Thursday, March 26, 2020

कोरोना नेगेटिव ...

कोरोना नेगेटिव ...

16 मार्च का वीडियो कॉल था।
सेन-फ्रांसिस्को से, रोहन, कह रहा था- माँ, अंदेशा है कि इंटरनेशनल फ्लाइट्स कुछ वक़्त के लिए रद्द कर दीं जायें।
फिर अधीरता से पूछने लगा-  माँ, क्या मुझे अभी दिल्ली आ जाना चाहिए?
मैंने कहा था- हाँ बेटे, आ जाओ! 
तब रोहन- माँ, इससे मुझे, कुछ दिनों वापसी का, यूएस वीजा नहीं मिला  मेरी जॉब भी जा सकती है, क्या, मैं घर आ जाऊँ, माँ?
मेरा ह्रदय, पुत्र अनुराग में द्रवित हो गया था, मैंने कहा था- बेटे, उसकी चिंता मत कर, तुम्हारी योग्यता बहुत है, यहीं कुछ कर लेंगे, हम!
तब, अनुमति मिल जाने पर रोहन टिकट बुक कराने में लग गया था। और मैं अतीत-स्मृतियों में खो गई थी।
12 वर्ष का था रोहन, जब निर्दोष नहीं रहे थे। संघर्ष करते हुए, लालन-पालन, शिक्षा और विदेश की पढ़ाई के खर्चे और प्रबंध किये थे, मैंने।
मेरे लिए रोहन का होना ही जीवन और दुनिया का होना रह गया है। 
रोहन ने बाद में अवगत करा दिया था, 19 मार्च रात्रि तक वह घर पहुँच जाएगा।
मैं, व्यग्रता से प्रतीक्षा करने लगी थी।
19 मार्च को मेरे ह्रदय की धड़कनें तब बढ़ गईं थीं, जब उसने पालम से मोबाइल पर बताया था कि- माँ, मुझे टेस्ट के लिए अस्पताल ले जाया जा रहा है, मैं शायद सुबह तक घर आ सकूँ!
फिर कॉल कट गया था।
मुझे लगा, ईश्वर मुझ अभागी के साथ दोबारा क्रूरता से पेश नहीं आएगा। पति को यौवनावस्था में खोया है, मेरा वृध्दावस्था का सहारा बनाये रखेगा!
रात, खुली आँखों में कठिनता से कटी थी। जो नहीं चाहा था वह हुआ था, किसी अधिकारी का कॉल आया था। बताया था-
रोहन का टेस्ट पॉजिटिव आया है। इलाज के लिए रोका गया है।
अकेली थी, आँसू पोंछने वाला कोई नहीं था। झर झर बहती आँखों से, नेट पर पढ़ना आरंभ किया था।
आशा कि किरण दिखी थी। पढ़ा था- कोविड19, बड़ी उम्र वालों के लिए ज्यादा घातक है।
रोहन, ठीक हो आ जाएगा, इस विचार से स्वयं मन को तसल्ली देने के प्रयत्न करने लगी थी।
मेरी दुनिया था रोहन, मन आशंकाओं से बेहद घबराया हुआ था। सोचने लगी, सिर्फ 26 का तो है, यूथ-इम्युनिटी, उसे बचा लेगी। मगर अस्पताल का कटु अनुभव था। निर्दोष, अस्पताल के संक्रमण में ज्यादा गंभीर हो गए थे और फिर टाईफाइड के उपचार में, अन्य समस्याओं से घिर गए थे, बच नहीं पाए थे।   
उस वक़्त शेफाली पोंछा लगा रही थी। बात कुछ ही घंटों में पूरी सोसाइटी में फ़ैल गई थी।
आगे के दिन अत्यंत कटु अनुभव के और वेदनादायी रहे थे। पास पड़ोस ने बिलकुल ही सौहार्द्र तोड़ लिए थे।
यूँ हिकारत की दृष्टि से देख रहे थे, जैसे रोहन कोई रेप-मर्डर का अपराधी है, और मैं कालिख कोख वाली माँ हूँ!
स्वार्थ प्रधान जीवन शैली ने अत्यंत मूर्खता पूर्वक हमारी भव्य संस्कृति पर कालिमा की चादर ओढ़ा दी थी।
स्वतंत्रता के समय हमारे लोगों ने समाज सौहार्द्र खो दिया था।
1984 में इंदिरा हत्याकांड में समाज सौहार्द्र खो दिया था।
27 फरवरी 2002 को गोधरा में समाज सौहार्द्र खो दिया था।
सीएए पर ताजातरीन सौहार्द्र सूत्र खत्म किये थे।
ऐसे कुछेक और भी उदाहरण हैं। बहुत गंभीर कीमत हम चुकाते आ रहे हैं सबकी।
नफरत यूँ छलक रही है, परस्पर कि जिसके साये में, हम जीने से ज्यादा मरते रहते हैं, जीवन भर।
मगर नहीं,
हम पढ़े-लिखे शिक्षित समाज हैं। अपने पूर्वाग्रह कैसे छोड़ सकते हैं? 
आखिर, हमारे मजहबी/धार्मिक आस्था, विश्वास बनाये रखने की जिम्मेदारी भी तो हम पर है।
हमसे, कोई दूसरा बड़ा हो गया या जीत गया तो हमारा सम्मान/स्वाभिमान क्या रह जाएगा?
भले हम, एक दूसरे को मार काटते हुए, अपने को खत्म कर लें। अपने अहं नहीं बचा सके, तो क्या मुहँ दिखाएंगे अपनी आगामी पीढ़ी को? 
आज का समय, इतिहास में भूल से भी हमारी गौरवशाली गाथा/परंपरा दे देने वाला नहीं होना चाहिए।
आहत-निराश मैं, एक माँ, जिसके ह्रदय में, इस समय, पूरे देश पर व्यंग बाण चल रहे थे। ऐसी मानसिक अशांत दशा में, एक एक दिन पहाड़ सा बीत रहा था।
मगर भगवान इतना निष्ठुर नहीं था - आज, 27 मार्च 2020 है।
मेरा रोहन, कोरोना नेगेटिव हो गया है।
दोपहर तक घर आने वाला है ... 

-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
27.03.2020
    

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