Friday, May 25, 2012

जीती बाज़ी कैसे गवां गया वह


जीती बाज़ी कैसे गवां गया वह

                                   उसका जन्म अभावों की बस्ती के घर में गरीब परिवार में हुआ .बचपन से जैसे -तैसे जीवन यापन के उपाय में थक हारते माता-पिता को पाया .आसपास अभावों जनित कलहपूर्ण वातावरण उसे कभी अजीब न लगा क्योंकि जन्म से आदत हो गयी थी.वहां १०-२० रुपये की मामूली रकम पर बैर  जीवन भर का ,उपचार को तरसते बच्चों और युवाओं की असामयिक मौतें और अगले समय खाने को कुछ होगा या नहीं ऐसे दुःख , ऐसी चिंता आम थीं.वह जन्मजात प्रतिभा मिलने से इस विपरीत परिस्थिति में भी अच्छी पढाई और मिले कर्जों के सहारे मेडिकल कॉलेज में दाखिला पा डॉक्टर बन निकला .ऐसी उपलब्धि उस बस्ती में बहुत बिरली बात थी.दूसरों से अप्रभावित और अपने साथ के छात्रों से अलग व्यवहार रख अपने संकल्प और कर्मों से उसे ऐसी सफलता मिली थी.चिकित्सक  बनते ही अच्छे चिकित्सालय  में नौकरी मिली ,उसने एक क्लिनिक भी निजी बना लिया .कर्जा चुकने लगा दिन पर दिन आय बढ़ने लगी .चिकित्सा व्यवसाय में अन्य सफल व्यक्तिओं के बीच रहने से अब वह आलीशान  बंगले , अच्छे वाहन और सुख सुविधाओं के आधुनिक साधन और सुविधा के बारे में सोचने लगा था .धीरे धीरे उनकी व्यवस्था भी होते गयी .
                                    बचपन में किसी से प्रभावित रहने वाला अब बदल रहा था कठिनाई से भला जूझता था पर सफलता के संक्षिप्त रस्ते न अपनाये थे .अब ऐसे उसके सिध्दांत वह भूल रहा था .नए परिवेश में बचपन से अपनाई विशिष्टता खोती जा रही थी . वह औरों की नक़ल करने लगा था.वह संभ्रांत जैसा बन गया था .वह बचपन ,जीवन की कठिनाइयों को भूल रहा था जिसमें गुजर कर वह यहाँ आज आया था .लगता है उसने आवश्यकता से ज्यादा सबक ग्रहण कर लिया था बचपन के अपने आर्थिक अभावों से  .जिसके वशीभूत वह दो तीन पीढ़ियों तक के लिए वैभव ,सम्रध्दी बटोर लेना चाहता था.वह अपने दायित्व भूल रहा था अन्यथा स्वयं के विकास के समानांतर गरीब बस्ती और अपने बचपन के साथी परिचितों और वहां के बड़ों के विकास में अपना कुछ योगदान देता.अपने बंगले से पहले एक अस्पताल वहां ,वहां के गरीब और पीड़ितों के लिए बना देता ,अभी तो उसकी सुविधा जनक जीवन की आदत भी नहीं थी जो छोड़ पाना कष्टकर  होता .वह इसी परिवेश में पला और बड़ा हुआ था ,यहाँ की कठिनाइयों से बखूबी परिचित था .अगर ऐसा मनुष्य ही वहां सुधार की भावना न रख पाया था तो ऐसों से आशा व्यर्थ थी जो चिकित्सक या अन्य बड़ी हैसियत में इन कठिनाइयों के वगैर पंहुचे  थे. उन्हें तो ठीक-ठीक इन विपरीतताओं का अनुमान भी नहीं होता और उनकी व्यस्तताओं में इन्हें  समझने को समय नहीं था .अगर प्रेरणा और त्याग के लिए वह तैयार नहीं था तो समझा जा सकता है कि क्यों समाज सुधारने के चुनौतियों के आगे क्यों लोग हार जाते हैं.

                         वह जीती बाज़ी हार रहा था .उसने युवा होते तक विराट हो रहे अपने व्यक्तित्व का आगे विकास रोक लिया था .अपने विराट होते अस्तित्व का आकार स्वयं छांट दिया था .उसने अन्याय सिर्फ अपने साथ ही नहीं किया था बल्कि उस जन्म देने वाले के साथ कर दिया था जिसने विशिष्टता से तराश एक जन्मजात प्रतिभा के साथ उसे पृथ्वी लोक  में भेजा था .वह सिर्फ सामान्य मनुष्य ही  रह गया था जबकि योग्यता उसे आसाधारण बनने कि प्रदत्त थी 
जीती बाज़ी इस तरह हारा था

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