Thursday, March 26, 2020

गरिमा की आपबीती ...

गरिमा की आपबीती ...

कल कोई ट्रेन न चलेगी, ज्ञात होने पर, आनन फानन ही, मैंने पैकिंग की, टिकट बुक कराई और स्टेशन की तरफ जाने के लिए कैब ली थी।
पिछले छह दिनों से मैं वर्क फ्रॉम होम कर रही थी। खाना और अन्य जरूरी सामग्री ऑनलाइन तथा बिग बास्केट आदि सर्विसेज के जरिये होम डिलीवरी ही ले रही थी। अतः फ्लैट से हफ्ते भर से नहीं निकली थी।
चलती कैब में, बाहर देखा तो विश्वास नहीं हो रहा था कि मुंबई की सड़कें इतनी चौड़ी हैं। और, इतनी कम भीड़ वाली कि उस पर 70 की गति से कार दौड़ाई जा सके। पिछले 4 बरसों से मुंबई में रहते हुए, पहली बार मैंने, ऐसा सुहावना दृश्य देखा था।
मैं अनुमान लगा रही थी कि ऐसी कम भीड़ भरी, इतनी अच्छी और चौड़ी सी लगती सड़कें कब अनुभव हो सकती हैं। मेरा मन कह रहा था कि जब हमारे देश की जनसँख्या 50 करोड़ होती तो ऐसी फीलिंग्स मिल सकती थी। यह ऐतिहासिक नगर, मुंबई वर्तमान में तो भीड़ से हलाकान कर देने वाला होता है।
कोरोना खतरे से, बदले हुए हालातों में, मैं अपने अनुमान से विपरीत, स्टेशन, 1 घंटे की जगह सिर्फ 15 मिनट में पहुँच गई थी।
कैब वाले भैया को, फेअर, ऑनलाइन पेमेंट करते हुए, मेरा दिमाग कुछ गणित लगा रहा था।
सार्वजनिक स्थानों में, सड़कों पर, बसों और लोकल में, आपाधापी से जूझते लोगों को, यदि ऐसा मुंबई मिलता रहे तो, हरेक का कितना वक़्त बचेगा?
मन में आये इस सवाल का, मेरे दिमाग ने उत्तर दिया कि शायद, दो घंटे प्रति दिन यानि 60 घंटे प्रति माह, जो 8 दिनों के कार्यालयीन अवधि, के बराबर होते हैं।
फिर में, मुंबई से बनारस ट्रेन के निर्धारित प्लेटफॉर्म पर पहुँचने के लिए ब्रिज पर आई थी।
मेरा सुखद आश्चर्य यहाँ भी विध्यमान था, चमत्कारिक तरह से, आज कोई भीड़ नहीं थी और, यह भी कि-
और दिनों से सर्वथा भिन्न, जाने-अनजाने किसी के हाथ या अन्य कोई शारीरिक हिस्से का स्पर्श, चलते हुए मुझे नहीं हुआ था।
प्लेटफॉर्म पर भी इतनी ही सँख्या में लोग थे कि, प्रतीक्षा के लिए बैठने के लिए स्थानों में से, मुझे भी ग्रहण करने के कई विकल्प थे।
सारी स्थितियाँ खुशगवार सी थीं, मगर एक बात अखर रही थी कि यात्रा को प्रतीक्षा करते मुसाफिरों में, अधिकाँश के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने अथवा चिंता के भाव थे।
आशा के विपरीत जल्दी पहुँच जाने से, ट्रेन मिलने में डेढ़ घंटे से ज्यादा समय था। इधर उधर दृष्टि दौड़ाने के बाद, किसी बात से खतरा नहीं आदि बातों से, संतुष्ट हुआ मेरा दिमाग, वापिस अधूरे छूट गए गणित पर लौटा। महीने में आठ दिनों का सक्रियता वाला समय ज्यादा उपलब्ध होने पर, हम मुंबइयाँ, उसका कैसा कैसा और क्या क्या उपयोग कर सकते हैं। मेरे दिमाग में गणितीय घोड़े, इस विचार से दौड़ने लगे थे। 
अगर बचे इन घंटों को, प्रॉडक्शन में लगाया जाये तो उत्पादन और आउटपुट 125% होगा। 
अगर पेरेंट्स इसे, परिवार के लिए दें तो बच्चे ज्यादा सँस्कारित और जिम्मेदार होंगे। 
आदि आदि ऐसी कई सकारात्मक बातें दिमाग में आईं थीं। 
तभी, एक नकारात्मक विचार भी कौंधा कि-
यदि इसका प्रयोग अनर्गल सिनेमा/ वीडियोज देखने या अश्लील साहित्य पढ़ने/लिखने में, लोग लगाने लगें तो, मुझ जैसी सुंदर और युवा, लड़कियों / महिलाओं पर खतरे बढ़ सकते हैं। 
ऐसा सोचते हुए मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई।
