Tuesday, April 20, 2021

शिखा ..

 

शिखा ..

(चतुर्थ भाग)

सामने, लिफ्ट में शिखा की बेटी रिया थी। मम्मा के हाथ के भोजन का मन हुआ तो वह, अवकाश के कारण अचानक हॉस्टल से आई थी। वह मम्मा को सरप्राइज देना चाहती थी। घर पहुँची तो मम्मा नहीं थी। वह अपने पास की अतिरिक्त चाबी लाना भूल गई थी और मम्मा को कॉल करने की सोच ही रही थी। तभी सामने आचार्या आंटी आ गई थी। आंटी ने रिया के बिना पूछे ही कहा - मम्मा, कहाँ हैं यह सोच रही हो रिया?

रिया ने कहा - हाँ आंटी, आपको पता है?

आचार्या आंटी ने बताया - मेरी मेड बता रही है कि अभी उसने शिखा को, महेंद्र सिंह के घर देखा है। 

रिया ने पूछा - यह महेंद्र सिंह कौन है? 

आंटी ने कहा - मैं भी नहीं जानती, मेड ही कह रही थी वह, उनके घर बी ब्लॉक - 308 में काम करती है। महेंद्र सिंह की पत्नी अभी बाहर गई हुई है। 

कहते हुए आचार्या आंटी रहस्यमय ढंग से हँस दी थी। आंटी की कही बात एवं हँसी ने रिया को बुरी तरह भड़का दिया था। उसने मम्मा को कॉल करने का विचार त्याग दिया एवं तमतमाई हुई वह बी ब्लॉक पहुंची थी। तब उसे, शिखा लिफ्ट में मिली थी। लिफ्ट में शिखा के आते ही रिया ने रुष्ट होकर पूछा - मम्मा, मैं आपको सरप्राइज देने, बिना बताए आ गई तो आपने मुझे ही सरप्राइज कर दिया। कौन है यह महेंद्र सिंह? पापा बाहर गए हैं तो आप, यह क्या करने में लग गईं? 

रिया का इस तरह आक्षेप लगाना, शिखा के लिए अप्रत्याशित था। उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी। रिया ने शिखा के उत्तर नहीं दे पाने एवं मुख पर के भाव का वही अर्थ लगा लिया जो आंटी की हँसी में छुपा था। 

रिया के साथ शिखा, बिना उत्तर दिए ही घर तक आई थी। बेटी के अपने पर किए अविश्वास से वह स्तब्ध रह गई थी। 

रिया ने घर में आने पर कहा - मम्मा, आपने मेरा मूड स्पॉइल कर दिया। मेरा तो ठीक है, पापा का सामना आप कैसे कर सकेंगी?

एक के बाद एक रिया की कही जा रही बातों से मर्माहत, शिखा ने उत्तर देने का विचार छोड़ दिया। वह गंभीर बनी रही। सोच रही थी कि सोचने दो रिया को, वह जो भी सोच रही है। आखिर माँ से बात करने का कोई तरीका भी तो होता है?

शिखा ने ठंडे स्वर में पूछा - रिया, पापा के लिए मैं छोले भटूरे और गाजर का हलवा बना रही हूँ। बताओ, तुम वही खाना पसंद करोगी या कुछ दूसरा चाहिए, तुम्हें?

शिखा के द्वारा अपने प्रश्नों पर कोई उत्तर नहीं दिए जाने ने, रिया को मजबूर किया कि वह अपनी कही बातों पर पुनर्विचार करे। रिया का गुस्सा कुछ शांत हुआ। उसे पछतावा भी हुआ। अब रिया सोच सकी कि मम्मा ने शायद कुछ गलत नहीं किया है। अन्यथा कोई बहाने से अपनी करनी सही निरूपित करने की कोशिश करतीं। फिर भी उसे शिकायत यह तो रही कि मम्मा ने, आंटी तरह के लोगों को बातें बनाने का व्यर्थ अवसर दिया है। तुलनात्मक नम्रता से रिया ने उत्तर दिया - मम्मा, मैं भी वही खा लूंगी। 

