की ओर मुखातिब होकर बोलने लगा -
यह मूवी मेरे सच पर आधारित है। उस दिन उन परोपकारी वृद्ध के साथ, उस अस्पताल कक्ष में, दूसरा मरीज मैं ही था। सिस्टर विजेता ने बाद में, अस्पताल से छुट्टी मिलने के समय यह सच्चाई, मुझसे बताई थी। तब मैंने, वृद्ध के सीने में परोपकारी धड़कनों, जो उनके जाने के साथ शेष नहीं बची थीं, का स्मरण किया था। फिर अपने हृदय में चलती धड़कनों को, उनसे उत्प्रेरित किया था। यह अबसे 30 वर्ष पहले की घटना है। वह समय वैश्विक कोरोना महामारी का था। तब से 30 वर्ष बाद, आज मुझे नहीं पता है कि मेरी धड़कनें, ठीक उन वृद्ध की धड़कनों वाली भावना से धडक़तीं भी हैं या नहीं?
यह कहते हुए, मैंने स्पीकर रख दिया था।
सामने दीर्घा में दर्शकों की आँखें नम थी। वे सभी अपने स्थान से, खड़े होकर तालियाँ बजा रहे थे ….
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25-04-2021
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