मेरा दिमाग मुझे कहने लगा, छोड़ो ये कपोल कल्पित स्थितियों को लेकर आशावान रहना या डरना। मैंने सिर को झटका कि ये विचार दूर हो जायें फिर मैं एक झपकी (Nap) निकालने की कोशिश करने लगी थी।
तब पास, इंजिन के हार्न से, मेरी तंद्रा भंग हुई थी। मैं ए सी 2 के, अपने कोच में आसानी से डिस्टैन्सिंग रखते हुए सवार हो गई थी। मुझे नज़र आया कि ट्रेन रवाना होने के पूर्व तक 54 की क्षमता वाले मेरे कोच में 17-18 ही यात्री थे।
यह संतोषजनक बात थी कि, सभी यात्री एक दूसरे से दूरी रखने के प्रति यत्नशील थे। मेरे कूपे में, एक प्रौढ़ जोड़ा था। जिसने, अच्छे सफर के प्रति मुझे आशांवित किया था।
भुसावल तक का सफर, मैंने फेसबुक पर स्टोरीज पढ़ते हुए बिताया था। पास उपलब्ध में से कुछ खाया था, फिर सो गई थी।
सुबह निद्रा टूटी थी, जबलपुर में सामने का जोड़ा उतर रहा था। ट्रेन चली तो मैं वॉशरूम गई थी। जब लौटी तो, मुझे आभास हुआ कि कोच में मात्र तीन पैसेंजर बचे थे, मेरे अलावा दो 35-40 वर्ष के युवक थे। उन्होंने मुझे वॉशरूम से वापिस आते देखा था। चिंतित, मैं अपनी सीट पर आ बैठी थी।
कोई 20 मिनट बाद, वे दोनों युवक मेरी सामने सीट पर आ बैठे थे। वे आपस में हँसी मजाक करते हुए, मुझे घूरते जा रहे थे।
मुझे लगा कि मेरा युवा एवं लड़की होना, सुंदर एवं आकर्षक होना, आज मेरे लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
जब कोच खाली पड़ा हो और जब खुद की आंवटित सीट कहीं और हैं तो, कोई सज्जन, अच्छे इरादे से तो, किसी अजनबी लड़की के, सामने वाली सीट पर तो आकर बैठेगा नहीं।
मैं आधुनिक परिधान में थी। मुंबई में, इसमें होना/दिखना, सहज सँस्कृति थी। ऐसे परिधानों में किसी युवती को वहाँ कोई थ्रेट नहीं लगती है। मगर यहाँ, मेरे शरीर पर टिक गई, इन युवकों की,  वासना ललचाई दृष्टि से, मुझे स्वयं पर संकट मँडराता लग रहा था।
मुझे, अपने अंग-प्रत्यंग पर टिकी, उनकी कामुक दृष्टि से, एक तरह की वेदना एवं दाह, अनुभव हो रही थी।
मेरी आयु अनुसार, आकर्षक, माँसल देहयष्टि, जिसे देख और अनुभूत कर मैं स्वयं आत्ममुग्ध रहती थी, जिसकी सम्हाल मैं इसे किसी की अमानत मान किया करती थी, अभी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे? इनकी बदनीयत नजरों से छुपाऊँ!
वैसे यह दिन का समय था, लेकिन यदि इस कोच के टी सी या केयर टेकर, कुछ धन लालच में बिक जाने वाले हुए, जो हमारे देश में कोई विचित्र बात बिलकुल नहीं थी। मैं बेहद डरी हुई थी।
मेरा मस्तिष्क तब त्वरित और एफ्फिसिएंट तरह से चला था। मैंने मोबाइल पर कॉल लगाने का अभिनय किया था। बिना कॉल लगाए, वीडियो रिकॉर्डिंग ऑन करते हुए, कहना आरंभ किया था-
पापा, मुझे बुखार है, रात खाँसी भी बहुत चलती रही है, कहीं मुझे संक्रमण तो नहीं लग गया?
फिर रुमाल निकाल, बनावटी मगर सच सी लगती तरह से,मैंने दो बार छींका था, रुमाल से नोसी साफ करने की क्रिया दिखाई थी।
ऐसे कहा था, जैसे मोबाइल पर रिप्लाई कर रही हूँ-
पापा डर तो नहीं रही, मगर लगता है घर आने के पहले, मेरा बनारस में टेस्ट करवा लेना, हम सभी की लिए सेफ रहेगा।
हाँ- हाँ, पापा आप स्टेशन पर सारी सावधानी और प्रबंध सहित आइये। 
शायद इतना पर्याप्त था। उन युवकों के चेहरों पर भय झलका था। कुछ ही पलों में वे, मेरे सामने से उठकर, चले गए थे।
मैं मंद मंद अपनी तरकीब की कामयाबी पर मुस्कुराई थी। कुछ देर बाद में, मैं, कोच में घूमी थी। प्रत्याशित घट चुका था। वे युवक, सामान सहित, कोच ही छोड़, किसी दूसरे कोच में चले गए थे।   
