Saturday, May 12, 2012

क्या बदल सकते हैं हम?

 क्या बदल सकते हैं हम?

                                      प्रतिदिन भीख मांगते कुछ दरिद्र हमारे घर/प्रतिष्ठान के सामने होते हैं.उनमे से कुछ कई दिनों से स्नान भी ना किये हुए होते हैं.ऐसा मानव हमें अप्रिय लग सकता है,वह दुर्गन्ध फैलाता भी भी हो सकता है.ऐसे में हम उसे दान न दें .उससे कहें तुम नहा के आओ तो 5 रुपये देंगे.हो सके तो उसे 1 रुपये  का साबुन या शेम्पू का पाउच दे दें . यदि वह स्नान कर हमारे सामने पुनः आये तो उसे 5 रुपये दिए जा सकते हैं.उसके बाल या दाढ़ी बड़ी हो तो उसे कटिंग /दाढ़ी बनाने को कुछ और मदद दे सकते हैं.उसके कपडे मलिन हो तो अपने पुराने कपडे भी दे सकते है. वह बीमार लगे तो निशुल्क चिकित्सालय का पता दे उसे भेजने में सहायता या कर सके तो स्वयं उसे पंहुचा कर दवा/उपचार करवा सकते हैं
                                हमें सोचना है कि  दरिद्रता का हमारे आसपास इस तरह का घिनौना रूप हमारी मानवीय असंवेदनशीलता ही दर्शाता है.ऊपर दिए पूरे नहीं पर जो बन सके उतने अपनी क्षमता अनुरूप उपाय ही कर सकते हैं.अगर करने में कोई भी मानसिक  तनाव /अशांति अनुभव करें तो ये  परोपकार न करें .मानसिक शांति की कीमत  पर कुछ भी किया जाना उचित नहीं है. क्योंकि सामाजिक शांति तब ही संभव है जब उसमे सर्व मानव मात्र  शांत रहता हो.जहाँ तक दरिद्रता की घिनौनी तस्वीर है वह अपनी गति अनुसार (हम नहीं किसी दूसरेकी सहायता से  ठीक होगी ही  अन्यथा अस्वच्छ /दुर्गन्ध फैलाते गरीब के साथ तो वह ख़त्म होगी ही.

1 comment:

  1. बहोत हीं सुन्दर और प्रेरणादायक

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