फिर चेंज करके शिखा रसोई में चली गई थी। किसी के कहने पर, अपनी मम्मा का मान ना रखने का ग्लानि बोध अब रिया को हो रहा था। टीवी में पसंद का शो देखने में भी, जब रिया का मन ना लग सका तो वह रसोई में आई थी। माँ की पीठ उसके तरफ थी। रिया ने पीछे से मम्मा को अपनी गलबहियां में लिया था।   

शिखा माँ थी। तिलमिलाई हुई भी थी मगर बेटी की उपेक्षा नहीं कर सकती थी। अपनी मनः स्थिति से परे, शिखा ने ओंठो पर मुस्कुराहट लाई थी। फिर कहा - रिया, मम्मा से ऐसी मजाक नहीं किया करो। मैं समझ नहीं पाई थी तुम, मजाक कर रही हो। 

बेटी का मूड ठीक हो सके इस हेतु, शिखा अपने अपमान को इशू नहीं बना रही थी। मम्मा का अपने लिए ममता बोध स्मरण कर के रिया पानी पानी हुई थी। 

जब तक रिया के पापा आए थे। सब कुछ सामान्य हो गया था। तीनों ने मिलकर रिया का आना एन्जॉय किया था। 

अन्यमनस्क होने पर भी शिखा ने, आठ दिन बाद घर लौटे पतिदेव के लिए रात्रि ड्यूटी निभाई थी। बाद में पति सो गए थे। आहत मना शिखा की आँखों से नींद कोसों दूर थी।  

शिखा ने आज ही एक बेटी राशि का, अपने पिता के प्रति सहज आदर भाव के बारे में जाना था। और आज ही शिखा ने, अपनी बेटी को, अपना अपमान करते पाया था। आखिर क्या अंतर था, अलग अलग परिवार की इन दो बेटियों के संस्कार में? शिखा बिस्तर पर लेटे हुए इस पर विचार कर रही थी। 

उसे एक ही अंतर दिखाई दे रहा था। एक के पिता अपने अनियंत्रित होती मनोकामनाओं को, बेटे-बेटियों के पिता होने के बोध से नियंत्रित कर लेने वाले थे। जबकि अपनी बेटी रिया के पिता, बेटी के सामने अपना ऐसा जिम्मेदार रूप नहीं दिखा पाए थे। इस कारण रिया को, जैसे अपने पापा दिखते थे उसने, मम्मा को उसी दृष्टि से देख लिया था। 

उसे इस बात से भी गहन निराशा थी कि अपनी माँ को देखने के लिए, रिया ने वही चश्मा प्रयोग किया था जो समाज का चश्मा था। जिसके लेंस से, नारी में ही दोष दिखाई देता है। 

अब अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद में, शिखा खुद से पूछ रही थी कि क्या उसने, महेंद्र सिंह सर के घर जाकर गलत काम किया था? इस पर अपने मन बहलाने के लिए शिखा का उत्तर था कि पहली बार जब वह सर, के घर गई थी तब उसे कहाँ पता था कि घर पर वे अकेले हैं। तब सर ने ही कहाँ उसे, अपने घर में आसानी से घुसने दिया था? सर के व्यवहार से अगर शिखा ने उनका विश्वास किया तो कुछ गलत कर दिया, क्या? उत्तर था - नहीं, विश्वास करके उसने सर से फेवर के साथ मानसिक संबल भी तो पाया था। फिर शिखा के मन में प्रश्न आया - क्या, सर से उनके लिए, अपने परिपक्व प्रेम का बता देना, शिखा का गलत आचरण था? यहाँ शिखा को लगा कि हाँ! कदाचित यह गलत था। इसके बाद ही अकेले में उन्होंने, शिखा को फिर अपने घर बुलाया था। शायद वह कुछ गलत करने की सोचते भी रहे हों। वे गलत चेष्टा का दुस्साहस शायद, शिखा की गरिमापूर्ण बातों के कारण नहीं कर पाए थे। 

