Sunday, March 1, 2020

तेरे मेरे सँस्कारों में
जमीन आसमान जितना विरोध होता है
मुझे पसंद देखना, ज़िंदगी का मुस्कुराना
तुझे पसंद, मौत का रुलाता मंजर होता है

तेरे ख्यालों में तुझे कत्लेआम में
तेरी जीत दिखती होती है
न भूल मगर तू कि तुझे
इसके लिए ज़िंदगी ही चाहिए होती है

बेजान पड़े इंसान के सामने तू
अट्टहास लगाता है
ख़्याल कर तेरी मौत होगी सामने
तब तू गिड़गिड़ाता तो नहीं

अपनी मौत के सामने
तू हँसता हुआ जा सके
इसके लिए तुझे मरते इंसान को
मौत नहीं ज़िंदगी बख्शनी होगी

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