सीमित मानव सामर्थ्य
हमारे करीबी रिश्तेदार लगभग तीन वर्ष पूर्व कुछ स्वास्थ्यगत समस्याओं के
कारण जब जांच कराने गए तो परीक्षणों उपरांत उन्हें केंसर बताया गया .यह रोग
उन्हें जानने के पूर्व ही नुकसान पहुंचा रहा था. उनकी शारीरिक शक्ति इस
परिक्षण की रिपोर्ट आने के पहले ही काफी क्षीण हो चुकी थी.रोग एडवांस
स्टेज में था और उससे नुकसान की गति ज्यादा तीव्र हो चुकी थी .मनुष्य
साधारण तौर पर अच्छा खा आसानी से जीवनोपयोगी तत्व अवशोषित कर लेता है .पर
इस गंभीर रोग ने उनकी भूख और पाचन गतिविधि प्रभावित कर दी थी. वे ज्यादा
भूख अनुभव नहीं कर पा रहे थे जो खाते पाचनतंत्र के साथ न देने से लाभ न ले
पाते थे.शरीर दिन प्रतिदिन कमज़ोर होता जा रहा था .चिकित्सा एवं दवाओं से भी
शक्ति ह्रास एवं रोग नहीं थम पा रहा था .उनका सहयोगी स्वभाव था करीबी
मानवों की आवश्यकताओं (अच्छे-बुरे समय ) पर तुरंत सहयोग को तत्पर हो जाते थे . अब वे
अपनों के सहयोग के बिना चंद कदम चलने में असमर्थ होते जा रहे थे .खून जो
स्वस्थ मनुष्य शरीर में बिना प्रयास सहज ही बन जाया करता है. वह दवाओं और
उपचार से भी उनके शरीर में नहीं बढाया जा पा रहा था .परिजन सेवा में
लगातार लगे थे उपचार हेतु अच्छे अस्पतालों एवं चिकित्सकों के चक्कर बढ़ जाने
पर भी दवाओं का असर न होता था .धन बहाया जाना भी सहायक न सिध्द होता था
,बावजूद इसके उनकी मानसिक प्रणाली इस गंभीर रोग से अप्रभावित थी .
उनसे मिलने सेवा भाव से सपत्निक हम पंहुचे थे उन्हें मालूम हुआ हम बच्चों
को उनकी पढाई के कारण छोड़ कर आये हैं तो हर दिन वे हमसे वापस लौटने कह रहे
थे. कहते आप वापस जाएँ बच्चे परेशान होते होंगे.हमने बताया की हमारे पास
पड़ोस के परिचित उनका ध्यान रख रहें हैं. तो उन्होंने कहा "जो माँ-पिता ,बच्चों के लिए करते हैं दूसरा कोई कभी नहीं कर सकता" . यह मुझे दी उनकी अंतिम शिक्षा थी.इसके लगभग १८ दिन बाद समस्त मानवीय उपायों और सामर्थ्य लगा देने पर भी १ रात्रि उन्होंने अंतिम श्वांस ले हम परिजनों से अंतिम विदाई ली.
मानवीय सामर्थ्य हर तरह से सक्षम होता और उनका जीवन बढाया जा सकता तो अपनी
बेटी का विवाह करते, विवाह होते देखते .अपने जिस बेटे को अपनी प्रेरणाओं
,संस्कारों से I. I . T . में शिक्षा हेतु प्रवेश दिलवाने में सफल हुए थे .
आज उसे संस्थान के व्यय पर प्रशिक्षण हेतु अमेरिका जाता देख गौरवान्वित
अनुभव करते. वे प्रखर बुध्दिमान थे धार्मिक रूचि उनमे युवाकाल में जाग्रत
हो चुकी थी उन्हें उसका और अधिक ज्ञान निश्चित ही होता . वे प्रकाश स्तम्भ
बन परिजनों ,परिचितों और समाज के पथ को आलोकित करते .ऐसी ना जाने कितनी
संभावनाएं उनके सिर्फ 50 वर्ष की उम्र में इस तरह गमन से विराम पा गयीं थी
उनका भौतिक अस्तित्व अब नहीं रहा यह विश्वास करने में हमें वर्षों लग गए जब
पिछले लगातार ढाई सालों से हमारे अच्छे बुरे समय में हमारे साथ खड़े दिखाई न
दे रहे थे.
मानवीय सामर्थ्य की सीमित सीमाओं का अहसास और भी अल्पायु संभावनाशील मनुष्यों का दुखद अवसान
देखने से जब तब हमें करना पड़ता है.मानवीय सामर्थ्य /नियंत्रण (मानवीय
जीवन बचाने की द्रष्टि से) यथा समय हम अनुभव कर पांए तो अपने सुख सुविधा
और सम्रध्दी पूर्ण जीवन के बीच ऐसे दायित्व स्वीकार कर सकें जिससे इस
कठोर सच्चाई को कि "जो माँ-पिता ,बच्चों के लिए करते हैं दूसरा कोई कभी नहीं कर सकता" . को
हम बदल दें .शायद यह तो हमारे सामर्थ्य में है कि जो हम अपने बच्चों के
लिए करते हैं उस तरह ही दूसरे बच्चों के लिए कर दें. हमारी तनिक दृढ
इक्छाशक्ति और मानसिक सम्रध्दी से तुरंत तो नहीं पर धीरे धीरे हममें यह गुण
ला दे सकती है.
पिछले दिनों कार्यालय से लौटते वक़्त मार्ग में अपनी कार से इंडिकेटर देते
हुए लगभग ९० अंश दाहिने घर कि दिशा में मुड़ा तो मेरी गति नियंत्रित होने
पर भी एक बाइक सवार सामने कार से आ टकराया .मैं अनायास हुए हादसे में कुछ
भी न कर सका .युवक को सामने गिरा देख अत्यंत चिंतित मनोदशा में मैं कार से
उतरा तो युवक को उठता देख थोड़ी राहत हुयी .उसे हाथ में चोट आई थी दूसरे
हाथ से वह उसे दबा रहा था.मैंने सकुशल अनुभव कर उससे कहा तुमने इंडिकेटर
क्यों ignore किया तब वह पीड़ा में भी विनयपूर्वक मुझसे बोला सर, मुझसे भूल
हो गयी, मेरा बिलकुल भी ध्यान नहीं गया , आज में बहुत बच गया. उसकी
सज्जनता देख मुझे वेदना हुयी .थोडा नुकसान मेरी गाड़ी का थोडा बाइक का जरुर
हुआ .लेकिन युवक सुरक्षित था बड़ी राहत मिली. वह किसी घर का कुलदीपक और आय
को स्त्रोत था .भले ही गलती मेरी नहीं थी लेकिन तब भी उसे गंभीर कुछ हो
जाता तो मेरे विवेक न्यायालय में में दोषी साबित होता और आत्मग्लानि जीवन
भर कि होती.
हमें करुणा रखनी चाहिए भले ही गलती किसी और की भी होने से उसको हानि होती
है . इसका बचाओ यदि हमारी सावधानी से होता है तो हमें यह करना चाहिए . कोई
असावधानी या अज्ञान के कारण गलत मार्ग पर जाता दिखे तो थोडा हमें ही क्यों न
कुछ सहन करना पड़े तब भी हमें उसे रोकने पर समय लगाना है.
जब हम दूसरों का और दूसरे हमारा लिहाज़ और हिफाजत करेंगे तो ही सामाजिक खुशहाली का वातावरण निर्मित किया जा सकेगा .
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