Friday, July 13, 2018

जिस का उल्लेख किसी कहानी में नहीं करना चाहते थे - हम

जिस का उल्लेख किसी कहानी में नहीं करना चाहते थे - हम
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वह जन्मी थी तभी बेदाग रूपवान मुखड़ा और गोरा रंग देखकर उसके माँ-पापा स्वयं अचंभित थे , चूँकि उन दोनों में से कोई इतने साफ़ रंग के नहीं थे और इतने सुंदर भी नहीं। नवजात बेटी के रूप पर मोहित उन्होंने बड़ी आशा से उसे नाम गौरी दे दिया था। जैसे जैसे गौरी वह बड़ी होती जा रही थी उनकी तमन्ना बेटी को पढ़ा बढ़ा उसे उच्च पदस्थ ऑफ़िसर बनाने की होती जा रही थी।
"किशोरवय मन में जीवन के जो होते सपने
 गौरी के भी वैसे ही मिलते जुलते सपने थे "
आरंभ से रूप की प्रशंसा सुन सुन कर थोड़ी सी प्रॉउडी गौरी , क्लास दर क्लास बहुत अच्छे मार्क्स के साथ उत्तीर्ण करते बड़ी होती जा रही थी। इससे उसकी एम्बिशंस भी बड़ी होती जा रही थी । सहपाठी लड़के , अपने पढ़ने से ज्यादा ध्यान और समय गौरी पर देते लेकिन अपने माँ-पापा के उससे सजे अरमान का ध्यान रखते हुए इन बातों से निष्प्रभावित हो वह पढ़ाई में ध्यान केंद्रित रखती थी। अपना ज्यादा समय पढ़ने कोचिंग में जाने आने और घर के कामों में ही लगाती थी । उसकी साथ लड़कियों को ईर्ष्या होती थी उससे। गौरी इस तरह अब 18 की हो गई थी , कॉलेज में दाखिले के साथ उसका लक्ष्य एविएशन में बड़े पद पर पहुँचना था।
जिस बात के लिए माँ -पापा ने उसे बड़ा नहीं किया था , जिस बात की जरा भी आशा गौरी को नहीं थी उस बात से उसका सामना हुआ , जब एक शाम बारिश हो रही थी। कोचिंग के बाद बारिश रुकने के इन्तजार में उसे लौटते हुए अँधेरा हो गया था , उसकी स्कूटी एक सुनसान जगह पर पानी में बंद हो गई। तभी दुर्योग हुआ एक बलिष्ठ हाथ उसके पीछे से उसके मुहँ पर आ चिपका। उसे कंधे पर उठा कर कोई उसे पास के पार्क के कोने में ले गया। मुहँ हाथ से दबा होने से वह चीख-पुकार नहीं कर सकी। उसने हाथ पाँव तो बहुत चलाये पर वह हैवान उस पर अपनी हवस मिटा कर ही रुका। वह अँधेरे में उसे पहचान भी नहीं सकी थी , फिर भी उसने चाकू से उसके गर्दन पर वार किये। उसकी चेतना लुप्त हो गई। अपनी माँ की कोख को कालिख लगा वह हैवान अँधेरे में ओझल हो गया। बाद में उसकी तलाश में उसके पापा को उसकी लाश मिली , ज्यादा खून बह जाने से गौरी की मौत हो गई थी।
इस हादसे ने घटने में यूँ तो सिर्फ 30-35 मिनट लगे थे लेकिन यह हादसा एक जीवन को 60 वर्ष पहले लील गया था। गौरी से जुड़ी कुछ ज़िंदगियाँ जीती लाश रह गईं थीं। मूर्तरूप लेने से पहले ही कुछ बड़े इरादे/लक्ष्य मिट गए थे।
और
सँस्कृति के धनी माने जाने वाले देश में कलंक का टीका इस तरह लग गया था कि उत्कृष्ट संस्कृति की विरासत कहीं से झलक ही नहीं पा रही थी ...

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
14-07-2018

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