हमारी भागीदारी/योगदान
--------------------------------------------मानव सभ्यता के लिए वह प्रवृत्ति बेहद घातक है जो दूसरे के धर्म(मज़हब) या उनके मानने वालों में उसके रीति रिवाज की तथाकथित बुराइयों को लक्ष्य करके कही/लिखी/प्रचारित की, जा रही हैं। किसी के ऐसे दुष्प्रयत्नों से किसी ने हिंदू, मुसलमान या ईसाई होना नहीं छोड़ा है. धर्म के अनुसरण करने वाले बहुधा अपने अंध-रीति रिवाजों की कमी/खराबी जानते हुए भी, दूसरे धर्म के अनुयायियों द्वारा उसका रेखांकित या दुष्प्रचार करना पसंद नहीं कर पाते हैं। अपितु रहस्य उद्घाटन तरह से किये जाने वाले दूसरों के ऐसे कार्य से विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच खाई और गहरी हो रही है, जो मानव सभ्यता और उनके अपने जीवन आनंद उठाने की दृष्टि से कदापि उचित नहीं है। वास्तव में ऐसी रूढ़ियाँ अनकहे ही समाप्त करने की आवश्यकता है। भावनाओं या आस्थाओं पर दूसरों के द्वारा ऐसी चोट एक जिद पैदा करती है जो स्वयं सहमत नहीं होते हुए भी औरों को चिढ़ाने या उन पर अपना प्रभुत्व दर्शाने के लिए ऐसे कार्य को अंजाम देने का कारण होती है।
अतः धर्म जैसे अति संवेदनशील विषय पर बिना कहे उसमें बुराई को समाप्त करना और बिना बाध्य किये दूसरे धर्मों की अच्छाई को अंगीकार करना ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। जो सच में मानव सभ्यता विकसित करने में हमारी भी भागीदारी/योगदान कही जा सकती है।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन09-06-2019
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