Monday, June 24, 2019

किसी के उद्गार - "मैं बीफ खाता हूँ मुझे गर्व है"

किसी के उद्गार - "मैं बीफ खाता हूँ मुझे गर्व है"

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दरअसल, कोई क्या खायेगा क्या नहीं, यह उस वक़्त लगभग तय हो जाता है कि वह किस परिवार में जन्मा है. आशय यह कि जिस वक़्त उसे अच्छे बुरे का कोई ज्ञान तक नहीं होता। 
मैं शाकाहारी परिवार में जन्मा और शाकाहार मेरे सँस्कार में रहा। माँसाहार को मैंने तार्किक दृष्टि से उचित नहीं माना। बावज़ूद इसके मैंने माँसाहारियों को बुरा नहीं माना (पहले वाक्य में लिखित कारण से). आज दुनिया में शाकाहारी की सँख्या बहुत कम रह जाने के बाद भी मैंने माँसाहार को अच्छा नहीं माना ( दूसरे क्या-क्या करते हैं क्या-क्या सोचते हैं की नकल में, मैं अपनी कोई भी अच्छाई खोना पसंद नहीं करता। 
मैं समाज ,देश और दुनिया में ख़ुशहाली तथा अमन का पैरोकार हूँ , अतः किसी की बुराई के लिए उसे कोई ताना या चुनैती देना भी पसंद नहीं करता। मेरा हर वाक्य में इस दृष्टि से बहुत नाप तौल कर अभिव्यक्त करता हूँ ताकि हर व्यक्ति, हर जाति, हर कौम, और हर नस्ल के बीच वैमनस्य की गहरी होती जा रही खाई और गहरी नहीं होने पाए। मेरे थोड़े से सामर्थ्य में मैं मानवता का परचम फहराते हुए जीता हूँ। 
ऐसे में समाज सुधारक का टैग रखा कोई मेरा फ्रेंड यह कहे कि "मुझे बीफ खाने पर गर्व है" तो मुझे उसका यह स्टेटमेंट समाज सौहार्द्र की दृष्टि से घातक लगता है। यह भड़कने के बहाने तलाशते लोगों के लिए नफरत की प्रतिक्रिया और हिंसा को अंजाम देने के लिए सहायक होता है। जो कतई अच्छी चीज नहीं है। इस तरह की हरकतों का प्रतिफल, व्याप्त नफरत की आग में किसी निरपराधी परिवार के किसी मासूम या मुखिया को लील सकता है। 
मेरे मित्रों से मेरी प्रार्थना है कि अपने कथन/वचन या काम में कृपया ऐसे बीज, जाने/अनजाने तौर पर ना प्रसारित करें जो नफ़रत के दरख़्त बन सकते हैं, तथा अपने पूर्व कथनों की समीक्षा कर अपने आगामी कार्यों में सुधार करें जिससे इस दुनिया में जन्मा हर व्यक्ति ज़िंदगी का आनंद ले सके। नफरत /हिंसा का शिकार होने से ज़िंदगी के मजे से वंचित नहीं होने पाए या असमय किसी हादसे में मारा न जाए। 
बहुत कठिन होता नौ महीने गर्भ के कष्टों के बाद पैदा होना और ज़िंदगी से विदा लेते हुए रोग और बिस्तरों का दुःखद समय का सामना करना. इन दोनों के बीच का समय तो कम से कम आनंद का हो यह "हर मनुष्य का जन्म सिध्द अधिकार है". किसी को उससे वंचित करने की कोई भी साजिश इंसानियत नहीं, "मत भूलो कि तुम इंसान हो"। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25-06-2019

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