'नारी- पुत्र' पुरुष - माथे पर नारी शोषण का कलंक
पुरुष
किसी न किस नारी के पुत्र रूप जन्मता है और प्रत्येक नारी पुरुष पिता की
बेटी होती है मतलब साफ़ है पुरुष नारी से अत्यंत पवित्र एवं करीबी रिश्तों
से बंधा होता है.फिर यह अत्यंत दुखद और निन्दाजनक है की ऐसी नारी के
पुरुषों द्वारा शोषण का एक विस्तृत और प्राचीन इतिहास रहा है.ऐसा तो नहीं
है की हर पुरुष नारी शोषण में प्रत्यक्ष रूप में जिम्मेदार है पर यदि
पुरुष की इस नारी माँ एवं बेटी की दयनीय हालत है तो हर पुरुष परोक्ष रूप
में जिम्मेदार होता है.क्योंकि इस स्थिति से नारी को नहीं उबारा जा सका है
तो या तो पुरुष ने प्रयत्न नहीं किये हैं या उसके प्रयास अपर्याप्त रहे
हैं . जिससे नारी आज भी यह दुर्गति भुगत रही है. यद्यपि सभी नारी शोषण की
शिकार होती नहीं हैं पर ऐसी भाग्यशाली नारियों को भी दुर्भाग्यवश ऐसे
ढेरों किस्से देखने और सुनने मिलें हैं जब कोई अन्य अबला की मर्यादा
दुष्ट पुरुष द्वारा तार-तार की गयी हो.
नारी से सहयोग के भाव दर्शाने के
पीछे भी पुरुष के कुटिल इरादे छिपे होने की घटनाएँ हुईं हैं ,जिसने नारी
जो ममता,करुणा और स्नेह का सागर अपने ह्रदय में समाये रखती है अब पुरुषों
के सच्चे सहयोग को भी शंकित हो देखती है और यह बेहतर मानने लगी है की भले
ही कमजोर शारीरिक शक्ति हो पर अब अपना जीवन संग्राम अपने बल पर
लड़ेगी.कुछ पुराणिक और ऐतिहासिक अपवादों को छोड़ें तो नारी के जुटाए गए साहस
के बावजूद अपर्याप्त शक्ति के चलते वह पुरुष बर्बरता से अपना बचाव करने
में असमर्थ होती है.
पुरुष द्वारा नारी शोषण या इसका विचार किया
जाता है तो वह यह सोचने में क्यों असमर्थ होता है कि एक नारी उसकी माँ तो
निश्चित है ,जबकि जीवन-संगिनी के रूप में ,बहन के रूप में और बेटी के रूप
में भी वह किसी नारी से करीबी रिश्ते में हो सकता है. क्या ऐसा सोच वह
अपनी कुटिलता (नारी के प्रति ) नियंत्रित नहीं कर सकता? अगर कोई ऐसा कृत्य
करने को उध्दत है तो अन्य नर उसे क्यों नहीं रोक पाते.इतिहास तो बीती बात
है जिसे बदला तो नहीं जा सकता पर क्या हम वर्तमान बदल कर अच्छे भविष्य के
लिए आज नींव न रख पाएंगे जो आज और आने वाले कल में वास्तविकता में नारी
को गरिमामयी स्थान दे सके.
अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो हमें अपनी सज्जनता,वीरता और ज्ञान पर इतराना छोड़ देना चाहिए.प्रत्यक्ष
में हम नारी हितैषी बनते हैं बहन और बेटी के चरण छूते हैं,माँ का दर्जा
भगवान से बड़ा बताते हैं लेकिन अंधकार और दीवारों के पीछे एक नारी की लाज
हरने और अन्य तरह से शोषण को नहीं हिचकते या दूसरे करते हैं तो उन्हें रोकने का साहस नहीं दिख पाते .यह तो मर्दानगी नहीं होती .खुद अत्याचार करता और उसे चरित्र
हीन बता फिर लाचारी का दोहन करने की भूमिका बनाता है.
रात्रि का
अंधकार तो सूर्य रौशनी के जैसा उजाले में परिवर्तित नहीं किया जा सकता पर
पुरुष ह्रदय के ऐसे अंधकार को जिसमें वह अँधा हो अपनी माँ,बेटी भी ऐसी
मजबूरी में हो सकती हैं यह नहीं देख पाता और एक कमजोर नारी की विवशता पर भी
दयनीयता पर तरस नहीं खाता .
सज्जन पुरुषों की प्रेरणा से उसके विवेक को
जाग्रत कर मिटाया जा सकता .सामाजिक अधिकांश समस्याओं का समाधान
का प्रभावकारी सूत्र नारी का यथोचित सम्मान है.पुरुष शारीरिक बल माँ की कोख
से जन्म ले ,उसकी छत्रछाया में पल हासिल करता है माँ के इस एहसान का क्या
यह सिला होना चाहिए की बेटे जैसा या भाई जैसा पुरुष उसकी इज्जत पर हाथ
डाले .एहसान का सही बदला हम चुकाएं उसकी सम्मान की सच्ची व्यवस्था बनायें.
हर
परिवार में पुरुष(और नारी भी) घर के नारी सदस्यों की (प्रमुखता से) चाहे
वह माँ,बहन या बेटी हो उनके उच्च चरित्र की अपेक्षा करता है ,फिर खुद
चरित्रवान रहने के महत्त्व को क्यों नहीं अपने में समझता ,अगर पुरुष
सर्वत्र चरित्रवान होगा तो सभी परिवार की नारियों का उच्च चरित्र सुनिश्चित किया जा सकेगा .हमें न्यायप्रियता का परिचय दे दोहरे मापदंडों से
मुक्त होना पड़ेगा .
जब जब मनुष्य ने शत्रुओं या समस्याओं से एकजुट
हो लड़ा है विजित ही हुआ है.फिर नारी शोषण की प्रवत्ति जिससे भाईचारा और
सुरक्षा खतरे में पड़ी है क्यों नहीं हम एकता से निबटने का प्रयास करते
,अगर समस्या का समाधान किया जा सकेगा तो नारी शोषण के वीभत्स किस्से ख़त्म
होंगे ,हमारे खुद के घरों की नारियां भी समाज में भयमुक्त विचरण कर
संकेंगी औरों को भी लाभ ही होगा.पुरुष माथे से नारी शोषण के कलंक को
मिटाया जा सकेगा.
हमारी मान्यता है कन्या-दान से हमारा
परभव सुधरता है आदर करें उस मान्यता का. हमारी बेटी नारी ही है ,भारतीय
पुरुष नारी के सम्मान के वे उदहारण पेश करें ,नेतृत्व कर विश्व के
पुरुषों को नारियों को गरिमामय स्थान पर बैठाने की प्रेरणा दें.ताकि
नारी भोग की वस्तु जैसे प्रयोग और शोषण से बच पायें .
नारी शोषण के अस्तित्व को पुराने इतिहास तक सीमित कर दें और वर्तमान और आगे
के लिए स्वस्थ परम्परा की नींव रख सर्वकालिक श्रेष्ट मानव होने का
कीर्तिमान अपने नाम करें.
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