मेरी महत्वाकांक्षा -मेरी अन्तकालीन योजना
लगभग एक दशक पूर्व में यहाँ पदस्थ हुआ था .पिछले स्थान पर मेरी सुबह सैर
की दिनचर्या थी ,इसे यहाँ जारी रखते मुझे ३-४ वर्ष हुए तब एक दिन मुझसे
२५-३० वर्ष बड़े एक संभ्रांत सम्मानीय ने मुझमे दिलचस्पी दिखाते मुझे एक
"गुलाब पुष्प" भेंट किया .जब मैंने उनसे परिचय जानना चाहा तो उनके चेहरे
पर हैरत झलकी ,अपना परिचय भी मैंने दिया .उनसे जब तब सैर पर आमना सामना
होने लगा और उन्हें मै हाथ जोड़ अभिवादन करता. सैर पर सामना सपत्निक जब
हुआ तो एक दिन पारिवारिक परिचय भी बड़ा. पर ये सब सैर तक सीमित रहा .इस बीच
मुझे ज्ञात हो गया के वे अति प्रतिष्ठित एवं अति सपन्न व्यक्ति हैं.तब मुझे समझ आया पहले परिचय पर वे क्यों मेरे पूछने पर हैरान थे. उन्हें यहाँ कर कोई जानता था.उनके
कभी कभार घर आने के शब्दों का मै आर्थिक स्तर के अन्तर से संकोच वश पालन
ना कर सका .३-४ वर्ष योंही छोटी मोटी भेंट कभी अकेले कभी सपत्निक उनसे
होती रही . फिर उनका सैर पर दिखना बंद हो गया.एक दिन उनके बंगले के सामने कार से उतरते उनकी पत्नी को देख मेरी पत्नी ने
जिज्ञासा वश उनसे पूछा तब मालूम हुआ कि वे अस्वस्थता के कारण कुछ महीनों से
अस्पताल में भर्ती हैं. एक दिन हम उन्हें अस्पताल में देखने पंहुचे वे
बिस्तर पर थे अत्यंत कमज़ोर हो गए थे ,चाहकर भी बोल नहीं पाते थे ,पर दिमाग
सक्रिय था थोडा सा हाथ उन्होंने उठाया था उससे लगा कि वे हमें पहचान सकें
है ,पत्नी अस्पताल कर्मी और बेटे-बहु की मदद से देखरेख कर रही थीं. थोडा सा
ही वे खा पा रहे थे जल्द ठीक होने की उम्मीद नहीं दिखती थी. पत्नी उन्हें
धर्म -पाठ सुनाती. हम बोझिल मन वापस आये . एक साल और बीता मेरी पत्नी पुनः
पता करने अस्पताल गयीं. उनकी हालत में कोई सुधार नहीं था .पत्नी ने मुझे
बताया तो बड़ी करुणा हुयी .
सोचने लगा की दो वर्ष होने को आये उन का मन
सक्रिय था उन्हें क्या लगता होगा अपनी इस दयनीय सी दशा में.वो अजनबी को जिस तरह गुलाब देते थे उनके और भी कर्म अच्छे रहे होंगे उसकी स्मृति शायद उन्हें राहत ही दे पाते होंगे .उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की मेरी कामना रही है,मुझे ख़ुशी भी होती है की
लम्बे समय से उनका बेटा इतने मंहगे अस्पताल में उन्हें उपचार हेतु रख पाता
है .अपने पित्र-ऋण को उतार पा रहा है.
किसी हादसे या ह्रदयघात से अचानक मौत ना होती है तो किसी को भी जिंदगी की
सांध्य बेला में पराश्रित हो कुछ समय या वर्ष गुज़ारने पड़ सकते हैं. ऐसे
मैं यदि मानसिक सक्रियता भी गवां दे तो पछतावा जैसी कोई बात नहीं
होती.किन्तु शारीरिक पराश्रित हों पर मन सक्रिय है .तो बड़ी व्यथा तब होती
है कि उनके अपने बच्चे अपनी व्यस्तताओं से उनका बहुत ख्याल नहीं रख पाते
.अपनी इतनी उपेक्षा पर वे उन्ही बच्चों के प्रति शिकायत /उलाहनों के साथ
किसी दिन संसार से विदा होते हैं जिन्हें उन्होंने बढे प्यार -दुलार और
अरमानों से पाला बड़ा और योग्य बनाने में अपनी हस्ती भुला दी थी.संवेदनशील बच्चे जीवन भर अपने माँ-पिता के इस तरह अवसान और अपनी लाचारी का
पछतावा रखते हैं. कालांतर में यही क्रम दोहराया होता है अब बारी बूढ़े हो गए
तब के बेटे की होती है.
हम जीवन के लिए समय समय पर योजना बनाते हैं उन्हें क्रियान्वित करते जीवन
में आगे बढ़ते हैं .पर अंत समय की विवश ऐसी मानसिक दशा जिस में हम अपने
प्राणप्रिय बच्चों से भी शिकायतें रखने मजबूर होते हैं में सहज रह पाने की
योजना क्यों नहीं आज बना ले. हममें से अधिकाँश ऐसे समय में अपने इष्ट
-ईश्वर और धर्मग्रंथों के आश्रय से मानसिक शान्ति ,और कुछ अन्य प्रकार से
अपेक्षित शांत अवस्था सुनिश्चिता करें.
आपकी ऐसी योजना जानना मेरा अधिकार नहीं.किन्तु मेरी योजना का खुलासा में
यहाँ उचित समझता हूँ.जीवन के शेष समय में अपने पारिवारिक और संबंधितों के
साथ विभागीय दायित्वों को न्यायसंगत ढंग से पूर्ण करने के बीच में मैं अपने
सामाजिक दायित्वों के प्रति जाग्रत रहूँगा. मैं न केवल अपने बच्चों का
बल्कि उनके बच्चे और उनके बच्चे के बच्चों के साथ समस्त मानव संततियों के
लिए एक शांत ,सुरक्षित और खुशहाल समाज की जरुरत पर जोर दे उसे सब में
फैलाता, सभी से साथ लेता सभी को साथ देता उसकी रचना की नींव और उसके
निर्माण का शुभारम्भ अपनी पूर्ण क्षमता और योग्यता से करने प्रयत्नशील
रहूँगा .अपने तर्कों/लेखों से सभी प्रबुध्दजनों के सामूहिक प्रयास/सहयोग
इस दिशा में देने का बार बार आग्रह बिना संकोच करता रहूँगा.इस के बीज जहाँ
तहां फैलाता रहूँगा .आशा करता रहूँगा की कुछ बीज तो अंकुरित हों,कुछ तो
पौधे बनें और विकसित होना प्रारंभ हों .जीवन के अंतिम दयनीय शारीरिक अवस्था
में अपने अपूर्ण सपने में भी इस विश्वास से की स्वस्थ समाज के लिए बाकी
कार्य आगे की पीढ़ी इससे जागरूकता पा पूरी कर सकेगी अपना मानसिक संबल बनाये
रख जीवन की पारी सहज समाप्त करने तैयार रहूँगा.मैं अपने बच्चों की किसी भी
मजबूरी के प्रति बिना शिकवे/शिकायत अपनी आंखे मुन्दने के पूर्व सभी की
मानसिक सम्रध्दी की प्रार्थना करूंगा.
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