अब शिखा खुद पर हँसी थी। सोच रही थी कि मानवीय मन कितना विचित्र होता है। सर ने कुछ गलत किया नहीं। अपने अकेलेपन में, कुछ समय शिखा के साथ भोजन एवं बात कर ली तो वह, उन पर इस तरह संदेह करने लगी। आखिर शिखा ने भी, सर के साथ भोजन एवं बातों का ही आनंद तो लिया था। अब शिखा अपने किए को, तर्कसंगत सिद्ध करने के अंदाज (Mode) में आ गई थी। उसने दृढ़ता से अपने सब किए को सही मान लिया। उसने सर से की, अपने प्रेम की शाब्दिक अभिव्यक्ति को भी सही माना। तर्क किया कि यदि नारी मन की अपेक्षा, पुरुष को मालूम ना हो तो कोई पुरुष, नारी अपेक्षाओं अनुरूप ढल कैसे सकेगा? कैसे, पुरुष को उसकी टाइप की स्त्री की पसंद का ज्ञान होगा? कैसे पुरुष को मालूम होगा कि नारी का, पुरुष से प्यार, दैहिक पिपासा के परे भी हो सकता है? ऐसे परिपक्व प्रेम के रंग में रंगी नारी को, पुरुष से सिर्फ आदर और मानसिक संबल की अपेक्षा होती है। सर से शिखा को हुआ प्रेम, ऐसा प्रेम ही था। 

इस खुशफ़हमी ने शिखा के संतप्त मन को शांत कर दिया। तब उसने अपने सोए हुए पति को देखा। फिर मन में कहा आप, मेरे प्रति निष्ठावान नहीं हो तो क्या! मैं तो आपका साथ निष्ठा से निभाती हूँ। परिस्थितिवश मेरे मन में, अन्य पुरुष के लिए प्यार उत्पन्न हुआ तो क्या! मगर जिसे दुनिया देखती है उस तन को तो मैं, उस / हर पुरुष से बचाए तो रखती हूँ। मैं जानती हूँ कि मैं आपकी पत्नी हूँ। वह पुरुष भी मेरी ही तरह की, किसी अन्य स्त्री का पति है। अपने विचार मंथन एवं तर्कों के बाद शिखा, अपने पति की पीठ पर हाथ रखकर सो गई थी।      

मुझे ,शिखा से मिले हुए दो सप्ताह हुए थे। इस बीच लक्ष्य की उपलब्धि हेतु काम की अधिकता में मैं, शिखा को एक तरह से भूले रहा था। यद्यपि मुझे यह चिंता  बनी रही थी कि मेरे घर से निकलने पर लिफ्ट में शिखा का, किस से सामना हुआ था। यह रविवार का दिन था। अगले रविवार को पत्नी वापस आ जाएंगी, यह सोचते हुए मैं, कुक का बनाया भोजन कर रहा था। तब डोर बेल गूँजी थी। कौन हो सकता है के संशय में, मैंने दरवाजा खोला तो अपरिचित एक लड़की खड़ी थी। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो उसने बताया - अंकल, मैं शिखा जी की बेटी रिया हूँ। 

मैंने मुस्कुराते हुए कहा - मैं भोजन कर रहा था। आओ, क्या तुम मेरे साथ भोजन करना पसंद करोगी?

रिया ने अंदर आकर कहा - हाँ, अगर आप मेरी जिज्ञासा पर सही बात बताएं तो खा लूँगी। 

मैं उसकी जिज्ञासा का अनुमान लगाते हुए, उसके लिए प्लेट में भोजन परोसने लगा था। वह खाने लगी थी। फिर उसने पूछा - मेरी मम्मा और आपका परिचय कैसे है?