निश्चित ही, वे इतने शरीफ तो थे कि वासना के प्रभाव में भी, जीते बचने की फ़िक्र रख रहे थे। 
फिर इलाहाबाद तक, मेरे कोच में, एक दो चक्कर केयर टेकर और टीसी ने लिए थे।
लेकिन इलाहाबाद पहुँचते ही आश्चर्य जनक घटना घटी थी। कोच के अंदर मेडिकल स्टाफ पूरी तरह से कवर मुझ तक पहुँचा था। मुझसे कहा गया था-
मेम, आपको टेस्ट के लिए, यहाँ उतरना होगा। आपके संक्रमित होने की सूचना है।
मैं बलात उतार ली गई थी। तीन दिनों तक, मुझे आइसोलेशन में रखा गया था। और पूरी तरह से नेगटिव रिजल्ट से संतुष्ट हो जाने पर, तीन दिन उपरांत, आज 26 मार्च 2020 को, मुझे बनारस, मेरे घर तक पहुँचाया गया था। 
मैंने घर में मम्मी, पापा, भाईसाहब एवं भाभी को सारा वृतांत, आँखों से निकल रही अश्रु धारा को नैपकिन में समेटते हुए सुनाया था। सभी मेरे परिजनों ने मुझे आलिंगन कर, पीठ और सिर पर स्नेहिल हाथ फेरते हुए, मेरा जी हल्का करने में मदद की थी।
फिर रेलवे के कम्प्लेंट पोर्टल पर, ट्रेन क्रमाँक, यात्रा दिनाँक, कोच एवं बर्थ सँख्या विवरण सहित मैंने शिकायत डाली थी। जिसमें मैंने, अपेक्षा की थी कि-
क्या, पूरा कोच खाली रहने पर और, उन पैसेंजर को उनकी अपनी बर्थ आंवटित होने पर, क्यों उन्हें एक अकेली बैठी लड़की के सामने वाली बर्थ पर आना चाहिए था? 
मैंने उनकी नीयत पर प्रश्न किया था, और माँग की थी कि उनको आइडेंटिफाइ कर उनके विरुध्द कार्यवाही की जाए। 
साथ ही, मैंने अपना उस समय का बनाया, वीडियो भी अटैच किया था, ताकि मेरी शिकायत की पुष्टि आसानी से हो सके।
अपनी आपबीती, आप सब से यूँ शेयर करते हुए मेरा यह आशय है कि -
आज कोरोना वायरस से पूरा देश डरा हुआ है। उस संक्रमण को रोकने की कोशिश में सब लगे हुए हैं क्योंकि वह सब के जीवन पर आसन्न खतरा बन गया है।
मुझे आशा है कि तीन माह पूर्व उत्पन्न हुए इस वायरस को, अगले कुछ महीनों में नियंत्रित कर लिया जाएगा।  मगर,मेरा-
इस देश के सभी अंकल, भाई और बेटों से प्रश्न है कि, एक वायरस जो सदियों से अस्तित्व में है, जिसकी चपेट में आ नित दिन, कोई बहन, बेटी अपनी अस्मिता और (अनेकों प्रकरण में) प्राण तक खो देती है। उस 'अति असंतुलित कामुकता रूपी वायरस' को कब और कैसे नियंत्रित किया जाएगा? 
अपनी अपनी जान पर आये संकट में जब सभी घर में छिंके बैठने को मजबूर हैं, तब फुरसत के मिले इन दिनों में मेरी अपेक्षा है कि हम सभी चिंतन, आत्ममंथन करें और कल्पना करें कि कई बेटियाँ  'असंतुलित कामुकता वायरस' से अपनी रक्षा की फ़िक्र में अपनी ज़िंदगी का बहुत सा वक़्त सिर्फ घरों और अनावश्यक पर्दों/बुरकों में कैद रहने में ही खो देतीं हैं। 
इनमें से कई, पर्याप्त शिक्षा अर्जित नहीं कर पाती हैं। अनेकों स्वावलंबन के लिए नौकरी/व्यवसाय करने से डरती हैं। अकेले, यात्रा आदि नहीं करती हैं। अनेकों कभी न कभी कामी नज़रों से अपने स्वाभिमान पर ठेस सहती हैं। 
मेरी सविनय प्रार्थना आप सभी से है कि जब कोविड-19 के खतरे में, आपने जीवन स्वरूप को समझने का समय पाया है तो, आप, कोविड-19 को नष्ट करने के साथ ही 'असंतुलित कामुकता वायरस- ईसा पूर्व 1919' को भी नष्ट करने का प्रभावकारी उपाय भी खोजें ..
- आपकी बहन/बेटी तुल्य 'गरिमा'
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
26.03.2020




No comments:

Post a Comment