Saturday, June 15, 2019

क्यूँ छिपा रखा है ख़ुद को यूँ पर्दे के पीछे
नायाब तेरा चेहरा तुझे रहमत है खुदा की

फ़ख्र, तेरी हस्ती ऐसी कि ज़िक्र सबकी जुबां पर है
दिल मासूम, मगर बुरा मानता औ जला करता है

सच के सिवा-
हैसियत नहीं, कोई क़ायम हमेशा रहे
आज है जो, कभी उसे खत्म होना ही है

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