हम अपने तन्हा होने का इल्जाम किसे दें
काफ़िले में यहाँ हर कोई तन्हा है बेचारा
शुक्र मेरी ये खुशफहमियाँ कि अदना सा मैं
सीना तान ज़िंदगी का सफर तय करता रहा
ख़ुद के अकेलेपन का एहसास हमें उतना नहीं सताता
बेचारे ज़माने के अकेलेपन को देख दर्द जितना होता है
क्यूँ लुभायें हम किसी को अपनी तरफ 'राजेश'
हैसियत नहीं कि हम किसी का भला कर सकें
अलसाये दिमाग से कम समझते,
मुझे ज़माने को देख लेने दो
ग़र संजीदगी से देखूँ,
ज़माने के दर्द देख मुझे दर्द बहुत होता है
काफ़िले में यहाँ हर कोई तन्हा है बेचारा
शुक्र मेरी ये खुशफहमियाँ कि अदना सा मैं
सीना तान ज़िंदगी का सफर तय करता रहा
ख़ुद के अकेलेपन का एहसास हमें उतना नहीं सताता
बेचारे ज़माने के अकेलेपन को देख दर्द जितना होता है
क्यूँ लुभायें हम किसी को अपनी तरफ 'राजेश'
हैसियत नहीं कि हम किसी का भला कर सकें
अलसाये दिमाग से कम समझते,
मुझे ज़माने को देख लेने दो
ग़र संजीदगी से देखूँ,
ज़माने के दर्द देख मुझे दर्द बहुत होता है
No comments:
Post a Comment