मैंने बताया - मैं शिखा का बॉस हूँ। यद्यपि अब उनका ऑफिस दूसरा हो गया है। 

रिया ने पूछा - अकेले में मम्मा एवं आप कितनी बार मिले हैं। 

मैंने कहा - सिर्फ दो बार। शिखा जी, इसी महीने में यहाँ आईं हैं। 

रिया ने पूछा - मम्मा क्यों आईं थीं? और यहाँ आकर उन्होंने क्या किया था? 

मैंने बताया - एक बार मुझसे, अपने लिए फेवर का रिक्वेस्ट लेकर, दूसरी बार मेरे आमंत्रण पर। दोनों बार, बातों के अतिरिक्त उन्होंने मुझे ऐसे ही कंपनी दी थी जैसे आज तुम दे रही हो। अर्थात हमने दोपहर में साथ भोजन किया था।  

रिया शायद मेरे कहने की सच्चाई परख रही थी। उसने भोजन उपरांत कहा - अंकल, मैंने किसी की बातों में आकर, अपनी मम्मा का बहुत दिल दुखाया है। मगर उन्होंने मेरे सामने अपनी निर्मलता सिद्ध करने की कोई कोशिश नहीं की। मेरे आक्षेपों पर भी उन्होंने मुझ से कोई नाराजगी नहीं दिखाई। तब से ही मैं ग्लानि बोध में रही हूँ। चूँकि उन्होंने, मुझसे कोई बात नहीं कही, अतः बात क्या हुई, जानने के लिए मैं आपके पास आई हूँ। 

मैंने कहा - आपकी मम्मा, ऐसी जीव हैं जो अपने अनादर पर भी, दूसरों का आदर रखना जानती हैं। आप उनकी बेटी हो आपको, उन पर गर्व करना चाहिए एवं जीवन में उन जैसा बनना चाहिए। 

रिया ने कहा - आप ठीक कहते हैं, अंकल। 

फिर कुछ क्षण सोचने को रुकी तब कहा - आपके पास इतनी देर रहकर मुझे समझ आ गया है कि आपकी दृष्टि अन्य लड़की/महिलाओं के प्रति निर्मल है। मम्मा ने शायद यह पहचाना हुआ है। तभी उन्होंने आपके घर आने में संकोच नहीं किया है। वास्तव में मैं, यह बताने यहां आईं हूँ कि आपकी मेड और आचार्या आंटी ने, मेरी मम्मा की दुश्मन की तरह काम किया है। उनकी फैलाई बात मेरे पापा तक पहुँची। इस कारण उन्होंने मेरी मम्मा की पिटाई तक की है। यह भी चेतावनी दी है कि मम्मा, ना तो आपसे मिलें और ना ही मोबाइल आदि पर आपसे कोई संपर्क ही रखें। मेरे पापा खुद चरित्र के मामले में ठीक नहीं हैं। फिर भी उन्होंने मेरी मम्मा का जीवन, इस बात को लेकर नर्क कर रखा है। मैं यह कहना चाहती हूँ कि आप दोनों ने कोई गलती नहीं की है। तब भी आप मम्मा से कोई संपर्क ना रखें , प्लीज।     

मैं स्तब्ध था। रिया चली गई थी। ग्लानि मुझे हो रही थी। काश मैंने शिखा को अकेले में नहीं बुलाया होता। मेरा शिखा से यह कैसा प्रेम था कि मैंने उसके ही पति के मन में संदेह उत्पन्न कर दिया था। मैं सोच रहा था कि रिया के रिक्वेस्ट की अवहेलना कर, एक अंतिम बार तो मुझे शिखा से मिलना चाहिए। शिखा से संवेदना जताना चाहिए और क्षमा माँगना चाहिए  ….           

(अगला भाग, अंतिम)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

20-04-2021


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