Saturday, May 19, 2012

कोयल की मधुर कुहुक के पीछे

 कोयल की मधुर कुहुक के पीछे


                                   कोयल या तो शर्मीली है या संकोची है या हीनता (अपने कालेपन से) की शिकार है तब ही अपनी मधुर कुहुक -कुहुक भी वह व्रक्ष या झुरमुटों में छिप कर सबको सुनाती है .हम उसकी मधुर वाणी से आनंदित होते हैं कोयल के छिपकर पुनीत कार्य को हम अन्य द्रष्टिकोण से रख सकते हैं . कोयल महान है हमें और प्राणी जगत को मधुरता श्रेय की चाहत बिना बांटती है. परोपकार करते हुए अपने अस्तित्व को छुपाने का प्रयास करती है .परिचय देने में कोई रूचि नहीं रखती और अस्तित्व की प्रकटता सिर्फ कर्म से देती है .श्रेय से सरोकार शायद इस भावना से प्रेरित हो न रखती है कि इससे उसे कोई अभिमान न हो जावे .शायद यह भली-भांति जानती है कि अभिमान चिरकाल कायम नहीं रहता है.
                                  सोचें तो लगेगा कि जगत उलटी रीत अपनाता है. हम बुरे समझे जाने वाले कृत्य छिपाकर करते हैं ,यदि हम इन्हें ना छिपायें और यदि हम बेशरम नहीं हैं तो बुरे कृत्य के प्रति दूसरों की भाव-भंगिमा और नापसंदगी की प्रतिक्रिया देख हम स्वयं स्वतः ही उन्हें तिलान्जित कर दें.हम अपने अच्छे कार्य समाज को दिखा कर प्रचारित करते हुए अंजाम देते हैं .हमें बड़ी प्रसन्नता होती है . प्रसन्न होना अच्छी बात है लेकिन आवश्यकता से अधिक दिखावा हमें विख्यात करता है और अहम् बोध कर हम अभिमानी हो सकते हैं.अपवाद मिलते है जब बहुत ही पवित्र कार्य अंजाम दिए गए प्रसिध्दी और मान भी मिला पर आचरण की सरलता और सादगी कायम रही.हम बहुत ही अच्छे पवित्र कर्म करते हों हमें ज्ञान और रूप या वैभव प्रचुरता में मिला हो फिर भी सबका सीमा से ज्यादा प्रदर्शन एक और द्रष्टि से उचित नहीं लगता वह यह कि हम अपने साथ के मानवों को अनजाने में अपने से हीन होने का बोध करा देते हैं जो अधिकांश में हीन भावना जन्माता है. हीनता अनुभव करता कोई भी अवसादग्रस्त हो सकता है.किसी में कुछ कमी है तो ज़िन्दगी की ज्यादा विकट चुनौतियां तो वैसे भी उसके हिस्से में ज्यादा है. हमारा ऐसा प्रदर्शन और व्यवहार उसे अपमानित सा अनुभव करा सकता है .हमारा उद्देश्य ये कदापि नहीं होता पर कुछ प्रकरणों में हीनता और अन्य चुनौतियां झेलता कमजोर मनुष्य आत्महत्या तक को प्रवत्त हो अपना अमूल्य मानव रूप तक असमय त्याग देता है .यदि हमें ज्यादा मिला है और हम ज्यादा उपलब्धि हासिल कर पाने में सफल हुए हैं तो हमारा दायित्व बड़ा हो जाता है हमें अपने से कमज़ोर का हाथ थामकर उसे साहस दिलाना होता है ताकि वह कठोर हकीकतों का तुलनात्मक सुविधा से सामना कर पाए.
                               उदहारण मिलते हैं जब कमज़ोर और उपेक्षित मानव ने ऐसा कुछ कर दिखाया है जो समर्थ भी ना कर सकें हों.उन्होंने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया होता है.हम सामर्थ्यों का बंधुत्व भाव मिले तो पिछड़ रहे मानव भी वह योगदान दे सकते हैं जो एक स्वस्थ समाज बनाने में बहुमूल्य सिध्द हो जाये.
रेत से तेल निकलना अतिशयोक्ति अलंकार के प्रयोग से कहा जाता है .लेकिन वास्तव में अगर प्राणी मानवजन है तो वह इतना हीन या कमज़ोर नहीं होता कि उससे उपयोगी कुछ न कराया जा सके. हमारी प्रशंसा ,प्रेरणा और उसके मनोविज्ञान की हमारी समझ उससे भी बहुत अनुकरणीय कार्य को अंजाम दिला सकते हैं.जो यथार्थ में हमारी कार्यक्षमता का ही परिचायक होता है. कार्यक्षमता से प्रदत्त नेतृत्व ज़माने को सही दिशा दे मानव विकास यात्रा में उल्लेखनीय उपलब्धियों का कारण बनता है.
                             हम बहुत प्रबुध्द हैं हमारी कार्यक्षमता शंकित नहीं है फिर हमारे समाज में इतनी समस्याएं हैं. मुझे लगता है सिर्फ कमी सामूहिक रूप से चुनौतियों से ना निपटने के कारण है. क्या हमें इसका बीड़ा उठाना चाहिए अपना हाथ बढ़ाये मेरा हाथ और कंधे से कन्धा मिला जूझने की मेरा वैचारिक साथ सदा होगा .

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